वाटिकन सिटीः सन्त स्टीवन के पर्व पर देवदूत प्रार्थना से पूर्व सन्त पापा फ्राँसिस का
सन्देश
वाटिकन सिटी, 26 दिसम्बर सन् 2013 (सेदोक): 26 दिसम्बर को कलीसिया सन्त स्टीवन का पर्व
मनाती है इस उपलक्ष्य में सन्त पापा फ्राँसिस ने सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण
में एकत्र भक्तों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। इससे पूर्व भक्तसमुदाय को सम्बोधित
कर उन्होंने कहाः "प्रिय भाइयो एवं बहनो, धर्म विधि चिन्तन में आठ दिनों तक ख्रीस्तजयन्ती
महापर्व की भव्यता को बरकरार रखा गया हैः समस्त ईशप्रजा के लिये आनन्द का काल। इस अठवारे
के दूसरे दिन, ख्रीस्तजयन्ती के आनन्द में सन्त स्टीवन का पर्व भी शामिल किया जाता है
जो कलीसिया के प्रथम शहीद हैं। प्रेरित चरित ग्रन्थ उन्हें "विश्वास एवं पवित्रआत्मा
से परिपूर्ण धर्मी पुरुष" रूप में हमारे समक्ष प्रस्तुत करते हैं (6:5), जो अन्य छः
व्यक्तियों के साथ जैरूसालेम के प्रथम समुदाय की विधवाओं एवं निर्धन लोगों की सेवा के
लिये चुने गये थे। यही ग्रन्थ उनकी शहादत का वृत्तान्त प्रस्तुत करता हैः जब एक धुआँधार
उपदेश के बाद महासभा के सदस्यों का क्रोध भड़का और उन्हें शहर की दीवारों के बाहर घसीट
कर पत्थरों से मार डाला गया था। स्टीवन भी येसु की तरह ही, अपने हत्यारों के लिये क्षमा
की याचना करते हुए, मर गये (7,55-60)। क्रिसमस के खुशहाल वातावरण में, यह स्मृति
कुछ अलग प्रतीत हो सकती है। क्रिसमस, वास्तव में, जीवन का उत्सव है और हममें शांति और
शांति के भावों को प्रेरित करता है फिर हम क्योंकर इस प्रकार की हिंसक घटना का स्मरण
करते हैं? वस्तुतः, विश्वास के परिप्रेक्ष्य में, सन्त स्टीवन के पर्व का, क्रिसमस के
गहन अर्थ से पूर्ण सामंजस्य है। वस्तुतः, शहादत में, हिंसा प्रेम से पराजित हुई है, मृत्यु
जीवन से पराजित हुई है। कलीसिया, शहीदों के बलिदान में "स्वर्ग में उनके जन्म" को देखती
है। अस्तु, आज हम सन्त स्टीवन के "जन्म" का समारोह मनाते हैं जो ख्रीस्त के जन्म की गहराई
से प्रस्फुटित होता है। येसु उनसे प्रेम करनेवालों की मृत्यु को नवजीवन के भोर में रूपान्तरित
कर देते हैं। स्टीफन की शहादत में उसी भलाई एवं बुराई, घृणा एवं क्षमा,
नम्रता एवं हिंसा के बीच आमना सामना होता है जो ख्रीस्त के क्रूस पर अपने चरम पर थी।
इस प्रकार प्रथम शहीद की स्मृति क्रिसमस के आनन्द के तुरन्त बाद इसलिये आती है ताकि क्रिसमस
की मिथ्या तस्वीर को भंग किया जा सकेः काल्पनिक एवं भावुक तस्वीर जिसका सुसमाचार में
कोई अस्तित्व नहीं है। बेथलेहेम से कलवारी को जोड़कर तथा यह स्मरण दिलाकर कर कि पाप के
विरुद्ध संघर्ष जो क्रूस के संकीर्ण द्वार से होकर गुज़रता है उसी में ईश्वरीय मुक्ति
है, धर्म विधि पाठ हमें देहधारण के यथार्थ मर्म तक ले जाते हैं। यही है वह मार्ग जिसे
येसु ने अपने शिष्यों को दिखाया है जिसका ज़िक्र आज के सुसमाचार में मिलता है "मेरे नाम
के कारण सभी लोग तुमसे बैर करेंगे। किन्तु जो अन्त तक धीर बना रहेगा, उसे मुक्ति मिलेगी।"
सन्त पापा ने कहा कि "इसीलिये, आज हम विशेष रूप से, उन ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों
के लिये विनती करें जो ख्रीस्त एवं उनके सुसमाचार का साक्ष्य देने के कारण भेदभाव सहते
हैं। हम उन भाइयों और बहनों के क़रीब हैं जिनपर, सन्त स्टीवन की तरह अन्यायपूर्ण रूप
से दोष लगाये जाते हैं तथा जो विभिन्न प्रकार की हिंसा का शिकार बनते हैं। ऐसा उन क्षेत्रों
में होता है जहाँ अब तक धार्मिक स्वतंत्रता तथा धर्मपालन की पूर्ण स्वतंत्रता नहीं है।
तथापि, यह उन देशों में भी होता है जहाँ स्वतंत्रता एवं मानवाधिकारों की रक्षा का दावा
तो किया जाता है किन्तु वास्तव में, ख्रीस्तीयों को प्रतिबन्धों एवं भेदभावों का शिकार
बनना पड़ता है। ईसाइयों के लिए यह आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि येसु ने पहले ही घोषित
कर दिया है कि यह सुसमाचार के साक्षी बनने का सुअवसर है। हालांकि, नागर स्तर पर अन्याय
की निंदा की जाना तथा उसे समाप्त करना अनिवार्य है। शहीदों की रानी मरियम हमें
उस विश्वास के साथ ख्रीस्तजयन्ती मनाने में मदद दें जिसकी चमक सन्त स्टीवन तथा समस्त
शहीदों के प्रेम में जगमगाती है। इतना कहकर सन्त पापा ने देवदूत प्रार्थना का पाठ
किया तथा सबके प्रति मंगलकामनाएं अर्पित कर सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।