प्रेरक मोतीः आयरलैण्ड की सन्त ब्रिजिड (451-525 ई.)
वाटिकन सिटी, 01 फरवरी सन् 2014
आयरलैण्ड की सन्त ब्रिजिड को किलडेर की सन्त ब्रिजिड
तथा गेल देश की मरियम शीर्षकों से भी जाना जाता है। सन्त पेट्रिक एवं सन्त कोलोम्बा के
साथ साथ सन्त ब्रिजिड भी आयरलैण्ड की संरक्षिका हैं।
ब्रिजिड का जन्म आयरलैण्ड
के फोगार्ट में लगभग सन् 451 ई. में हुआ था। अनुश्रुति है कि ब्रिजिड के पिता दूबताख
उच्चकुल के थे तथा आयरलैण्ड स्थित लाईन्स्टर में आयरी मुखिया थे जबकि उनकी माता ब्रोका
मुखिया के दरबार में दासी थी। दासी की पुत्री होने के बावजूद ब्रिजिड के पिता ने उन्हें
स्वीकार कर लिया था जिससे उनकी शिक्षा दीक्षा दरबार में ही हुई। किशोरावस्था से ही ब्रिजिड
का लगाव समर्पित जीवन के प्रति रहा था इसलिये जब माता पिता ने उनके विवाह का इन्तज़ाम
करना चाहा तब उन्होंने उनपर अपनी इच्छा प्रकट कर दी तथा सन्त माकाईल एवं सन्त मेल के
मार्गदर्शन में धर्मसंघी जीवन की शपथें ग्रहण कर लीं। बताया जाता है कि शपथ ग्रहण समारोह
पर वेदी के समक्ष घुटने टेके हुए जब ब्रिजिड ने लकड़ी का एक पाया छुआ तो वहाँ एक चमत्कार
हुआ। लकड़ी का वह सूखा पाया हरा हो गया और आज भी किसी हरे वृक्ष की लकड़ी की तरह हरा
ही है। उसकी जड़ें भी जमने लगीं और आज भी अनेक रोगी उसे छू कर चंगाई प्राप्त करते हैं।
इसके अतिरिक्त अपने जीवन काल में ब्रिजिड ने अपनी प्रार्थनाओं द्वारा अनेक चमत्कार एवं
चंगाई सम्पादित की।
सन् 468 ई. में, ब्रिजिड, सात अन्य कुँवारियों के साथ, क्रोघान
पहाड़ी पर एकान्त जीवन यापन करने लगीं। दो वर्ष बाद जब उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ने
लगी तब उन्होंने किल-दारा यानि आज के किलडेर में एक मठ की स्थापना की। यह आयरलैण्ड का
सबसे पहला मठ था। ब्रिजिड इस मठ की मठाध्यक्षा बनी। कुछ ही वर्षों में देश के लिये यह
मठ प्रज्ञा, ज्ञान एवं आध्यात्मिकता का प्रमुख केन्द्र एवं गढ़ बन गया और इसी के इर्द
गिर्द किलडेर का महागिरजाघर निर्मित हुआ।
मठ की स्थापना के साथ-साथ ब्रिजिड ने
विभिन्न कलाओं को समर्पित एक स्कूल की भी स्थापना की जिसमें किशोरियों को प्राथमिक चिकित्सा,
साफ सफाई, कढ़ाई, बुनाई. रसाई और सिलाई से लेकर ललित कलाओं का भी प्रशिक्षण दिया जाता
था। विनीत, नम्र, उदार, मृदुभाषी, दृढ़ चरित्र ब्रिजिड की आध्यात्मिकता एवं दरिद्रों
के प्रति उनकी दया असामान्य थी जिसके कारण वे सम्पूर्ण आयरलैण्ड में विख्यात हो गई थी
तथा अनेकानेक युवतियाँ उनसे प्रेरित होकर मठवासी जीवन यापन के लिये तैयार हुई थीं। "गेल
देश की मरियम" किलडेर की मठाध्यक्षा ब्रिजिड का निधन किलडेर में ही पहली फरवरी सन् 525
ई. को हो गया था। सन्त ब्रिजिड का पर्व 01 फरवरी को मनाया जाता है।
चिन्तनः
"जिस मनुष्य पर ईश्वर प्रसन्न है, वह उसे प्रज्ञा, ज्ञान और आनन्द प्रदान करता है;"(उपदेशक
ग्रन्थ 2:26)।