2014-02-10 09:39:59

वाटिकन सिटीः सन्त पापा फ्राँसिस का चालीसाकालीन सन्देश 2014


वाटिकन सिटी, 10 फरवरी सन् 2014 (सेदोक): "वे धनी थे किन्तु आप लोगों के कारण निर्धन बन गये ताकि आप धनी बन जायें।" कुरिन्थियों को लिखे सन्त पौल के इन शब्दों से सन्त पापा फ्राँसिस ने अपना चालीसाकालीन सन्देश आरम्भ किया।
प्रभु येसु मसीह के दुखभोग की याद में कलीसिया चालीसाकाल मनाती है जो इस वर्ष 05 मार्च से आरम्भ हो रहा है।
वाटिकन ने, मंगलवार 04 फरवरी को सन्त पापा फ्राँसिस के चालीसाकालीन सन्देश की प्रकाशना की थी। सन्देश इस प्रकार हैः
"प्रिय भाइयो और बहनो,
चालीसाकाल समीप है और इस उपलक्ष्य में, मनपरिवर्तन हेतु हमारी तीर्थयात्रा के लिये उपयोगी कुछ विचारों को, मैं, प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक समुदाय के हितार्थ, प्रस्तुत करना चाहता हूँ। यह अन्तरदृष्टि सन्त पौल के शब्दों से प्रेरित हैः "आप लोग हमारे प्रभु ईसा मसीह की उदारता जानते हैं। वे धनी थे, किन्तु आप लोगों के कारण निर्धन बन गये, जिससे आप उनकी निर्धनता द्वारा धनी बन जायें" (2 कुरिन्थ.8:9)। प्रेरितवर, सन्त पौल, कुरिन्थ के निवासियों को ये शब्द लिख रहे थे ताकि उन्हें जैरूसालेम के ज़रूरतमन्द लोगों की मदद हेतु प्रोत्साहित कर सकें। आज के ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों के लिये सन्त पौल के ये शब्द क्या मायने रखते हैं? आज के परिप्रेक्ष्य में, निर्धनता के प्रति इस निमंत्रण और सुसमाचारी अकिंचनता का क्या अर्थ है?
ख्रीस्त की कृपा
सर्वप्रथम, सन्त पौल के ये शब्द, हमें ईश्वर के कार्यों के बारे में बताते हैं। ईश्वर स्वतः को, सांसारिक सत्ता और धन वैभव में ओढ़े हुए प्रकट नहीं करते बल्कि दुर्बलता एवं निर्धनता में ख़ुद को प्रकट करते हैं: "वे धनी थे, किन्तु आप लोगों के कारण निर्धन बन गये....."। अनन्त पिता के बेटे, शक्ति और महिमा में पिता के साथ एक, ख्रीस्त ने निर्धन बनना स्वीकार किया; वे हमारे बीच आये और हम में से प्रत्येक को अपनी ओर आकर्षित किया; उन्होंने अपनी महिमा को एक तरफ छोड़ दिया तथा अपने आप को खाली कर दिया ताकि वे सबकुछ में हमारे समान बन सकें (दे. फिलिप्प.2:7; इब्रा. 4:15)।"
सन्त पापा फ्राँसिस ने लिखाः "ईश्वर का मानव रूप धारण करना एक महान रहस्य है! लेकिन इसका कारण है उनका प्रेम, ऐसा प्रेम जो कृपामयी है, उदारता से परिपूर्ण है, हमारे निकट आने की इच्छा से भरा है, ऐसा प्रेम जो अपने प्रिय लोगों के लिये स्वतः का बलिदान अर्पित करने में भी संकोच नहीं करता। उदारता एवं प्रेम, उस व्यक्ति के साथ सबकुछ को साझा करना है जिससे हम प्रेम करते हैं। प्रेम हमें अन्यों के समरूप बनाता है, वह समानता की रचना करता है, वह दीवारों को ध्वस्त कर देता है तथा दूरियों को समाप्त कर देता है। ईश्वर ने हमारे साथ यही किया। दरअसल, येसु ने "मानव हाथों से काम किया, मानव मन से विचार किया, मानवीय पसन्द से कार्य किया तथा मानवीय हृदय से प्यार किया। कुँवारी मरियम से जन्म लेकर, वे, सचमुच, पाप को छोड़कर सब बातों में, हममें से एक बन गये" (गाओदियुम एतस्पेस, 22)।
येसु ने ख़ुद ग़रीब बनकर नाम मात्र के लिये ग़रीबी की तलाश नहीं की बल्कि, जैसा कि सन्त पौल कहते हैं: "इसलिये कि उनकी ग़रीबी में तुम धनी बन जाओ"। यहाँ शब्दों का खेल नहीं है और न ही यह कोई आकर्षक वाक्यांश है। दरअसल, यह ईश्वर के तर्क का सार है, प्यार का तर्क, देहधारण एवं क्रूस का तर्क। ईश्वर ने हमारी मुक्ति को स्वर्ग से नहीं टपकने दिया जैसे कोई परोपकारिता और भक्ति भाव के साथ, अपनी विपुलता में से कुछ दान दे देता है। ख्रीस्त का प्रेम अलग है! येसु ने यर्दन नदी के जल में कदम रखा तथा योहन बपतिस्ता से बपतिस्मा प्राप्त किया, उन्होंने ऐसा इसलिये नहीं किया कि उन्हें पश्चाताप की अथवा मनपरिवर्तन की ज़रूरत थी; ऐसा उन्होंने, लोगों के बीच, हम पापियों के बीच, रहने के लिये किया जिन्हें क्षमा की आवश्यकता है, उन्होंने ऐसा हमारे पापों के बोझ को अपने ऊपर लेने के लिये किया। इस प्रकार, उन्होंने हमें विश्राम प्रदान करना चाहा, हमारा उद्धार करना चाहा, हमारे कष्टों से हमें मुक्त करना चाहा। यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि प्रेरितवर सन्त पौल लिखते हैं कि ख्रीस्त के धन से नहीं अपितु उनकी निर्धनता से हमारा उद्धार हुआ है हालांकि, सन्त पौल ख्रीस्त की रहस्यमय सम्पत्ति के प्रति पूर्णतः सचेत हैं: "मसीह की अपार कृपानिधि"(एफे.3:8), "उसने पुत्र के द्वारा समस्त विश्व की सृष्टि की और उसी को सब कुछ का उत्तराधिकारी नियुक्त किया है" (इब्रा.1:2)।
अस्तु, क्या है वह निर्धनता जिसके द्वारा ख्रीस्त हमें मुक्त करते तथा समृद्ध बनाते हैं? यह हमसे प्रेम करने का उनका तरीका है, हमारे पड़ोसी होने का उनका तरीका, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार भला समारी उस व्यक्ति का पड़ोसी बना जो रास्ते पर अधमरा छोड़ दिया गया था (दे. लूकस 10:25)। उनकी दया, उनकी सदयता तथा उनकी एकात्मता ही हमें सच्ची स्वतंत्रता, सच्ची मुक्ति एवं सच्चा सुख प्रदान करती है। ख्रीस्त की निर्धनता जो हमें समृद्ध बनाती है वह है उनका देहधारण तथा, प्रभु ईश्वर की अनन्त दया की अभिव्यक्ति रूप में, हमारी कमज़ोरियों और हमारे पापों को अपने ऊपर लेना। ख्रीस्त की निर्धनता सबसे बड़ा खजाना है, एक अनमोल कोष हैः येसु की अपार धन सम्पत्ति है पिता ईश्वर में उनका असीम आत्मविश्वास, उनका अटल विश्वास, सदैव और केवल ईश-इच्छा को पूरा करने तथा उन्हीं को महिमा प्रदान करने की उनकी अभिलाषा। येसु उस बच्चे की तरह ही धनी हैं जिसे प्यार पाने का एहसास है, जो अपने माता पिता से प्यार करता तथा, एक पल के लिये भी, उनके प्यार एवं उनकी सदयता पर शक नहीं करता है। येसु की धन-सम्पदा उनके पुत्र होने में निहित है; पिता ईश्वर के साथ उनका अद्वितीय सम्बन्ध ही निर्धन मसीह का परमाधिकार है। जब येसु हमसे आग्रह करते हैं कि हम उनका "जुआ उठायें जो हल्का है" तब वे हमें अपनी निर्धनता में समृद्ध होने तथा समृद्धता में निर्धन बनने के लिये आमंत्रित करते हैं ताकि हम उनके पुत्र-सुलभ एवं भाई-सुलभ भाव में भागीदार बन सकें, पुत्र में बेटे-बेटियाँ तथा पहलौठे भाई में भाई-बहन बन जायें (दे. रोमियों 8:29)।
कहा गया है कि असली अफसोस केवल इस बात का होता है कि हम सन्त नहीं बन पाये (एल ब्लोय); हम भी कह सकते हैं कि बस एक प्रकार की ग़रीबी है जो असली ग़रीबी हैः ईश्वर की सन्तान जैसे तथा ख्रीस्त के भाई बहन जैसे जीवन यापन न कर पाना।
हमारा साक्ष्य
हम सोच सकते हैं कि इस प्रकार की ग़रीबी का रास्ता येसु का "रास्ता" था जबकि हम जो इस दुनिया में उनके बाद आये हैं सही मानव संसाधनों द्वारा विश्व को बचा सकते हैं। मामला यह नहीं है। हर युग और हर जगह ईश्वर, ख्रीस्त की निर्धनता से, मनुष्य एवं विश्व का उद्धार करते रहते हैं। ख्रीस्त अपने आप को, संस्कारों में, अपने वचन द्वारा तथा निर्धनों से निर्मित लोगों की कलीसिया द्वारा, दीन हीन बनाते हैं। ईश्वर का धन-वैभव हमारे धन-वैभव से होकर नहीं गुज़रता अपितु, निरपवाद रूप से, और विशेष रूप से, हमारी व्यक्तिगत एवं सामुदायिक निर्धनता में परिलक्षित होता तथा ख्रीस्त के पवित्रआत्मा से अनुप्राणित रहता है।"
सन्ता पापा फ्राँसिस ने आगे लिखाः "ख्रीस्तीय धर्मानुयायी, प्रभु येसु के अनुसरण द्वारा, अपने भाइयों एवं बहनों की निर्धनता को सामने रखने, उसका स्पर्श करने तथा उसे हल्का करने के लिये, व्यावहारिक कदम उठाने हेतु बुलाये गये हैं। अभाव एवं निर्धनता का अर्थ एक नहीं है क्योंकि अभाव विश्वास रहित, समर्थन रहित एवं आशा रहित होता है। तीन प्रकार के अभाव होते हैं: भौतिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक। सामान्यतः, भौतिक अभाव को निर्धनता कहा जाता है, यह उन लोगों को प्रभावित करती है जो मानव प्रतिष्ठा विरोधी जीवन यापन को बाध्य हैं: वे लोग जो भोजन, जल, स्वास्थ्य सेवाएं, नौकरी तथा विकास एवं सांस्कृतिक रूप से विकसित होने जैसे बुनियादी अधिकारों से वंचित हैं। इस अभाव के प्रत्युत्तर में, कलीसिया अपनी ओर से सहायता प्रदान करती, इन आश्यकताओं को पूरा करती तथा मानवता के चेहरे को विरूपित करनेवाले घावों को भरती है। ग़रीबों एवं निर्वासितों में हम प्रभु येसु ख्रीस्त के मुखमण्डल का दर्शन करते हैं; निर्धनों से प्रेम कर एवं उनकी मदद कर हम ख्रीस्त से प्रेम करते एवं ख्रीस्त की सेवा करते हैं। विश्व से मानव गरिमा के उल्लंघन, भेदभाव एवं दुर्व्यवहार को समाप्त करने हेतु भी हमारे प्रयास निर्देशित हैं क्योंकि ये, प्रायः, अभाव का कारण बनते हैं। जब सत्ता, विलासिता एवं धन दौलत पूजनीय लक्ष्य बन जाते हैं तब धन के उचित वितरण की आवश्यकता को दरकिनार कर दिया जाता है। अस्तु, अपने अन्तःकरणों को न्याय, समानता, सादगी एवं भागीदारी में परिवर्तित करना नितान्त आवश्यक है।
नैतिक अभाव भी कोई कम चिन्ता का विषय नहीं है, यह दुर्गुण एवं पाप की ग़ुलामी है। उन परिवारों में कितना अधिक दर्द है जिनका कोई सदस्य – प्रायः युवा व्यक्ति – शराब, मादक दवाओं, जुआ अथवा अश्लील साहित्य का ग़ुलाम बन चुका है! कितने अधिक लोग हैं जो जीवन में कोई अर्थ या भविष्य के लिये कोई प्रत्याशा नहीं देख पाते, कितने ऐसे हैं जो आशा को ही खो चुके हैं! और कितने ऐसे हैं जो अन्यायपूर्ण सामाजिक स्थितियों से गुज़र रहे हैं, बेरोज़गारी से, जो परिवार के रोटी कमानेवाले रूप में, उनकी गरिमा छीन लेती है तथा कितने ऐसे हैं जो शिक्षा एवं स्वास्थ्य देखभाल की समान पहुँच के अभाव से पीड़ित हैं। ऐसे मामलों में, नैतिक अभाव को आसन्न आत्महत्या माना जा सकता है। इस प्रकार का अभाव, जो वित्तीय बर्बादी का भी कारण है, निरपवाद ढंग से, आध्यात्मिक अभाव से जुड़ा होता है जिसका अनुभव हम तब करते हैं जब हम ईश्वर से मुँह मोड़ लेते तथा ईश प्रेम का बहिष्कार कर देते हैं। यदि हम यह सोचते हैं कि हमें उन ईश्वर की ज़रूरत नहीं जो ख्रीस्त के द्वारा हम तक पहुँचते हैं इसलिये कि हम इस भ्रम में पड़े रहते हैं कि हम सबकुछ अपने दम पर कर सकते हैं तो हम, निश्चित्त रूप से, पतन की ओर बढ़ रहे हैं। केवल ईश्वर ही हमें बचा सकते एवं मुक्त कर सकते हैं।
आध्यात्मिक अभाव की यथार्थ दवा है सुसमाचारः ख्रीस्तीय धर्मानुयायी होने के नाते, जहाँ भी हम जायें वहाँ इस उद्धारकारी समाचार की उदघोषणा के लिये बुलाये गये हैं कि पापों की क्षमा सम्भव है, कि हमारी पापमयता से अधिक श्रेष्ठ ईश्वर हैं, कि वे सब समय, मुक्त रूप से, हमसे प्यार करते हैं तथा यह कि हमारी सृष्टि सहभागिता एवं अनन्त जीवन के लिये की गई थी। प्रभु हमसे अनुरोध करते हैं कि हम दया और आशा के इस पावन सन्देश के हर्षित सन्देशवाहक बनें। सुसमाचार को जन-जन में फैलाने की खुशी एक रोमांचक अनुभव है, यह हमारे सिपुर्द किये गये कोष को अन्यों के साथ बाँटना है, अन्धकार का अनुभव करनेवाले हमारे भाई-बहनों के टूटे हृदयों को सान्तवना प्रदान कर उनमें उम्मीद की ज्योत जगाना है। इसका अर्थ है ख्रीस्त के पीछे हो लेना, उनका अनुसरण करना जिन्होंने निर्धनों एवं पापियों को चुना ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार चरवाहा अपनी खोई हुई भेड़ की खोज करता है। येसु के साथ मिलकर, हम साहसपूर्वक, सुसमाचार उदघोषणा एवं मानव उत्थान के नए द्वार खोल सकते हैं।
प्रिय भाइयो एवं बहनो, चालीसा काल में सम्पूर्ण कलीसिया उन लोगों की साक्षी बनने के लिये तत्पर रहे जो, ख्रीस्त में सबका आलिंगन करनेवाले, हमारे पिता ईश्वर के प्रेम रूपी सुसमाचारी सन्देश के भौतिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक अभाव में जीवन यापन कर रहे हैं। ऐसा हम तब कर सकते हैं जब हम ख्रीस्त का अनुसरण करें जो ख़ुद दीन-हीन बने तथा जिन्होंने अपनी निर्धनता से हमें धनी बना दिया। चालीसा काल आत्मत्याग का उपयुक्त समय है; अच्छा होता यदि हम अपने आप से पूछते कि अपनी निर्धनता से अन्यों की मदद करने तथा उन्हें धनी बनाने के लिये हम क्या अर्पित कर सकते हैं? यह हम कदापि न भूलें कि यथार्थ निर्धनता से दर्द होता हैः पश्चाताप के इस आयाम के बिना कोई भी तपस्या या आत्मत्याग वास्तविक नहीं होता। जिसपर कोई खर्च न हो तथा कोई चोट न लगे ऐसी उदारता पर मैं विश्वास नहीं करता।
पवित्रआत्मा, जिनके द्वारा, "हम दरिद्र हैं, फिर भी हम बहुतों को सम्पन्न बनाते हैं। हमारे पास कुछ नहीं है; फिर सब कुछ हमारा है" (2 कुरिन्थ. 6:10), हमें हमारे संकल्पों में सुदृढ़ करें तथा मानव अभाव के प्रति हमारी उत्कंठा एवं हमारी ज़िम्मेदारी को बढ़ायें ताकि हम दयालु बन सकें तथा दया के कार्य कर सकें। इस आशा को व्यक्त करते हुए, मैं प्रार्थना करता हूँ कि विश्वासी समुदाय का प्रत्येक व्यक्ति एवं प्रत्येक कलीसियाई समुदाय फलप्रद चालीसाकालीन तीर्थयात्रा आरम्भ करेगा। आप सबसे मैं अनुरोध करता हूँ कि आप मेरे लिये भी प्रार्थना करें। प्रभु आपको आशीष दें तथा माँ मरियम आपको सुरक्षित रखें।
(सन्त पापा फ्राँसिस का चालीसाकालीन सन्देश
वाटिकन सिटी, 2014)








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