पोलीकार्प आरम्भिक कलीसिया के धर्माध्यक्ष और
शहीद थे तथा प्रभु येसु ख्रीस्त के शिष्यों से परिचित थे। वे प्रितवर सन्त योहन के शिष्य
थे जिन्होंने सन्त योहन के बाद सन् 155 ई. में अपनी मृत्यु तक ख्रीस्त के सुसमाचार का
प्रचार किया। स्मिरना नगर में प्रचार करते समय उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था तथा आग
के हवाले कर भस्म कर दिया गया था। प्राप्त अभिलेखों के अनुसार उन्होंने गिरफ्तार करने
आये लोगों को भोजन कराया था तथा भोजन से पूर्व यह प्रार्थना की थीः "मैं सभी की याद करता
हूँ, उच्च पदाधिकारियों एवं निम्न से निम्न लोगों की, जो किसी न किसी मुकाम पर मुझे मिले।
साथ ही मैं ख्रीस्त की सम्पूर्ण काथलिक कलीसिया के लिये प्रार्थना करता हूँ ताकि वह प्रभु
सदैव अटल बनी रहे।" 86 वर्ष की आयु में सन् 155 ई. में धर्माध्यक्ष पोलीकार्प शहीद हुए
थे। सन्त पोलीकार्प का पर्व 23 फरवरी को मनाया जाता है।
चिन्तनः "मनुष्य
का अन्तःकरण प्रभु का दीपक है, जो उसके अन्तरतम की थाह लेता। दया और निष्ठा राजा की रक्षा
करती है। दया के कारण उसका सिंहासन दृढ़ रहता है" (सूक्ति ग्रन्थ 20: 27-28)।