2014-02-18 12:13:16

प्रेरक मोतीः सन्त सिमोन (पहली शताब्दी)


वाटिकन सिटी, 18 फरवरी सन् 2014

सिमोन प्रभु येसु ख्रीस्त के प्रथम प्रेरितों में से एक थे जिनका ज़िक्र सन्त मत्ती रचित सुसमाचार तथा प्रेरित चरित ग्रन्थ में मिलता है। सन्त पेत्रुस को भी कई बार सुसमाचारों में सिमोन पेत्रुस नाम से पुकारा गया है किन्तु पेत्रुस सिमोन से भिन्न हैं तथा इस भिन्नता को दर्शाने के लिये सुसमाचार लेखकों ने उन्हें सिमोन ज़ेलोथ यानि "उत्साही" सिमोन कहकर पुकारा है। वस्तुतः, इब्रानी भाषा के ज़ेलोथ शब्द का अर्थ होता है यहूदी विधान संहिता के प्रति उत्साह से परिपूर्ण। सिमोन के पिता क्लोफस थे तथा उनकी माताजी, मरियम की रिश्तेदार थीं इसीलिये सिमोन को कहीं कहीं येसु के भाई भी कहा गया है।

सन्त एपीफानुस के अनुसार सन्त जेम्स यानि सन्त याकूब के निधन के बाद प्रेरित एवं शिष्य उनके उत्ताराधिकारी के चुनाव के लिये एकत्र हुए और उन्होंने सिमोन को जेरूसालेम का धर्माध्यक्ष नियुक्त किया। सन् 66 ई. में, यहूदियों द्वारा रोमियों के विरोध के फलस्वरूप, फिलीस्तीन में गृहयुद्ध छिड़ गया। ख्रीस्तीयों को जैरूसालेम छोड़ने का आदेश दे दिया गया जो धर्माध्यक्ष सिमोन के साथ यर्दन नदी के पार पेल्ला नगर में जा बसे। यर्दन नदी के आस पास ख्रीस्तीय सुसमाचार का प्रचार हुआ तथा अनेक यहूदियों ने ख्रीस्तीय विश्वास का आलिंगन किया।

ख्रीस्तीय धर्म को फलते फूलते देख वेस्पासियन तथा दोमिशियन ने आदेश दे दिया था कि सभी दाऊद वंशियों को ख़त्म कर दिया जाये किन्तु सिमोन उस समय पकड़े जाने से बच गये। इसके बाद सम्राट त्रायान ने दाऊद वंशियों सहित ख्रीस्त के अनुयायियों को भी मार डालने का आदेश दे दिया। सिमोन भी इस दमन चक्र का शिकार बने जिन्हें रोमी राज्यपाल अत्तीकुस के शासन काल में गिरफ्तार कर, यातनाएँ दी गई तथा क्रूस पर ठोंककर मार डाला गया। परम्परागत रूप से, यह माना जाता है कि सिमोन 120 वर्ष की आयु तक जिये। मरते दम तक प्रभु येसु ख्रीस्त में अपने विश्वास का साक्ष्य देनेवाले शहीद सन्त सिमोन का पर्व 18 फरवरी को मनाया जाता है।


चिन्तनः "पृथ्वी के शासको! न्याय से प्रेम रखो। प्रभु के विषय में ऊँचे विचार रखो और निष्कपट हृदय से उसे खोजते रहो; क्योंकि जो उसकी परीक्षा नहीं लेते, वे उसे प्राप्त करते हैं। प्रभु अपने को उन लोगों पर प्रकट करता है, जो उस पर अविश्वास नहीं करते" (प्रज्ञा ग्रन्थ 1, 1-2)।








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