2013-12-18 12:24:04

प्रेरक मोतीः सन्त ओलिम्पियास (सन् 361-408 ई.)


वाटिकन सिटी, 17 दिसम्बर सन् 2013:

सन्त ग्रेगोरी नासियनसेन ने सन्त ओलिम्पियास को "पूर्वी कलीसिया में विधवाओं का गौरव" की संज्ञा प्रदान कर उनके चरित्र का बखान किया है। ओलिम्पियास का जन्म कॉन्सटेनटीनोपल के एक समृद्ध परिवार में हुआ था। आकर्षक व्यक्तित्व एवं चरित्र की धनवान होने के साथ साथ ओलिम्पियास ने अपार सम्पदा विरासत में पाई थी। कॉन्सटेनटीनोपल के प्रशासक तथा सम्राट थियोदोसियुस महान के कोषाध्यक्ष नेब्रिदियुस से उनका विवाह हुआ था। विवाद के कुछ ही समय बाद ओलिम्पियास विधवा हो गई थी तथा पुनर्विवाह के सभी प्रस्तावों को उन्होंने ठुकरा दिया था।

विधवा होने के उपरान्त ओलिम्पियास ने अपना तन मन और धन निर्धनों की सेवा में लगाने का प्रण कर लिया और उनके इस नेक उद्यम में, सन् 398 ई. में, कॉन्सटेनटीनोपल की प्राधिधर्माध्यक्षीय पीठ पर आसीन, सन्त जॉन क्रिज़ोस्तम उनके सहायक एवं समर्थक बने। प्राधिधर्माध्यक्ष सन्त जॉन क्रिज़ोस्तम के संरक्षण में ओलिम्पियास ने साम्राज्य के ओर-छोर अपना सेवाकार्य आरम्भ किया। उन्होंने कई अस्पतालों एवं अनाथालयों की स्थापना की और साथ ही नूत्रिया से निष्कासित भिक्षुओं को शरण प्रदान की।

ओलिम्पियास के मित्रों की सूची सन्तों के नामों से भरी है; हेलेनापोलिस के महान लेखक पाल्लादियुस उनके विषय में लिखते हैं: "एक वैभवशाली महिला – पवित्रआत्मा से परिपूर्ण एक अनमोल कलश।" जब सन् 404 ई. में प्राधिधर्माध्यक्ष क्रिज़ोस्तम को देश से निकाल दिया गया था तब ओलिम्पियास को भी आततायियों के हाथ उत्पीड़न सहना पड़ा। निकोमेदिया में, निर्वासन में रहते ही, 25 जुलाई सन् 408 ई. को, ओलिम्पियास का निधन हो गया था। पूर्व की कलीसिया की सन्त ओलिम्पियास का पर्व 17 दिसम्बर को मनाया जाता है।


चिन्तनः ओलिम्पियास को लिखे अपने पत्र में सन्त जॉन क्रिज़ोस्तम लिखते हैं: "मैं तुम्हें धन्य कहते रुक नहीं सकता...... जिस उदारता के कारण तुमने अपने अत्याचारियों की दुष्टता पर पर्दा डाला है उसी ने तुम्हें महिमा से पुरस्कृत किया है। इस पुरस्कार को पाकर तुम्हारे सभी दुख दर्द हल्के प्रतीत होंगे तथा अनन्त आनन्द एवं प्रकाश तक तुम्हें ले जायेंगे।"









All the contents on this site are copyrighted ©.