आन्जेला मेरीची इटली की धर्मबहन थी जिन्होंने
1535 ई. में उरसुलाईन धर्मसंघ की स्थापना की थी। आन्जेला मेरीची का जन्म, 21 मार्च सन्
1474 ई. को, इटली के लोमबारदिया प्रान्त स्थित, गार्दा झील के निकटवर्ती नगर, दोसेनसानो
देल गार्दा, में हुआ था। जब आन्जेला 15 वर्ष की थी तब वे एवं उनकी बहन जान्ना मरिया अनाथ
रह गई थी। माता-पिता की मृत्यु के बाद दोनों बहनें सलो नामक नगर में अपने चाचा के यहाँ
रहने आ गई। कुछ ही समय बाद, अचानक, बहन की भी मृत्यु हो गई। आन्जेला को इस बात का बड़ा
दुख हुआ कि अचानक मृत्यु के कारण उनकी बहन जान्ना मरिया को अन्तिम संस्कार भी न मिल पाये।
बहन की मृत्यु से टूट चुकी आन्जेला ने प्रार्थना की शरण ली तथा सन्त फ्राँसिस के तीसरे
आर्डर में शामिल हो गई। किंवदन्ती है कि प्रार्थना में लीन एक दिन आन्जेला ने अपनी मृत
बहन को सन्तों से घिरा हुआ स्वर्ग में पाया जिससे प्रभु ईश्वर में उनका विश्वास सुदृढ़
हुआ तथा ईश्वर एवं पड़ोसी के लिये समर्पित जीवन यापन हेतु उनमें रुचि जाग्रत हुई।
युवावस्था में आन्जेला एक बहुत ही सुन्दर युवती थी, विशेष रूप से, लोग उनके लम्बे
घने बालों की प्रशंसा किया करते थे। सांसारिक आकर्षण से बचने के लिये आन्जेला ने अपने
सुनहरे बालों को काले रंग से रंग डाला था। जब आन्जेला 20 वर्ष की थी तब उनके चाचा का
भी देहान्त हो गया तथा वे पुनः अपने घर, दोसेनसानो देल गार्दा, लौट आई। शिक्षा के महत्व
को समझनेवाली आन्जेला ने अपने ही घर में किशोरियों एवं युवतियों के लिये कक्षा खोली तथा
अपना सारा समय शिक्षा प्रदान करने में व्यतीत करने लगी। इसी दौरान आन्जेला को दिव्य दर्शन
प्राप्त हुए जिसमें उनसे कहा गया कि वे कुँवारी लड़कियों के धार्मिक प्रशिक्षण के लिये
एक आश्रम की स्थापना करें। इस आश्रम में कई किशोरियाँ एवं युवतियाँ भर्ती हो गई तथा धार्मिक
प्रशिक्षण प्राप्त करने लगी। इस सफलता के बाद आन्जेला को ब्रेश्या में धार्मिक प्रशिक्षण
केन्द्र खोलने का निमंत्रण मिला जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
किंवदन्ती
है कि सन् 1524 ई. में पवित्रभूमि की तीर्थयात्रा के दौरान क्रेटा द्वीप पर आन्जेला ने
अचानक अपनी दृष्टि खो दी। इसके बावजूद, उन्होंने अपनी तीर्थयात्रा जारी रखी तथा जिस स्थल
पर, कुछ सप्ताहों पूर्व, उन्होंने अपनी दृष्टि खोई थी उसी स्थल पर जब वे वापस लौटी तब
क्रूस की प्रतिमा के समक्ष विनती करते समय उनकी दृष्टि पुनः लौट आई। सन् 1525 ई. में,
जयन्ती वर्ष के दौरान, पापमोचन पाने के लिये आन्जेला रोम आई। उस अवसर पर सन्त पापा क्लेमेन्त
सप्तम ने उन्हें रोम में ही रुक जाने के लिये कहा किन्तु आन्जेला को अपनी ख्याति पसन्द
नहीं थी इसलिये वे पुनः ब्रेश्या लौट गई। 25 नवम्बर, सन् 1535 ई. को आन्जेला ने 12 कुँवारियों
का चयन किया तथा ब्रेश्या स्थित सन्त आफ्रा गिरजाघर के निकट "कम्पनी ऑफ सन्त उरसुला"
नामक समूह की स्थापना की। वे चाहती थीं कि इस समूह की कुँवारियाँ, समाज में सामान्य जीवन
यापन करते हुए कलीसिया के मिशन के प्रति समर्पित रहें तथा अपने घरों में रहते हुए कौमार्य
व्रत धारण करें। 18 मार्च, सन् 1537 ई. को आन्जेला मेरिची इस समूह अथवा धर्मसंघ की अध्यक्षा
नियुक्त की गई। 27 जनवरी, सन् 1540 ई. को आन्जेला मेरिची का निधन हो गया। उस वक्त तक
"कम्पनी ऑफ सन्त उरसुला" नामक धर्मसंघ की 24 शाखाएँ खुल चुकी थी। ब्रेश्या के सन्त आफ्रा
गिरजाघर में ही आन्जेला मेरिची को दफनाया गया था। आन्जेला मेरिची का पर्व 27 जनवरी को
मनाया जाता है।
चिन्तनः "मैं जानता हूँ कि ईश्वर जो करता
है, वह सदा बना रहेगा: उस में न कुछ जोड़ा और न कुछ उस से घटाया जा सकता है। ईश्वर यह
इसलिए करता है कि मनुष्य उस पर श्रद्धा रखे"(उपदेशक ग्रन्थ 3:14)।