2014-02-01 14:32:01

लोगों ने पाप का बोध खो दिया है


वाटिकन सिटी, शनिवार 1 फरवरी 2014 (सीएनए): "आज का सबसे बड़ा पाप है लोगों ने पाप का बोध खो दिया है अतः ईश्वर के राज्य का अर्थ तथा स्थान अलौकिक मानवशास्त्रीय दर्शन ने ले लिया है जिसके अनुसार व्यक्ति सोचता है ‘मैं कुछ भी कर सकता हूँ’" यह बात संत पापा फ्राँसिस ने 31 जनवरी को वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास संत मार्था के प्रार्थनालय में पावन ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए कही।
उन्होंने उपदेश में सामुएल के पहले ग्रंथ से लिए गये पाठ पर चिंतन किया जहाँ राजा दाऊद बेथसाईबा के प्रेम जाल में पड़ कर उनके पति उरीयाह की हत्या का षडयंत्र किया था।
संत पापा ने कहा, "राजा दाऊद ने आत्ममारू पाप किया था किन्तु उसे पाप की तरह नहीं देख पाया। यहाँ तक कि वह क्षमा मांगने की कल्पना भी नहीं की बल्कि उसे छिपाये रखने के लिए उपाय सोचने लगा।"
संत पापा ने कहा कि यह हमारे साथ भी हो सकता है। हम सभी पापी हैं, प्रलोभन में पड़ जाते हैं क्योंकि प्रलोभन हमारे दैनिक आहार के समान है। यदि कोई कहता है कि मैं प्रलोभन में कभी नहीं पड़ा तो वह मूर्ख है। यह समझने योग्य बात है क्योंकि यह हमारे जीवन का एक हिस्सा है, एक सामान्य संघर्ष। शैतान कभी स्थिर नहीं रहता, वह अपनी जीत चाहता है।
यहाँ सबसे बड़ी समस्या यह है कि राजा दाऊद व्यभिचार के पाप की गम्भीरता को नहीं समझता है। वह पाप के लिए पश्चताप की चिंता नहीं करता किन्तु उसके कारण आने वाली समस्या के निदान को ढूढ़ता है।
संत पापा ने कहा कि जब ईश्वर के राज्य को भुला दिया जाता है तब वह हमारे मन से ध्वस्त हो जाता है तथा हम में पाप का बोध खत्म हो जाता है और यहीं उस भ्रष्ट मानवीय दृष्टिकोण का जन्म होता है जो कहता है मैं कुछ भी कर सकता हूँ। ईश्वर की महिमा पर मानव शक्ति हावी हो जाती है। हे हमारे पिता की प्रार्थना में हम कहते हैं तेरा राज आवे। मुक्ति हमारी धूर्तता, चलाकी और कारोबार की बुद्धिमता से प्राप्त नहीं की जा सकती है किन्तु ईश्वर की कृपा से प्राप्त होती है तथा उसी कृपा द्वारा एक उत्तम ख्रीस्तीय जीवन जिया जा सकता है।
संत पापा ने कहा, "जब मैं अन्याय, मानवीय घमंड तथा पाप के बोध का अभाव देखता हूँ तो कई निर्दोष लोगों को दुख सहते हुए पाता हूँ। संत पापा ने अंत में प्रार्थना की कि ईश्वर हमें कृपा प्रदान करें जिससे हम पाप के बोध की भावना को न खोयें दें तथा ईश्वर का राज्य हम में नष्ट न होने पाये। हम अपनी सुख-सुविधा के लिए उरीया के समान दूसरों को तकलीफ न दें।"








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