वाटिकन सिटी, शुक्रवार 21 फरवरी, 2014(सेदोक, वीआर) संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार
20 फरवरी को वाटिकन स्थित अतिथि निवास सान्ता मार्ता प्रार्थनालय में यूखरिस्तीय बलिदान
में प्रवचन देते हुए कहा, "येसु के अनुसरण से उसे ज़्यादा जानते हैं केवल अध्ययन करने
से नहीं।"
उन्होंने कहा, "जब एक शिष्य येसु का अनुसरण करता है तब वह उसके करीब
आता है और वह येसु को अधिक जानता है।"
संत पापा फ्राँसिस ने येसु के उस वचन पर
अपना चिन्तन प्रस्तुत किया जिसमें येसु शिष्यों को पूछते हैं कि लोग क्या कहते हैं कि
येसु कौन है।
संत पापा ने कहा कि येसु का अनुसरण करने का पक्ष सिर्फ़ बौद्धिक
नहीं है। उन्होंने संत पेत्रुस का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने येसु के प्रश्न का
साहसपूर्वक उत्तर देते हुए कहा था कि येसु ‘मसीह’ हैं। तुरन्त बाद में येसु की उन बातों
पर विश्वास नहीं किया जिसमें येसु ने उन्होंने कहा था उन्हें दुःख उठाना, मर जाना और
तीसरे दिन जी उठना होगा।
संत पापा ने कहा, "ख्रीस्तीय जीवन के लिये धर्मशिक्षा
केवल काफी नहीं है। येसु के बारे में ज्ञान मात्र काफी नहीं है पर ज़रूरी है इसे समझना
और उसके अनुसार जीवन बिताना।"
संत पापा ने कहा कि यही कारण है येसु ने अपने
शिष्यों से यह नहीं कहा, ‘मुझे जानो’ उन्होंने कहा, ‘मेरा अनुसरण करो’। येसु के अनुसरण
में ही हम येसु को अधिक करीब से जानते हैं।
उन्होंने कहा कि हम अपनी दृढ़ इच्छा
से येसु के पीछे चलते हैं इसके साथ ही हम अपनी कमजोरियों के साथ भी उसका अनुसरण करते
हैं। हमारी इस यात्रा हम विजयी होते हैं और कई बार अपनी कमजोरियों के साथ ही येसु से
मिलते हैं। इस यात्रा में पवित्र आत्मा की शक्ति की सख़्त ज़रूरत है।
उन्होंने
कहा कि ‘येसु को जानना’ पिता ईश्वर की ओर से हमारे लिये एक वरदान है वही हमें येसु के
बारे में बतलाते हैं।
पवित्र आत्मा हमारे साथ कार्य करता है, वह हमें येसु के
रहस्य को समझाता है और येसुमय जीवन को समझने में हमारी मदद करता है।
संत पापा
ने लोगों से कहा कि वे पिता ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह हमें पवित्र आत्मा दे ताकि
हम येसु को जान सकें।