2014-02-07 18:26:41

वर्ष ‘अ’ का चौथा रविवार, येसु का मंदिर में समर्पण


मलाकी 3,1-4
इब्रानियों के नाम पत्र 2, 14-18
संत लूकस 2, 22 - 40
जस्टिन तिर्की, ये.स.


दीपक की कहानी
मित्रो, आज मैं आप लोगों को दीपक की कहानी बतलाता हूँ। एक दिन दीपक एक बस यात्रा की योजना बनायी। उसकी यात्रा एक बड़े शहर से दूसरे बड़े शहर की थी। बस के ड्राइवर ने बतलाया कि यह बस पाँच घंटे की यात्रा के बाद अपने गंतव्य स्थान में पहुँचेगी। खाने-पीने और अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये गाड़ी एक शहर में रुकेगी जहाँ यात्रियों को 20 मिनट का समय होगा। यात्री इस समय भोजन ग्रहण कर पायेंगे और अपने निजी ज़रूरतों से निवृत्त हो पायेंगे। दीपक प्रसन्न था। वह यह सोचता हुआ गाड़ी में सवार हो गया कि शाम तक वह अपने गंतव्य स्थान में पहुँच जायेगा। सब यात्री गाड़ी के अन्दर अपने स्थान ले लिये।गाड़ी चली। दीपक ने अपने मोबाइल निकाले और अपने परिजनों को सूचित कर दिया कि सबकुछ ठीक है। गाड़ी समय पर प्रस्थान कर चुकी है और वह समय पर गंतव्य स्थान पर पहुँच जायेगा। करीब तीन घंटे के बाद गाडी रुकी और यात्री गाड़ी से उतर गये। आसपास कई हॉटल थे। लोग खाना खाने लगे। दीपक भी खाना खाया और समाचार पढ़ते हुए पढ़ने लगा। जब बस चलने ही वाली थी कि दीपक के पास एक माँ अपने तीन माह के बच्चे के साथ घबराती हुई आयी और कहा, ‘प्लीज़ क्या आप मेरे बच्चे को दो पल के लिये गोदी करेंगे’ मैंने हॉटल के अन्दर के बाथरूम में अपना बैग और पर्स छोड़ दिया है। दीपक ने कहा, खुशी से। जाकर ले आइये। दीपक ने बच्चे को गोदी में संभाला और महिला अन्दर गयी। गाड़ी चलने का समय हो चुका था। दीपक बच्चे को संभाले उसकी माँ का इन्तज़ार करता रहा। उसकी माँ दिखाई नहीं थी। वह घबराया। होटल के अन्दर गया। बाथरूम खुले थे। माँ नहीं थी। वह होटल के मालिक के पास गया। बच्चे की माँ के बारे में पूछा उसका कोई पता नहीं चला। ड्राइवर को इसकी सूचना दी गयी। सब यात्री चकित थे आख़िर माँ बच्चे को छोड़कर कहाँ चली गयी। दीपक लोगों के घटना के बारे में बतलाता रहा कि कैसे उस बच्चे की माँ ने कहा था प्लीज़ थोड़ी देर के लिये बच्चे को संभालिये मैं आ रही हूँ, पर वह नही आयी। मात्र तीन महीने का अन्जान बच्चा कितना भारी हो सकता है वह बता नहीं सकता। कुछ देर की अफ़रातफ़री के बाद जब माँ का पता नहीं चला तब स्थानीय लोगों की मदद से उस बच्चे को पास के मदर तेरेसा की धर्मबहनों के सुपूर्द कर दिया गया।

मित्रो, अन्जान बच्चे को संभालना बड़ा भारी है, गोद में रखना एक बोझ है पर यदि उस बच्चे की कोई पहचान होती, उसके माता-पिता होते तो कुछ पल के लिये गोद में रखना आसान और गौरवपूर्ण होता जैसा कि बालक येसु को देखकर सिमेयोन ने कहा, ‘हे प्रभु मुझे अब शांति से विदा कीजिये क्योंकि मैंने मुक्तिदाता को देखा है’।

मित्रो, आज हम रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अन्तर्गत पूजन विधि पँचाग के वर्ष ‘अ’ के चौथे रविवार के लिये प्रस्तावित सुसमाचार पाठ के आधार पर मनन-चिन्तन कर रहे हैं। आज हम प्रभु येसु के मंदिर में समर्पण का त्योहार मना रहे हैं। प्रभु येसु के समर्पण के पर्वोत्सव के दिन ही 2 फरवरी को विश्व समर्पित जीवन दिवस रूप में भी मनाया जाता है। आइये हम आज के सुसमाचार को सुनें जिसे संत लूकस के दूसरे अध्याय के 22 से 40 वें पदों से लिया गया।

संत लूकस 2, 22-40

22) जब मूसा की संहिता के अनुसार शुद्धीकरण का दिन आया, तो वे बालक को प्रभु को अर्पित करने के लिए येरुसालेम ले गये;
23) जैसा कि प्रभु की संहिता में लिखा है: हर पहलौठा बेटा प्रभु को अर्पित किया जाये
24) और इसलिए भी कि वे प्रभु की संहिता के अनुसार पण्डुकों का एक जोड़ा या कपोत के दो बच्चे बलिदान में चढ़ायें।
25) उस समय येरुसालेम में सिमेयोन नामक एक धर्मी तथा भक्त पुरुष रहता था। वह इस्राएल की सान्त्वना की प्रतीक्षा में था और पवित्र आत्मा उस पर छाया रहता था।
26) उसे पवित्र आत्मा से यह सूचना मिली थी कि वह प्रभु के मसीह को देखे बिना नहीं मरेगा।
27) वह पवित्र आत्मा की प्रेरणा से मन्दिर आया। माता-पिता शिशु ईसा के लिए संहिता की रीतियाँ पूरी करने जब उसे भीतर लाये,
28) तो सिमेयोन ने ईसा को अपनी गोद में ले लिया और ईश्वर की स्तुति करते हुए कहा,
29) ''प्रभु, अब तू अपने वचन के अनुसार अपने दास को शान्ति के साथ विदा कर;
30) क्योंकि मेरी आँखों ने उस मुक्ति को देखा है,
31) जिसे तूने सब राष्ट्रों के लिए प्रस्तुत किया है।
32) यह ग़ैर-यहूदियों के प्रबोधन के लिए ज्योति है और तेरी प्रजा इस्राएल का गौरव।''
33) बालक के विषय में ये बातें सुन कर उसके माता-पिता अचम्भे में पड़ गये।
34) सिमेयोन ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उसकी माता मरियम से यह कहा, ''देखिए, इस बालक के कारण इस्राएल में बहुतों का पतन और उत्थान होगा। यह एक चिन्ह है जिसका विरोध किया जायेगा।
35) इस प्रकार बहुत-से हृदयों के विचार प्रकट होंगे और एक तलवार आपके हृदय को आर-पार बेधेगी।
36) अन्ना नामक एक नबिया थी, जो असेर-वंशी फ़नुएल की बेटी थी। वह बहुत बूढ़ी हो चली थी। वह विवाह के बाद केवल सात बरस अपने पति के साथ रह कर
37) विधवा हो गयी थी और अब चौरासी बरस की थी। वह मन्दिर से बाहर नहीं जाती थी और उपवास तथा प्रार्थना करते हुए दिन-रात ईश्वर की उपासना में लगी रहती थी।
38) वह उसी घड़ी आ कर प्रभु की स्तुति करने और जो लोग येरुसालेम की मुक्ति की प्रतीक्षा में थे, वह उन सबों को उस बालक के विषय में बताने लगी।
39) प्रभु की संहिता के अनुसार सब कुछ पूरा कर लेने के बाद वे गलीलिया-अपनी नगरी नाज’रेत-लौट गये।
40) बालक बढ़ता गया। उस में बल तथा बुद्धि का विकास होता गया और उसपर ईश्वर का अनुग्रह बना रहा।

येसु का साक्ष्य
मित्रो, मेरा पूरा विश्वास है कि आपने प्रभु के दिव्य वचनों को ग़ौर किया है और इसके द्वारा और आपके परिवार के सब सदस्यों को आध्यात्मिक लाभ हुए हैं। मित्रो, हमने आज जिस घटना का वर्णन सुना वह उन तीन साक्ष्यों में से एक और अंतिम साक्ष्य है जिसके द्वारा प्रभु येसु अपने जन्म के बाद आम लोगों द्वारा एक मसीहा या मुक्तिदाता रूप में प्रकट किये गये और तीन विभिन्न प्रकार के लोगों ने इसका साक्ष्य दिया।

मित्रो, आप सबों को याद होगा येसु के जन्म के बाद सबसे पहले तो उनके मसीहा होने का साक्ष्य गड़रियों ने दिया। दूसरा साक्ष्य, पूरब से आये तीन ज्ञानियों ने दिया और तीसरा और अंतिम साक्ष्य उस समय दिया गया जब माता मरिया और जोसेफ ने येसु को मंदिर में चढ़ाया। वह सिमेओन और अन्ना ने येसु देखा और सिमयोन ने येसु को गोद में उठाकर कहा कि उन्होंने मुक्ति को देखा है। मित्रो, परंपरा के अनुसार येसु के मंदिर में चढ़ाये जाने के महोत्सव में कलीसिया चार त्योहारों को एक साथ जोड़कर मनाती है। येसु को मंदिर में चढ़ाये जाने की यादगारी, कुँवारी मरिया का शुद्धीकरण, मोमबत्ती को जलाने का त्योहार और सिमेयोन की येसु से मुलाक़ात।

समर्पण
मित्रो, निश्चिय ही येसु का समर्पण का त्योहार हमें विभिन्न प्रेरणायें देता है। जिन बातों ने मुझे प्रभावित किया है वह है ईशपुत्र होने के बावजूद येसु का मंदिर में अर्पण करना ताकि वह पूर्ण रूप से ईश्वर की कृपा से भर जाये और मानव मुक्ति के लिये कार्य करे। 17 वर्ष पहले धन्य जोन पौल द्वितीय ने कहा येसु के समर्पण के त्योहार को विश्व समर्पण दिवस घोषित करते हुए कहा था कि यह समर्पण दिवस तीन बातों के लिये अर्थपूर्ण है। इस दिन हम अपने समर्पित जीवन के लिये धन्यवाद दें, हम सपर्पित जीवन के आनन्द को दूसरों को बतलायें और सपर्पण के अर्थ को गहराई से समझें तथा इसे अपने जीवन से प्रकट करें।

सिमेयोन का समर्पण
मित्रो, आज के प्रभु के सुसमाचार में सिमेओन की वाणी पूर्ण समर्पण को दिखलाती है। उसने येसु को अपनी गोद में उठाकर कहा, ‘हे प्रभु मेरी आँखों ने मुक्ति को देखा है अब मुझे शांति से विदा कर’। मित्रो, यह समर्पण की चरमसीमा है। ऐसा वही व्यक्ति कह सकता है जिसने येसु की मुक्ति का गहरा अहसास किया है। कई बार हम यह सोचने लगते हैं कि हमें तो येसु को गोद में उठाने का अवसर कब मिलेगा, कैसे मिलेग, कहाँ मिलेगा? मित्रो, येसु को पाने या उसे गोद में उठाने का अर्थ है जीवन में येसु की बातों, मूल्यों, कर्मों और मनोभावनाओं से प्रभावित होना और उसे आत्मसात कर लेना और उससे इतना परिपूर्ण हो जाना, मानो उससे बड़ी खुशी और कुछ हो ही नहीं सकती है। अर्थात् येसु में पूर्ण संतुष्टि प्राप्त कर लेना। मित्रो, एक समर्पित व्यक्ति के लिये यह ज़रूरी है कि वह येसु को पहचाने, वह मसीहा को पहचाने, वह पहचाने उस सत्य, मार्ग और जीवन को, जो उसे सच्ची शांति प्रदान करेगा।


समर्पण एक मिशन
मित्रो, जब हम करते हैं कि हम समर्पित है, हम येसु के हैं, हम ईसाई हैं, हम भले अच्छे और सच्चे हैं तो ऐसा कदापि नहीं हो सकता है कि हमने जो खुशी समर्पित जीवन में पायी है उसे दूसरों को न बतलायें। समर्पित व्यक्ति अच्छे, भले और सच्चे कार्यों को बिना बताये नहीं रह सकता है। समर्पित व्यक्ति का हर सोच, बात, कर्म और कदम यही दिखाता है कि उसे प्रभु ने बुलाया है, चुना है और उसके द्वारा वह ईश्वर की महिमा प्रकट कर रहा है। मित्रो, कई बार हम यह सोचने लगते हैं कि समर्पण की ज़िन्दगी सिर्फ़ उनके लिये है जो धर्मसमाजी है या कहें जो किसी विशेष मन्नत के द्वारा अपने आपको प्रभु को सौंप देते हैं। यह सच है वे समर्पित व्यक्ति हैं पर सब कुछ बस उन्हीं के लिये है, ऐसा नहीं है।

समर्पण अर्थात येसु को गले लगाना
प्रत्येक व्यक्ति का जीवन ईश्वर की ओर से दिया गया एक वरदान है। यह वरदान उसे ईश्वर के लिये समर्पित होने के का आमंत्रण है ताकि वह जीवन में सच्ची खुशी और मुक्ति प्राप्त कर सके। इतना ही नहीं ईश्वर चाहते हैं कि हम समर्पित होने की खुशी को हम प्रकट करें, घोषित करें और इसका प्रचार करें। आज प्रभु का हमारे लिये आमंत्रण है कि हम भी येसु के समान ही बल, बुद्धि, और ईश्वरीय अनुग्रह में बढ़ते जायें, खुद ही मुक्ति को देखें, मुक्ति का अनुभव करें और मुक्ति का विस्तार औरों तक भी करें तब ही हमारे समर्पित जीवन का अर्थ पूरा हो जायेगा। और तब हमें येसु को गोद में लेना या उसकी संगति में रहना और उसकी बातें बोलना एक बोझ नहीं होगा जैसा कि दीपक को लगा था पर ठीक इसके विपरीत येसु को गोद में लेने और उसकी खुशी के लिये सर्वस्व सपर्पित कर देने का अपार आनन्द प्राप्त होगा जैसा कि सिमेयोन को हुआ।








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