नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने की समलैंगिक यौन सम्बन्धी समीक्षा याचिका खारिज
नई दिल्ली, 29 जनवरी सन् 2014 (ऊका समाचार): भारत की सर्वोच्च अदालत, सुप्रीम कोर्ट ने,
सोमवार को, समलैंगिक यौन को अपराध घोषित करनेवाले अपने निर्णय को बरकरार रखते हुए फ़ैसले
के पुनरावलोकन सम्बन्धी याचिका को खारिज कर दिया। टाईम्स ऑफ इन्डिया के हवाले से
ऊका समाचार ने बताया कि न्यायमूर्ति एच. एल दत्तु और न्यायमूर्ति एस.जे. मुखोपाध्याय
की शीर्ष अदालतीय बेंच ने, केन्द्रीय सरकार, नाज़ फाऊन्डेशन तथा अन्य कई ग़ैरसरकारी संगठनों
की ओर से दायर पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया। दिसम्बर 2013 में दिये एक फ़ैसले
में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक यौन को आजीवन कारावास तक का दंडनीय अपराध घोषित किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 11 दिसंबर को दिल्ली हाई कोर्ट के 2 जुलाई, 2009 के फैसले
को रद्द करते हुए कहा था कि अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध घोषित करने वाली भारतीय दंड
संहिता (आईपीसी) की धारा 377 असंवैधानिक नहीं है। केंद्र सरकार और समलैंगिक यौन सम्बन्धों
की पैरवी करने वाले दूसरे संगठनों का तर्क है कि समलैंगिक यौन रिश्तों का अपराधीकरण इस
समुदाय के मौलिक अधिकारों का हनन है। इसके साथ ही यह भारत में यौन संबंधों को लेकर सभी
नागरिकों को दी गई स्वतंत्रता के भी खिलाफ है। नाज फाऊन्डेशन का दावा है कि शीर्ष अदालत
के पुराने फैसले में अनेक खामियां हैं, जिन्हें दुरुस्त करने की ज़रूरत है।