वाटिकन सिटी, शुक्रवार 10 जनवरी 2014 (सेदोक,वीआर) संत पापा फ्राँसिस ने वाटिकन स्थित
सान्ता मार्था निवास के प्रार्थनालय में वृहस्पतिवार 9 जनवरी को अर्पित दैनिक यूखरिस्तीय
बलिदान में कहा, "प्रेम शब्दों से ज़्यादा कर्मों से प्रकट होता है, प्राप्त करने की
अपेक्षा प्रदान करने में है।"
संत पापा ने वृहस्पतिवार को संत योहन के पहले
पत्र में वर्णित प्रेम के बारे में अपना चिन्तन प्रस्तुत किया। अपने पत्र में संत योहन
कहते हैं कि यदि हम एक दूसरे को प्यार करते हैं तो हममें ईश्वर निवास करता है और उनका
प्रेम हममें पूर्ण हो जाता है।
संत पापा ने कहा कि विश्वास का गहरा अनुभव ‘बने
रहने’ में है। उन्होंने कहा कि ख्रीस्तीय जीवन का अर्थ है - हम ईश्वर में बने रहें और
ईश्वर हममें।
हमें चाहिये कि हम दुनिया की हवा में न बहक जायें, कृत्रिमता, मूर्तिपूजा
और निस्सारता में न बने रहें। हम ईश्वर में बने रहें। कई बार हम उन्हें अपने जीवन से
धक्के मार कर निकाल देते हैं तब हम उनमें बने नहीं रह सकते पर पवित्र आत्मा हममें सदा
बना रहता है।
ईश्वर में बने रहने का अर्थ दिल में मात्र अच्छा अनुभव करना नहीं
है। ईश्वर का प्रेम ठोस और स्पष्ट है। जब येसु प्रेम के बारे में बातें करते हैं तो उनका
प्रेम ठोस है जिसे हम देख सकते हैं ; वह भूखों को खिलाता, रोगियों को देखने जाता और कई
अन्य बातें जिसे वह खुद करता है।
ठोस कार्यों के बिना ख्रीस्तीयता प्रेम की भ्रांति
है जैसा कि चेलों के साथ हुआ था जब उन्होंने येसु को भूत समझा था। चेलों ने येसु को नहीं
पहचाना क्योंकि उनका ह्रदय कठोर था। अगर हमारा ह्रदय कठोर है तो हम प्रेम नहीं कर सकते
और हम प्रेम की बस कल्पना कर सकते है। बिना स्पष्ट कार्यों के प्रेम मात्र एक कल्पना
है, प्रेम नहीं। प्रेम के लिये दो बातें ज़रूरी हैं - सिर्फ़ शब्द नहीं पर ठोस कर्म और
पाना नहीं पर देना।
प्रेम करने वाला देता है, वस्तुएँ, उपहार, दूसरों के लिये
अपना जीवन, ईश्वर के लिये अपना जीवन। ठीक इसके विपरीत जो प्यार नहीं करता वह स्वार्थी
है, पाना चाहता,लाभ कमाना चाहता।
संत पापा ने लोगों से अपील की कि वे अपना दिल
खुला रखें, ईश्वर में बने रहे और प्रेम में बने रहें।