आँठवीं शताब्दी के सन्त एडरियन का जन्म अफ्रीका
में हुआ था। उन्होंने इटली तक जहाज़ से यात्रा की थी तथा नेपल्स के बन्दरगाह पर ख्रीस्तीय
भिक्षुओं के उदार कार्यों से प्रभावित होकर नेरीदा के मठ में भर्ती हो गये थे। उन्हें
कैनटरबरी के महाधर्माध्यक्ष पद पर चुना गया था किन्तु इस ऊँचे पद को ग्रहण करने से उन्होंने
इनकार कर दिया तथा मठ में ही सेवा करते रहने की इच्छा व्यक्त की थी। कुछ समय बाद सन्त
थियोडोर कैनटरबरी के महाधर्माध्यक्ष नियुक्त किये गये तथा उनके साथ इंगलैण्ड की यात्रा
करने की ज़िम्मेदारी एडरियन को सौंपी गई।
सन्त थियोडोर के साथ एडरियन इंगलैण्ड
आ गये तथा कैनटरबरी महाधर्मप्रान्त में सेवा अर्पित करने लगे। बाद में, महाधर्माध्यक्ष
थियोदोर ने उन्हें कैनटरबरी के सन्त पीटर एवं पौल मठ का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। यही
मठ बाद में जाकर सन्त अगस्टीन के मठ नाम से प्रसिद्ध हुआ। मठाध्यक्ष एडरियन के 39 वर्षीय
कार्यकाल के दौरान कैनटरबरी में सन्त अगस्टीन का मठ एक मशहूर ज्ञान पीठ बन गया। 09 जनवरी,
सन् 710 ई. को कैनटरबरी में ही एडरियन का निधन हो गया। उनकी मृत्यु के कुछ ही समय बाद
लोग उनकी समाधि पर श्रृद्धा अर्पित करने पहुँचने लगे तथा दैवीय चमत्कारों के लिये यह
स्थल शीघ्र ही विख्यात हो गया। कलीसिया के आचार्य एवं सन्त एडरियन का पर्व 09 जनवरी को
मनाया जाता है।
चिन्तनः "पुत्र! यदि तुम मेरे शब्दों पर ध्यान दोगे,
मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे, प्रज्ञा की बातें कान लगा कर सुनोगे और सत्य में मन लगाओगे;
यदि तुम विवेक की शरण लोगे और सदबुद्धि के लिए प्रार्थना करोगे; यदि तुम उसे चाँदी
की तरह ढूँढ़ते रहोगे और खजाना खोजने वाले की तरह उसके लिए खुदाई करोगे, तो तुम प्रभु-भक्ति
का मर्म समझोगे और तुम्हें ईश्वर का ज्ञान प्राप्त होगा; क्योंकि प्रभु ही प्रज्ञा प्रदान
करता और ज्ञान तथा विवेक की शिक्षा देता है" (सूक्ति ग्रन्थ 2: 1-6)।