सन्त जेनेवीव का जन्म, फ्राँस की राजधानी पेरिस
के निकटवर्ती नानतेर्रे में, लगभग 422 ई. में हुआ था। सात वर्ष की आयु में उनका साक्षात्कार
आक्सेरे के धर्माध्यक्ष सन्त जेरमेन से हो गया था। सन्त जेरमेन उस समय पेलाजियुस के अपधर्म
का खण्डन करने ब्रिटेन से फ्राँस जा रहे थे तथा रास्ते में उन्होंने जेनेवीव के गाँव
नानतेर्रे में पड़ाव किया था। सन्त जेरमेन से साक्षात्कार के बाद जेनेवीव उनकी अनुयायी
बन गई तथा ख्रीस्त के प्रति अपना जीवन समर्पित करने की उन्होंने शपथ ग्रहण कर ली।
जब
फ्रैंक राजा किलदेरिक ने पेरिस पर चढ़ाई की तथा उसे चारों ओर से घेर लिया तब नगर में
अकाल पड़ा तथा लोग भूखे मरने लगे। इस समय जेनेवीव ने महान उदारता का परिचय दिया तथा दीन
दुखियों की तन मन से सेवा की। जेनेवीव की उदारता ने किलदेरिक तथा उसकी सेना का भी मनपरिवर्तन
किया। जेनेवीव के अनुरोध पर कई क़ैदियों को रिहा कर दिया गया तथा लोगों को भोजन देने
के लिये अन्न का आयात शुरु कर दिया गया। जेनेवीव की उदारता, निर्धनों के प्रति उनका प्रेम,
उनकी पवित्रता तथा सिद्धि की सुगंध दूर दूर तक फैल गई तथा किलदेरिक के बाद राजा क्लोविस
भी उनके प्रति आकर्षित हुए। बड़े ध्यान से वे जेनेवीव के प्रवचनों को सुना करते थे तथा
भलाई के कार्यों हेतु प्रेरित होते थे।
जब पेरिस के निवासियों ने सुना कि हूणों
का राजा अत्तिल्ला अपनी विशाल सेना लेकर पेरिस पर चढ़ाई करनेवाला है तब वे जान बचाकर
भागने लगे किन्तु जेनेवीव ने प्रार्थना एवं उपवास द्वारा लोगों में साहस का संचार किया।
ईश्वर का संकेत पाकर जेनेवीव ने लोगों को समझाया कि प्रभु ईश्वर उनकी रक्षा को सदैव तत्पर
रहते हैं इसलिये वे भयभीत न होवें। जेनेवीव की प्रार्थना सुनी गई और अत्तिल्ला अचानक,
किसी कारणवश, पेरिस का रास्ता छोड़कर अपनी विशाल सेना के साथ दूसरे रास्ते से निकल गया।
सन् 522 ई. में धर्मी महिला जेनेवीव का निधन हो गया। सन्त जेनेवीव का पर्व 03 जनवरी को
मनाया जाता है, उन्हें पेरिस की संरक्षिका घोषित किया गया है।
चिन्तनः प्रभु
ईश्वर में अपने विश्वास को सुदृढ़ कर हम जीवन की जंग जीतें।