2014-01-01 12:46:17

वाटिकन सिटीः सन्त पापा फ्राँसिस के शांति सन्देश पर एक नज़र


वाटिकन सिटी, 01 जनवरी सन् 2014 (सेदोक): श्रोताओ, 12 दिसम्बर को वाटिकन ने, विश्व शांति दिवस सन् 2014 के लिये सन्त पापा फ्राँसिस के सन्देश की प्रकाशना की थी। प्रति वर्ष पहली जनवरी को नववर्ष के दिन काथलिक कलीसिया द्वारा घोषित विश्व शांति दिवस मनाया जाता है। "भ्रातृत्व, शांति का आधार एवं मार्ग" 47 वें विश्व शांति दिवस के लिये प्रकाशित सन्त पापा फ्राँसिस के सन्देश का शीर्षक है। आइये इसके मुख्य बिन्दुओं पर दृष्टि डालें..........
47 वें विश्व शांति दिवस सन् 2014 के लिये प्रकाशित अपने सन्देश में सन्त पापा फ्राँसिस ने लिखा है कि भाईचारे के अभाव में शांति एवं सामाजिक न्याय असम्भव है। सन्त पापा के अनुसार भाईचारे का अर्थ इस तथ्य को स्वीकार करना कि सभी पुरुष एवं स्त्रियाँ ईश्वर की सन्तान हैं।
सन्त पापा लिखते हैं: "भ्रातृत्व के बिना न्यायिक समाज एवं ठोस और स्थायी शांति का निर्माण करना असम्भव है।" इसके साथ ही, यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि समकालीन नैतिक निकाय भ्रातृत्व के यथार्थ सम्बन्ध स्थापित करने में असमर्थ हैं इसलिये कि एक सामान्य पिता उसका सन्दर्भ बिन्दु नहीं है परिणामस्वरूप उसकी नींव अधिक नहीं टिक पाती है। लोगों के बीच सच्चा भ्रातृत्व एक अलौकिक पिता की अपेक्षा एवं मांग करता है।
सन्त पापा लिखते हैं कि विशेष रूप मानवीय भाईचारा या मानव बिरादरी प्रभु येसु मसीह में तथा येसु की मृत्यु एवं उनके पुनःरुत्थान द्वारा सम्पोषित होती है। क्रूस उस बिरादरी का निश्चित्त एवं आधारभूत ठिकाना है जिसे मनुष्य ख़ुद सम्पोषित करने में सक्षम नहीं है।
सन्त पापा ने अपने शांति सन्देश में युद्ध, आर्थिक शोषण, अपराध, पर्यावरण प्रदूषण तथा धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन द्वारा मानवीय प्रतिष्ठा पर हो रहे समकालीन हमलों पर चिन्ता व्यक्त की और कहा कि ख्रीस्त में मानव जाति के बीच भाईचारे के प्रति जागरुक रहना आवश्यक है।
उन्होंने कहा, "ठोस परिवार और सामुदायिक संबंधों की कमी के परिणाम स्वरूप "रिश्तों की ग़रीबी" विश्वव्यापी हो गई है।" उन्होंने लिखा, "भाईचारे का पाठ, सबसे पहले, माता-पिता एवं परिवार के सदस्यों की सम्पूरक भूमिकाओं की वजह से, परिवार में ही सीखा जाता है।"
आर्थिक न्याय के संबंध में सन्त पापा ने "आमदनी की असमानता को कम करने और हर व्यक्ति को सेवाओं एवं सुविधाओं, शैक्षणिक संसाधनों, स्वास्थ्य सेवाओं तथा प्रौद्योगिकी के उपयोग की गारंटी देने के लिये प्रभावशाली नीतियों के निर्माण का आह्वान किया ताकि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन की योजना को कार्यान्वित एवं विकसित करने का पूरा मौका मिले।"
विश्व शांति सन्देश में सन्त पापा ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों से "सौम्य एवं सन्तुलित" जीवन शैली अपनाने के साथ-साथ, सासांरिक वस्तुओं से अनासक्ति एवं भ्रातृत्व की अभिव्यक्ति रूप में, अपनी धन-सम्पदा को अन्यों के साथ साझा करने का भी अनुरोध करते हैं।
सन्त पापा के अनुसार वर्तमान आर्थिक संकट विवेक, संयम, न्याय और शक्ति के सगगुणों की पुनखोज का अवसर प्रदान करता है जो मानव गरिमा के अनुकूल समाज के निर्माण एवं संरक्षण के लिये अनिवार्य हैं।
"परमाणु और रासायनिक हथियारों के अप्रसार और सभी दलों के निरस्त्रीकरण" हेतु सन्त पापा अपने तथा अपने पूर्वाधिकारियों के आह्वानों को दुहाराते हैं तथा "हथियारों के बल पर हिंसा एवं मौत के बीज बोनेवाले" सभी लोगों से व्यक्तिगत अपील करते हैं कि वे अपने शत्रुओं में अपने भाईयों एवं बहनों को देखें तथा अपने हिंसक हाथों को रोकें।
सन्त पापा लिखते हैं: "मानव प्राणी मनपरिवर्तन का अनुभव कर सकते हैं, मेरी मंगलकामना है कि यह सबके लिये आशा एवं विश्वास का सन्देश सिद्ध हो, उनके लिये भी जिन्होंने बर्बर अपराध किये हैं क्योंकि ईश्वर पापी की मृत्यु नहीं चाहते अपितु चाहते हैं कि वह मनपरिवर्तन करे और जिये।"
मादक पदार्थों के व्यापार, पर्यावरण को क्षति, काले धन, वित्तीय घाटालों, वेश्यावृत्ति, मानव तस्करी, दास प्रथा एवं आप्रवासियों के शोषण में संगठित अपराध की भूमिका की सन्त पापा निन्दा करते तथा कहते हैं कि छोटे बड़े "सभी अपराधी संगठन ईश्वर का घोर अपमान करते, वे अन्यों को चोट पहुँचाते तथा सृष्टि का नुकसान करते हैं, उनके कृत्य उस समय और अधिक गम्भीर हो उठते हैं जब वे धर्म के नाम पर ऐसा करते हैं।
कारावासों में बन्द क़ैदियों की अमानवीय स्थिति की सन्त पापा कड़ी निन्दा करते तथा इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराते हैं कि यह उनके मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन है। वे क़ैदियों की मानव गरिमा तथा उनके सुधार एवं पुनर्वास का आह्वान करते हैं।
प्राकृतिक संसाधनों के ज़िम्मेदार और न्यायसंगत उपयोग का आह्वान कर सन्त पापा फ्राँसिस कृषि की ओर अभिमुख होते हैं वे लिखते हैं: "यह अच्छी तरह ज्ञात है कि वर्तमान खाद्य उत्पादन पर्याप्त है किन्तु इसके बावजूद लाखों लोग क्षुधा पीड़ित हैं तथा भुखमरी के कारण प्रतिदिन मर रहे हैं, यह अपकीर्तिकर एवं एक वास्तविक कलंक है।"
विश्व शांति दिवस के अन्त में सन्त पापा फ्राँसिस वैश्वीकृत युग का वास्तविकताओं की ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए लिखते हैं, "आज की दुनिया में व्याप्त अन्तर-सम्पर्क और संचार माध्यमों की बढ़ती संख्या राष्ट्रों की एकता और सामान्य नियति के प्रति, शक्तिशाली ढंग से, हममें जागरूकता उत्पन्न करती है किन्तु "उदासीनता के वैश्वीकरण" से चिन्हित विश्व में इस एकता को प्रायः नज़रअन्दाज़ कर दिया जाता है तथा हम शनैः शनैः अन्यों की पीड़ाओं के प्रति ख़ुद को बन्द कर लेते हैं।"








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