2014-02-22 08:47:11

प्रेरक मोतीः कोरतोना का सन्त मार्ग्रेट (1247-1297)


वाटिकन सिटी, 22 फरवरी सन् 2014

कोरतोना की मार्ग्रेट को पश्चातापी मार्ग्रेट भी कहा जाता है। मार्ग्रेट का जन्म सन् 1247 ई. में, इटली के तोस्काना प्रान्त स्थित, लोवियाना में हुआ था। उनके पिता एक किसान थे। जब मार्ग्रेट सात वर्ष की थी तब ही उनकी माता का देहान्त हो गया था। सौतेली माँ मार्ग्रेट के साथ दुर्व्यवहार किया करती थीं इसलिये वे घर से भाग गई थी। मोन्तेपुलचियानो में उनकी मुलाकात एक युवक से हो गई जिससे बिना विवाह किये उनकी एक सन्तान भी हुई।

नौ साल बाद उनके प्रेमी की हत्या कर दी गई तथा मार्ग्रेट को मोन्तेपुलचियानो से भागना पड़ा। कहीं कोई शरण न पाकर वे पुनः अपने पिता के यहाँ लौटी किन्तु पिता ने उन्हें माफ नहीं किया तथा उन्हें और उनके पुत्र को शरण नहीं दी। बाद में कोरतोना के फ्राँसिसकन मठवासियों ने उन्हें अपने यहाँ शरण प्रदान की। फ्राँसिसकन मठवासियों के प्रभाव से मार्ग्रेट ने मनपरिवर्तन शुरु किया तथा शारीरिक कमज़ोरियों को परास्त करने के आशय से अपने आप को नाना प्रकार उत्पीड़ित करना आरम्भ कर दिया।

जीवन के इस कठिन दौर में फ्राँसिसकन मठवासियों, विशेष रूप से, धर्मबन्धु जुन्ता ने उन्हें मार्गदर्शन दिया और वे बीमारों की सेवा में लग गई। तदोपरान्त, मार्ग्रेट ने फ्राँसिसकन धर्मसमाज के थर्ड ऑर्डर यानि लोकधर्मियों के लिये गठित धार्मिक समुदाय में प्रवेश पा लिया। कुछ समय बाद मार्ग्रेट के बेटे भी फ्राँसिसकन धर्मसमाज में भर्ती हो गये। बताया जाता है कि थर्ड ऑर्डर में भर्ती होने के बाद मार्ग्रेट सतत् प्रार्थना द्वारा आध्यात्मिकता की सीढ़ी चढ़ती चली गई। कई बार वे भाव समाधि में ध्यान मग्न हो जाया करती थी। धर्मबन्धु जुन्ता ने उनकी भावसमाधियों के कई क्षणों को रिकॉर्ड किया है। उनका कहना है कि उन क्षणों में मार्ग्रेट, प्रत्यक्ष रूप से, ईश्वर से बातचीत किया करती थी।

सन् 1286 ई. में मार्ग्रेट को अपना एक धार्मिक समुदाय स्थापित करने की अनुमति मिल गई। बीमारों की देखरेख को समर्पित उन्होंने एक धर्मसंघ की स्थापना की जिसमें कार्यरत महिलाएं "पोवेरेल्ले" यानि निर्धन महिलाएं नाम से विख्यात हो गई। इसके बाद मार्ग्रेट ने कोरतोना में एक अस्पताल एवं दया की माता मरियम को समर्पित भ्रातृ संघ की भी स्थापना की। उनके इन उदारता अभियान में उन्हें धर्मबन्धु जुन्ता से विशेष मदद मिली इसलिये उनके एवं धर्मबन्धु जुन्ता के विषय में लोग अनर्गल बातें भी करने लगे। इन लांछनों की परवाह किये बिना मार्ग्रेट अपने मिशन पथ पर दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ती गई। पवित्र यूखारिस्त एवं प्रभु येसु मसीह के दुखभोग पर वे घण्टों मनन किया करती तथा अन्यों को भी यूखारिस्त की भक्ति के लिये प्रोत्साहित किया करती थी। बताया जाता है कि मार्ग्रेट को दैवीय रूप से अपनी मृत्यु की घड़ी की चेतावनी मिल गई थी जिसके लिये वे सदैव तैयार रही। 29 वर्षों तक पश्चाताप एवं मनपरिवर्तन का जीवन जीने के बाद, 22 फरवरी सन् 1297 ई. को मार्ग्रेट का निधन हो गया। सन् 1728 ई. में, मार्ग्रेट सन्त घोषित की गई थी। कोरतोना की सन्त मार्ग्रेट का पर्व 22 फरवरी को मनाया जाता है।


चिन्तनः "विवाद से अलग रहना मनुष्य को शोभा देता है। सभी मूर्ख झगड़ालू होते हैं।आलसी कार्तिक में हल नहीं चला, किन्तु फसल के समय ढूढ़ने पर भी उसे कुछ नहीं मिलेगा। मानव हृदय के उद्देश्य गहरे जलाशय जैसे हैं; समझदार व्यक्ति उन्हें खींच कर निकालता है। बहुत से लोग ईमानदार कहलाते हैं, किन्तु निष्ठावान व्यक्ति कहाँ मिलेगा?" (सूक्ति ग्रन्थ 20: 3-7)।








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