नबी इसायस 49, 3,5-6 1 कुरिन्थियों के नाम पत्र 1, 2-3 संत योहन 1, 23-30, 33-34 जस्टिन
तिर्की, ये.स.
पतंग की कहानी मित्रो, आपको आज मै एक पतंग की कहानी बताता हूँ।
एक पतंग रोज दिन खुले आकाश में स्वच्छंद उड़ा करती थी । उसे इस बात का नाज़ था कि उससे
उँचा और कोई नहीं उड़ सकता है। उस खुले आकाश में न तो कोई पंक्षी नज़र आते थे, न ही कोई
दूसरी पतंग। पतंग अपनी रंग-बिरंगी झालर लहराते हुए पूरे आसमान में सैर करती थी और सोचती
थी कि न तो कोई इससे अच्छा है और नही कोई उस उँचाई को छू सकता है जहाँ तक वह उड़ती है।
एक दिन की बात है। पतंग ने देखा कि एक चील उससे ऊपर उड रहा है। पतंग परेशान हुआ। सोचने
लगा कि यह चील मुझसे अधिक ऊँचाई पर कैसे उड़ सकता है? उसे ईर्ष्या हुई और उसने एक शिकारी
से आग्रह कि वह उस चील को मार गिराये। शिकारी ने अपने तीर से चील को मार गिराने का प्रयास
करने लगा। जब उसका तीर चील तक नहीं पहुँचने लगा तब उसने पतंग से कहा कि अपनी पूँछ में
से कुछ पंखों को शिकारी को दे ताकि उसे अपने तीर में डाले और चील को मार गिराये। पतंग
ने खुशी से अपना एक पंख शिकारी को दिया। शिकारी ने चील पर निशाना साध कर तीर चलायी पर
तीर चील तक नहीं पहुँच पायी। तब शिकारी ने पतंग से एक और पंख माँगा और ऐसा करते-करते
पतंग के सारे पंख समाप्त हो गये पर चील मारा नहीं जा सका। तब अन्त में शिकारी ने पतंग
को ही मार गिराया। मित्रो, पतंग के मन में ईर्ष्या थी और ईर्ष्या की आग में जलते-जलते
खुद पतंग ही भष्म हो गया। मित्रो, जो दूसरों की प्रगति पर खुश नहीं होते हैं वे खुद
ही जलकर राख हो जाते हैं पर जो दूसरों की प्रगति और खुशी में आनन्द मनाते हैं वे ईश्वर
की नज़र में महान् हैं। मित्रो, ऐसा ही एक महान् व्यक्ति था योहन बपतिस्ता जो अपने जीवन
में बस इतना ही चाहता था कि येसु बढ़ें और खुद घटे।
मित्रो, रविवारीय आराधना विधि
चिन्तन कार्यक्रम के अंतर्गत हम पूजन विधि पंचांग के वर्ष ‘अ’ के दूसरे रविवार के लिये
प्रस्तावित पाठों के आधार पर हम मनन-चिन्तन कर रहे हैं। आइये हम प्रभु के दिव्य वचनों
को सुनें जिसे संत योहन रचित सुसमाचार के पहले अध्याय के 29 से 34 वें पदों से लिया गया
है।
संत योहन, 1, 29-34
29) दूसरे दिन योहन ने ईसा को अपनी ओर आते देखा
और कहा, ‘‘देखो-ईश्वर का मेमना, जो संसार का पाप हरता है। 30) यह वहीं हैं, जिनके
विषय में मैंने कहा, मेरे बाद एक पुरुष आने वाले हैं। वह मुझ से बढ़ कर हैं, क्योंकि वह
मुझ से पहले विद्यमान थे। 31) मैं भी उन्हें नहीं जानता था, परन्तु मैं इसलिए जल
से बपतिस्मा देने आया हूँ कि वह इस्राएल पर प्रकट हो जायें।'' 32) फिर योहन ने यह
साक्ष्य दिया, ‘‘मैंने आत्मा को कपोत के रूप में स्वर्ग से उतरते और उन पर ठहरते देखा।
33) मैं भी उन्हें नहीं जानता था; परन्तु जिसने मुझे जल से बपतिस्मा देने भेजा, उसने
मुझ से कहा था, ÷तुम जिन पर आत्मा को उतरते और ठहरते देखोगे, वही पवित्र आत्मा से बपतिस्मा
देते हैं'। 34) मैंने देखा और साक्ष्य दिया कि यह ईश्वर के पुत्र हैं।''
मित्रो,
मेरा पूरा विश्वास है आपने प्रभु के दिव्य वचनों को ध्यान से पढ़ा है। दिव्य वचन को सुनने
से आपको और परिवार के सभी सदस्यों को आध्यात्मिक लाभ हुए हैं। मित्रो, आज के सुसमचार
में मेरा ध्यान योहन बपतिस्ता की ओर जाता है उनका येसु के बारे में अनुभव उनका वचन उनका
कार्य की प्रशंसनीय है। मुझे संत योहन की तीन बातें बहुत अच्छी लगती हैं।
योहन
का मनोभाव
पहला उनका मनोभाव। योहन ने अपने जीवन काम मिशन को ठीक से समझा था। उसका
कार्य था येसु का मार्ग तैयार करना। उन्होंने इस बात को स्पष्ट रूप से स्वीकार करते हुए
कहा था कि उनके बाद आने वाले हैं वे उनसे महान् हैं। योहन के उत्साहपूर्ण कार्यों को
देख कई सोचने लगे थे कि हो-न-हो योहन ही मसीहा हैं। पर योहन ने इस बात को साफ-साफ बता
दिया कि उनका कार्य तो सिर्फ़ रास्ता तैयार करने का है। संत योहन न कोई झूठी वाह-वाही
लूटी, न ही अपने कार्य को बहुत बड़ा माना बस उन्होंने येसु के आने के पहले अपना दायित्व
निभाया। मित्रो, अपने दायित्व को निभाने के क्रम में योहन ने येसु के बारे में तीन बातें
कहीं। पहली बात, जैसे ही योहन ने येसु को आते देखा उनकी ओर इंगित करते हुए कहा " देखिये
ईश्वर का मेमना जो संसार के पाप हर लेता है।" मित्रो, हम आज के युग में लोगों के बारे
में बातें करने को वक्त नहीं तो जानवरों वो भी मेमना जैसे भोले-भाले जानवर की तो बातें
कौन करे। पुराने जमाने में मेमने एक लोकप्रिय जानवर था। उसकी बलि चढ़ायी जाती थी ताकि
उसके लहु से लोगों को पापों से मुक्ति मिले। येसु के बारे में यह कहा जाना कि वे ‘ईश्वर
के मेमना’ हैं जो संसार के पाप हर लेते हैं। यह सत्य है क्योंकि येसु ने लोगों को बचाने
के लिये अपने जीवन का बलिदान क्रूस पर कर दिया। महत्वपूर्ण बात तो यह है कि योहन ने इस
बात को इंगित किया और इसका साक्ष्य भी दिया। आज जब हम येसु के जीवन का गहराई से समझना
चाहते हैं तो यह हमें चाहिये कि हम इस बात को समझ सकें कि येसु ने हमारी मुक्ति के लिये
ईश्वरीय मेमना बन कर अपना खून बहाया।
येसु पर पवित्र आत्मा दूसरी बात, जिसे
संत योहन ने येसु के बारे में इंगित किया वह है येसु दुनिया में अनादि से विद्यमान हैं।
योहन ने पवित्र आत्मा को येसु पर उतरते देखा है। और बाद में येसु उसी पवित्र आत्मा का
बपतिस्मा लोगों को दिया करेंगे। मित्रो, यहाँ यह बात महत्त्वपूर्ण है कि येसु के सिर
पर पवित्र आत्मा कपोत के रूप में उतरा। जब हम पवित्र आत्मा से बपतिस्मा प्राप्त करते
हैं तो हम ईश्वर के पुत्र पुत्री बन जाते हैं। हम ईश्वरीय परिवार के सदस्य बन जाते हैं
और हमें ईश्वरीय कार्य करने की ज़िम्मेदारी मिल जाती है। हम ईश्वर के मिशन में सहभागी
होने के योग्य बन जाते हैं। मित्रो, इस तरह से योहन का इस तरह का साक्ष्य देना हमारे
लिये अति मह्त्वपूर्ण है।
येसु ईशपुत्र तीसरी बात, जिस ओर संत योहन ने
हमारा ध्यान खींचने का प्रयास किया है वह है कि येसु ईश्वर के पुत्र हैं। अर्थात् ईश्वर
ने येसु को हमारे लिये भेजा है। येसु ईश्वर के पुत्र हैं अर्थात् हम येसु में ईश्वर को
देख सकते हैं जैसा कि योहन बपतिस्ता ने किया। मित्रो, येसु के संबंध में योहन बपतिस्ता
ने जो कुछ भी किया उन बातों पर चिन्तन करने से हम पाते हैं कि योहन ने येसु को ईश्वर
के रूप में पहचाना, उन्हें उस नाम से पुकारा जो येसु के लिये सबसे उपयुक्त है कि येसु
ईश्वर का मेमना हैं। और येसु में ईश्वर के पुत्र के रूप में देख पाया। मित्रो, आज की
दुनिया में की सबसे बड़ी चुनौती है कि हम दुनिया के कोलाहल के बीच येसु की आवाज़ को पहचानें
और ठीक उसी तरह करें जैसा कि प्रभु येसु ने हमें उदाहरण दिया है। येसु ने जीवन भर लोगों
की सेवा में तो अपना जीवन बिताया ही पर उन्हें क्रूस की मृत्यु का सामना भी बड़े ही उदारता
पूर्वक किया।
मित्रो, आज प्रभु हमें बुला रहे हैं ताकि हम संत योहन के समान नम्र
और विनीत बनें तथा अपने दायित्व को बखूबी निभायें। हम संत योहन के समान ही दूसरों की
अच्छाइयों को पहचानें और उसका साक्ष्य दें। मित्रो, यह महत्वपूर्ण है कि हम दूसरों की
प्रगति में आनन्द मनायें औऱ दूसरों की अच्छाइयों से हम खुद तो लाभान्वित हों ही इससे
सारे जग को भी लाभ मिले। मित्रो, कई बार हमारे समाज में लोगों को खुशी नहीं मिलती है
क्योंकि वे अपने मित्रों या पड़ोसियों की खुशी में सरीक नहीं हो पाते हैं। इसके ठीक विपरीत
हम चाहते हैं कि सिर्फ़ मेरा कल्याण हो और मैं ही सबसे ऊपर बना रहूँ। इतना
ही नहीं कई तो ऐसे भी हैं जो चाहते हैं कि दूसरों के हितों के बलिदान पर उनका कल्याण
हो। आज ज़रूरत है इस बात कि हम अपना कर्तव्य पूरा करें खुशी और पूरे उत्साह से।
प्रभु
आज हमें इस बात के लिये भी बुला रहे हैं कि हम येसु के उस उपहार को समझें जिसे उन्होंने
हमारे लिये अपने को मेमने के रूप में बलि चढ़ कर दिया। जीवन का असल सुख खुद के सुखों
के बलिदान में है न कि सभी सुखों को प्राप्त करने की चेष्टा में दूसरों के हितों को कुचलने
में हैं।
नम्रता, परहित व प्रोत्साहन आइये हम संत योहन के समान साक्ष्य देनेवाला
व्यक्ति बनें। आइये हम नम्र और विनीत बनें, आइये हम दूसरों को सुख देना दूसरों की भली
बातों को बढ़ावा देना सीखें। ऐसा करने से हम निश्चय ही हमारे जीवन से हमें स्वंय को आनन्द
तो मिलेगा ही हमारे जीवन से कई लोग प्रेरणा पाकर ईश्वर प्रदत्त सुख के सहभागी हो पायेंगे।