वाटिकन सिटी, शनिवर 14 दिसम्बर 2013 (सेदोक): वाटिकन स्थित प्रेरितिक प्रासाद के संत
मार्था प्रार्थनालय में पवित्र मिस्सा अर्पित करते हुए संत पापा फ्राँसिस ने 13 दिसम्बर
को उपदेश पर हमेशा टिप्पणी करने वालों की निंदा की। उन्होंने कहा, "ख्रीस्तीय जिन्हें
उपदेशकों से नफ़रत है उन्हें हमेशा आलोचना करने के लिए कुछ न कुछ कारण मिल जाता है किन्तु
वे अपने आप में पवित्र आत्मा के प्रति उदार रहने से भय खाते और यह उन्हें उदास बना देता
है।" संत पापा संत मती रचित सुसमाचार पाठ पर चिंतन प्रस्तुत कर रहे थे जहाँ येसु
इस युग के बच्चों की तुलना बाजार में बैठे हुए लोगों से करते हैं जो अपने साथियों को
दोष देते हैं कि उन्होंने उनके आनन्द में साथ नहीं दिया। वे योहन बपतिस्ता को प्रेत लगा
हुआ तथा येसु को पेटू, पियक्कड़ पापियों का मित्र आदि बताते हैं। संत पापा ने कहा,
"असंतुष्टों के लिए कुछ भी सही नहीं होता। वे ईश वाणी के प्रति उदार नहीं रहते हैं इसलिए
उनके पास उपदेशकों की आलोचना करने के लिए हमेशा कारण रहता है।" उन्होंने कहा कि येसु
के युग में लोग फ़रीसियों के समान जटिल धार्मिक एवं नैतिक नियमों में शरण खोजते थे। बिना
किसी उपदेशक के उनके लिए सब कुछ साफ एवं स्पष्ट था। येसु उन्हें याद दिलाते हैं कि उनके
पूर्वज उपदेशकों से बहुत नफ़रत करते थे उन्होंने उन्हें सताया एवं मार डाला। ऐसे लोग
संहिता की सच्चाई को स्वीकार करने का दावा तो करते किन्तु उपदेशकों का तिरस्कार करते
एवं नियम, समझौता एवं अपने विरोध पूर्ण विचारों के पिंजरे में बंद जीवन को पसंद करते
हैं। संत पापा ने कहा यही बात ख्रीस्तीयों के लिए भी लागू होती है जो बंद एवं दुःखी
हैं तथा स्वतंत्र नहीं हैं क्योंकि वे पवित्र आत्मा के प्रति खुला होने से भय खाते हैं।
यही बाधा है जिसे संत पौलुस अपने प्रवचन में क्रूस की बाधा की संज्ञा देते हैं। वे लोग
और अधिक नफरत की भावना से भर जाते हैं जब ईश्वर हम से बातें करते एवं अपने पुत्र येसु
द्वारा हमारी मुक्ति की बात करते हैं। संत पापा ने कहा ये दुःखी ख्रीस्तीय पवित्र
आत्मा तथा उपदेश द्वारा प्राप्त स्वतंत्रता में विश्वास नहीं करते। जो हमें सतर्क करता,
थप्पर मारकर शिक्षा देता है। हम उस सत्य को नकार नहीं सकते कि स्वतंत्रता ही वह तत्व
है जिसके द्वारा कलीसिया विकसित होती है। संत पापा ने प्रार्थना की कि हम दुःखी ख्रीस्तीय
एवं पवित्र आत्मा के प्रति बंद न बनें तथा उपदेश से मिलने वाली स्वतंत्रता से बाधित न
हों।