थॉरफिन मध्यकालीन नॉर्वे में हामार के धर्माध्यक्ष
थे। 13 वीं शताब्दी में, वॉलटर दे मूदा थॉरफिन का जन्म नॉर्वे के ट्रॉन्डहाईम में हुआ
था। हामार के धर्माध्यक्ष नियुक्त किये जाने से पहले वे सिस्टरशियन धर्मसमाज के भिक्षु
थे।
वैसे तो सन्त थॉर्नफिन के विषय में हमें बहुत कम जानकारी प्राप्त है किन्तु
इतना तो अवश्य है कि 13 वीं शताब्दी में कलीसिया के अधिकारों की रक्षा के लिये प्रयास
करनेवालों में वे अग्रणी थे। थॉरफिन तथा नॉर्वे के अन्य धर्माध्यक्षों को उस समय, राजगद्दी
पर विराजमान, राजा एरिक द्वितीय के दमन चक्र का सामना करना पड़ा था। सन् 1277 ई. में,
नीदारॉस के महाधर्माध्यक्ष जोन राओदे तथा राजा मागनुस चतुर्थ के बीच एक समझौता हुआ था।
इस समझौते के तहत कलीसिया एवं उसके पुरोहितों को कुछ विशेष अधिकार प्रदान किये गये थे
जैसे धर्माध्यक्षों की नियुक्ति तथा प्रेरितिक क्षेत्रों की रचना आदि।
जब राजा
एरिक द्वितीय नॉर्वे के राजसिंहासन पर बैठा तब उसने याजकवर्ग एवं कलीसिया को विशेषाधिकार
प्रदान करने से इनकार कर दिया तथा कलीसिया की स्वतंत्रता पर कई प्रतिबन्ध लगा दिये। राजा
ने महाधर्माध्यक्ष जॉन राओदे तथा उनके दो मुख्य समर्थकों अर्थात् ऑस्लो के धर्माध्यक्ष
आन्द्रेज़ तथा हामार के धर्माध्यक्ष थॉरफिन को अवैध घोषित कर दिया। अनेक कठिनाइयों का
सामना करते हुए धर्माध्यक्ष थॉरफिन अपने पोतभंग के उपरान्त बैलजियम पहुँचे जहाँ वे तेर
दोएस्त के मठ गये तथा आजीवन वहीं रहे। बैलजियम के इस मठ में ही 08 जनवरी, सन् 1285 ई.
को धर्माध्यक्ष थॉरफिन की निधन हो गया।
अपनी पवित्रता तथा कलीसिया के प्रति
निष्ठा के लिये विख्यात धर्माध्यक्ष थॉरफिन को बैलजियम के तेर दोएस्त मठ में ही दफना
दिया गया था। बहुत सालों तक किसी ने उनकी खास चर्चा नहीं की किन्तु जब मठ के इर्द गिर्द
निर्माण कार्य शुरु हुआ तब खुदाई करने पर उनकी समाधि भी खोदी गई जहाँ से बताते हैं एक
विचित्र और मन को प्रसन्न करनेवाली खुशबु महकने लगी तथा सारे वातावरण में फैल गई। इसी
के बाद से नॉर्वे स्थित हामार के धर्माध्यक्ष थॉरफिन का समाधि पर तीर्थयात्रियों की कतारें
लगना शुरु हो गई। कईयों ने रोगों से मुक्ति प्राप्त की तथा कई चमत्कार हुए जिसके बाद
कलीसिया ने धर्माध्यक्ष थॉरफिन को सन्त घोषित कर दिया। 13 वीं शताब्दी के धर्माध्यक्ष,
सन्त थॉरफिन का पर्व 08 जनवरी को मनाया जाता है।
चिन्तनः "प्रज्ञा का मूल स्रोत
प्रभु पर श्रद्धा है, किन्तु मूर्ख लोग प्रज्ञा और अनुशासन का तिरस्कार करते हैं" (सूक्ति
ग्रन्थ 1: 7)।