2014-02-07 18:28:21

वर्ष ‘अ’ का पाँचवा रविवार, 9 फरवरी, 2014


इसायस 58, 7-10.
1 कुरिन्थियों के नाम पत्र
संत मत्ती 5, 13-16
जस्टिन तिर्की, ये.स.

राजा की कहानी
मित्रो, आज आपलोगों को एक राजा की कहानी बताता हूँ। किसी ज़माने में एक प्रसिद्ध राजा थे उनका साम्राज्य बड़ा था और उनके राज्य में अकूत संपति थी। राजा के तीन पुत्र थे। जब राजा बूढ़े हो चले तब उन्होंने सोचा कि वह अपना योग्य उत्तराधिकारी चुने ताकि अपनी मृत्यु के बाद उसका राज्य कायम रहे। एक दिन उन्होंने अपने पहले पुत्र को बुलाया और पूछा कि वह राजा को कितना प्यार करता है। तब पहले बेटे ने कहा कि वह राजा को दुनिया की धन-दौलत से बढ़कर प्यार करता है। तब राजा ने दूसरे पुत्र को बुलाया और वही सवाल पूछा कि वह राजा को कितना प्यार करता है तब दूसरे पुत्र ने कहा कि वह राजा को सोना-चाँदी से बढ़ कर प्यार करता है। राजा खुश था। अन्त राजा ने अपने तीसरे पुत्र को बुलाया और वही सवाल पूछा कि वह राजा को कितना प्यार करता है। तब तीसरे पुत्र ने कहा कि वह राजा को नमक के समान प्यार करता है। राजा दुःखी हो गया। उन्होंने अपने दोनों पुत्रों के बीच अपने राज्य का बँटवारा कर दिया और छोटे पुत्र को अपने देश से निकाल दिया। छोटे पुत्र ने अपने मेहनत के बल पर पड़ोसी राज्य का राजा बना और अपने बूढ़े पिता को भोज पर आमंत्रित किया। जब भोजन खाने का समय आया तब छोटे पुत्र ने अपने नौकरों से कहा कि वे बूढ़े राजा के खाद्य पदार्थो में नमक न डालें। जब बूढ़े राजा को भोजन परोसा गया तो छोटे पुत्र के हुक्म के अनुसार ही नमकहीन भोजन दिया गया। बूढ़ा राजा आग बबुला हो गया और बोला कि खाद्य पदार्थों में नमक नहीं है। खाना स्वादहीन है। वह खाना नहीं खा सकते क्योंकि इसमें नमक ही नहीं डाला गया है। तब छोटे पुत्र ने आकर अपने बूढ़े पिता से कहा कि पिताजी मैंने जानबूझकर आपके लिये परोसे भोजन में नमक नहीं डालने का निर्देश दिया था ताकि आपको नमक का अर्थ समझ में आ जाये,आपके लिये मेरे दिल में प्रेम है उसका अर्थ समझ में आ जाये। मित्रो, नमक के बिना खाना स्वादहीन हो जाता है। आज नमक बहुत कीमती नहीं है पर नमक की उपयोगिता आज भी बरकरार है। आज भी नमक का प्रयोग वस्तुओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिये किया जाता है। आज प्रभु हमें दुनिया का नमक और ज्योति बनने का आमंत्रण दे रहे हैं। आइये, हम प्रभु के दिव्य वचनों को सुनें जिसे संत मत्ती के सुसमाचार के 5वें अध्याय के 13से 16वें पदों से लिया गया है।

संत मत्ती, 5, 13-16
13) ''तुम पृथ्वी के नमक हो। यदि नमक फीका पड़ जाये, तो वह किस से नमकीन किया जायेगा? वह किसी काम का नहीं रह जाता। वह बाहर फेंका और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाता है।
14) ''तुम संसार की ज्योति हो। पहाड़ पर बसा हुआ नगर छिप नहीं सकता।
15) लोग दीपक जला कर पैमाने के नीचे नहीं, बल्कि दीवट पर रखते हैं, जहाँ से वह घर के सब लोगों को प्रकाश देता है।
16) उसी प्रकार तुम्हारी ज्योति मनुष्यों के सामने चमकती रहे, जिससे वे तुम्हारे भले कामों को देख कर तुम्हारे स्वर्गिक पिता की महिमा करें।

नमक से तुलना
मित्रो, मेरा पूरा विश्वास है कि आपने आज के प्रभु वचन को ध्यान से सुना है और इसके द्वारा आपको आपके मित्रों और परिवार के सदस्यों को आध्यात्मिक लाभ हुए हैं। मित्रो, आज के युग में यदि हम किसी को कहें कि वह नमक है तो वह व्यक्ति इससे बहुत प्रसन्न नहीं होता है। वह कहेगा कि क्या मैं इतना महत्त्वहीन हूँ कि मुझे नमक से तुलना क्या जा रहा है। आज के युग में नमक की कीमत इतनी नहीं है जितनी की येसु के समय में हुआ करती थी। नमक को इतनी आसानी से प्राप्त भी नहीं किया जा सकता था जैसा कि आज उपलब्ध है। आज नमक की कीमत कम है पर इसका महत्त्व घटा नहीं है। आज भी हम नमक का प्रयोग खाद्य पदार्थों को स्वदिष्ट बनाने और इसे लम्बे समय तक रखने के लिये करते हैं।

मित्रो, आज प्रभु हमारी तुलना नमक से करते हैं। जब मैं प्रभु के वचनों पर विचार करता हूँ तो पाता हूँ कि येसु को मानव स्वभाव की अच्छी जानकारी थी। वे जानते थे व्यक्ति स्वभावतः भला होता है अच्छी बातों को ग्रहण भी करता है पर कई बार वह उन दुनियावी मोह-माया में फँसकर अच्छी बातों को सुरक्षित नहीं रख पाता है। या तो वह ऊब जाता है या वह उसकी सुरक्षा की ओर ध्यान नहीं देता है फलतः वह कृपाओं को गवाँ देता है। प्रभु जानते हैं कि भले और अच्छे जीवन के लिये गुणों को पाने और उसे बचाये रखने की आवश्यकता है। मित्रो, हम कई बार इस आशा में रहते हैं कि हमें अधिक-से-अधिक गुणों, कृपाओँ या वरदान प्राप्त हो और हम ऐसी धन-सम्पति की तलाश करते हैं जो अच्छे हैं, आकर्षक हैं पर टिकाऊ नहीं हैं । मानव का एक झुकाव है कि वह दुनिया में बहने वाली हवा बहने लगते हैं। इसीलिये प्रभु ने कहा है कि हम नमक हैं जो भोजन को स्वदिष्ट बनाते हैं और जो वस्तुओं के गुण की रक्षा करते हैँ।

कृपा और मिशन
मित्रो, आपने प्रभु के वचन को ग़ौर से सुना होगा। प्रभु सिर्फ यह नहीं कह रहे हैं कि तुम नमक हो वे कह रहे हैं तुम पृथ्वी के नमक हो। अर्थात् प्रभु सिर्फ़ हमारे गुणों की याद नहीं दिला रहें हैं पर हमें एक मिशन भी दे रहे हैं। हम पर एक ज़िम्मेदारी दे रहे हैं और कह रहे हैं कि यह हम सबों का परम कर्त्तव्य है कि कि हम इस दुनिया को अच्छा बनने और बनाये रखने में अपना योगदान दें। दुनिया को अच्छा बनाने का अर्थ है हम हर दूसरे व्यक्ति की अच्छाई को पहचानें और दूसरों को इस पहचानने में मदद दें। हम प्रत्येक व्यक्ति को भला और अच्छा बनने में मदद दें।


सुन्दर और गुणवान
मित्रो, कई बार जब हम दूसरों को और दुनिया को भला, अच्छा और सच्चा बनाने की बात करते हैं तो हम यह न भूलें की यह भलाई, अच्छाई और सच्चाई की पहचान पहले हमें खुद अपने जीवन में करने की ज़रूरत है। प्रत्येक व्यक्ति को ईश्वर ने गुणों से विभुषित किया है। यह मानव का दायित्व है कि उन गुणों की पहचान करे और उनके प्रभाव से स्वयं को सुन्दर और गुणवान बनाये और इस धरती को बेहतर बनाने में अपना योगदान दे।



कृपा का उपयोग
मित्रो, येसु एक और विशेष बात की ओर हमारा ध्यान खींचने का प्रयास कर रहे हैं वह है कि यदि हम अपने गुणों का प्रयोग नहीं करेंगे तो यह गुण प्रभावकारी नहीं रह जायेगा। यदि ईश्वर ने हमें उदार बनाया है दयालुता और क्षमाशीलता दी है सेवा और सहिष्णुता की भावना दी है तो हमें चाहिये कि हम इसका उपयोग करें तब ये गुण अर्थपूर्ण होंगे। तब इनसे हमें और जग को लाभ होगा अन्यथा ये उस मिट्टी में गड़े हुए सोने के समान हैं जो मूल्यवान होते हुए भी अनुपयोगी रह जाता है। प्रभु कहते हैं कि ऐसे गुण जिनका उपयोग जनहित में न हो वे बेकार हैं और उन्हें पैरों तले रौंदते हुए भी लोगों को कोई टीस नहीं होती है। यह हम कहें ऐसे लोगों का जीवन अर्थहीन मूल्यहीन और मृतप्राय समझा जाता है।

ज्योति
मित्रो, यदि आपने आज के सुसमाचार के दूसरे भाग को ध्यान से सुना होगा तो आपने पाया होगा कि येसु हमें एक और नाम दे रहे हैं। हमें कह रहे हैं कि हम दुनिया की ज्योति हैं। हमारी तुलना ज्योति से करने के द्वारा भी येसु हमें एक बड़ी ज़िम्मेदारी सौंप रहे हैं । वे कह रहे हैं कि हमें दीपक का कार्य करना है । मित्रो, ऐसा नहीं है कि लोगों की आँखें नहीं हैं आज ज़रूरत है दीपक के रूप में कार्य करने की। आज कई लोग ऐसे हैं जिन्हें सच्चाई, अच्छाई और भलाई को किसी के सहारे की आवश्यकता पड़ती है। कई बार हम ऐसे लोगों को पाते हैं जिनकी इच्छा है कि सत्य के मार्ग पर चलें पर वे सत्य को ठीक से पहचान नहीं पाते हैं। कई लोग हैं जो भले मार्ग पर चलते हैं पर लड़खड़ाते हैं और उन्हें एक सहारे की ज़रूरत होती है। कई लोग हैं इतनी तकलीफ़ों और चुनौतियों का सामना करते हैं कि उनकी हिम्मत टूटने लगती है। ऐसे लोगों को दीपक चाहिये उँजियाला चाहिये। ऐसे लोगों आन्तरिक शक्ति और प्रकाश चाहिये। इसी लिये येसु हमसे कह रहे हैं कि हम दुनिया की ज्योति बनें।

कोसने के बदले दीप जलायें
ज्योति बनना अर्थात् खुद ही प्रभु के प्रेम से इतना ओत्-प्रोत् हो जाना कि खुद की ज़िन्दगी को देखकर लोगों को प्रकाश मिल सके। खुद ही प्रसन्न ज़िन्दगी जीना, अपने कार्यों को उत्साहपूर्वक करना, खुद ही दूसरों के लिये भले की कामना करना भला और अच्छा बनने में दूसरों की मदद करने के लिये तत्पर रहना। जीवन की हर घड़ी मे विशेष करके विपरीत परिस्थितियों में अंधकार को कोसने के बदले एक छोटा-सा दीया जलाना।

मित्रो, अगर हमने ऐसा करना अपने जीवन का एक अभिन्न अंग बना लिया तो यह दावानल के समान दुनिया में फैलेगी और दुनिया को प्रभावित किये बिना नहीं रहेगी। आख़िर प्रत्येक मानव की भी यही आंतरिक और हार्दिक इच्छा यही है कि वह प्रभावकारी बने, सफल बने प्रसन्न रहे शांति प्राप्त करे। मित्रो, प्रभु का आमंत्रण छोटा-सा है पर इसका प्रभाव और फल क्रांतिकारी है। आज हम नमक के समान अपने गुणों को बचाये रखें और बड़ी ज्वाला तो न ही सही पर एक छोटा दीपक तो सदा बनें ताकि हमें देख लोगों को आशापूर्ण ह्रदय से जीने की चाह जगेगी और और उसकी चमक से लोग परहितमय जीवन जीने में अपना कल्याण और ईश्वर की महिमा देख पायेगें।








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