31 जुलाई, सन् 2002 को, सन्त पापा जॉन
पौल द्वितीय ने, हुवान दियेगो को सन्त घोषित कर वेदी का सम्मान प्रदान किया था।
हुवान
दियेगो का जन्म मेक्सिको में, मेक्सिको सिटी के निकटवर्ती कूआओतितलान में, सन् 1474 ई.
में हुआ था। मेक्सिको के मूल निवासी हुवान दियेगो कृषि परिवार के थे जो किसान होने के
साथ साथ बुनकार एवं मज़दूर रूप में काम कर अपने जीवन का निर्वाह करते थे। बाल्यकाल से
ही हुवान दियेगो को ख्रीस्तीय धर्म की शिक्षा मिली थी तथा ख्रीस्तीय मूल्य उनमें कूट-कूट
कर भरे थे। भोर होते ही वे गिरजाघर का रुख करते थे तथा तेपेयाक पहाड़ी से होते हुए, प्रतिदिन
15 मील पैदल चलकर, ख्रीस्तयाग में शामिल हुआ करते थे। 09 दिसम्बर सन् 1531 ई. को भी यही
हुआ। हुवान गिरजाघर की ओर चले जा रहे थे कि अचानक उन्हें संगीत की ध्वनि सुनाई पड़ी तथा
इन्द्रधनुष से घिरा चमकता बादल दिखाई पड़ा। एक महिला की आवाज़ ने उन्हें पहाड़ी की ऊपर
से पुकारा तथा अपने पास बुलाया। वहाँ मेक्सिकी अज़तेक राजकुमारी के परिधान धारण किये
एक अति सुन्दर युवती ने दियेगो को दर्शन दिये। युवती ने दियेगो के समक्ष अपना परिचय देते
हुए कहा कि वे कुँवारी मरियम थी। उन्होंने दियेगो से निवेदन किया कि वे स्थानीय धर्माध्यक्ष
के पास जाकर दर्शन स्थल पर एक गिरजाघर के निर्माण का उनसे आग्रह करें। युवती ने कहाः
"मेरी उत्कट अभिलाषा है कि इस स्थल पर एक गिरजाघर का निर्माण हो ताकि मैं यहाँ उपस्थित
रहकर अपनी ममता, करुणा, दया एवं सुरक्षा लोगों को प्रदान कर सकूँ............ उनकी शिकवाओं
को सुन सकूँ एवं उनकी दरिद्रता, उनके कष्ट एवं दुख तकलीफ़ों को दूर कर सकूँ क्योंकि मैं
वहीं हूँ जिससे आप भक्तिभाव से प्रार्थना करते हैं।"
धर्माध्यक्ष महोदय दयालु
थे हालांकि पूरी तरह दियेगो पर विश्वास न कर सके। उन्होंने उनसे युवती की पहचान का प्रमाण
मांगा। हुवान दियेगो पहाड़ी के ऊपर जाने के लिये लौटे किन्तु इसी बीच उन्हें ख़बर मिली
कि उनके बीमार चाचा अन्तिम श्वास ले रहे थे तथा मृत्यु के निकट थे। वे पहाड़ी पर न जाकर
पुरोहित को बुलाने के लिये आगे बढ़े तब बीच रास्ते में ही उन्हें युवती ने पुनः दर्शन
दिये तथा उन्हें बताया कि उनके चाचा पूर्ण रूप से स्वस्थ हो चुके थे। तदोपरान्त, युवती
ने हुवान से पहाड़ी पर उसी स्थल पर मिलने का आग्रह किया जहाँ पहली बार युवती दिखाई दी
थी। जब हुवान पहाड़ी पर पहुँचे तो आश्चर्यचकित रह गये क्योंकि बर्फीली ज़मीन पर फूल खिल
गये थे। उन्होंने फूलों को तोड़ा तथा उन्हें धर्माध्यक्ष के समक्ष प्रस्तुत किया। धर्माध्यक्ष
के समक्ष जब फूल प्रस्तुत किये गये तब वे भी आश्चर्य से भर उठे इसलिये कि फूल कास्तीलियन
गुलाब के फूल थे जो मेक्सिको में नहीं उगते थे। धर्माध्यक्ष ने गुलाब के फूलों के साथ-साथ
हुवान के परिधान पर दृष्टि डाली जिसपर युवती की तस्वीर अंकित हो गई थी। इस घटना के बाद
धर्माध्यक्ष ने पहाड़ी पर मरियम के आदर में एक गिरजाघर का निर्माण करवाया जो मेक्सिको
के हज़ारों लोगों के लिये ख्रीस्तीय धर्म के आलिंगन का कारण बना। इसी के बाद से ग्वादालूपे
की मरियम समस्त अमरीका की संरक्षिका घोषित कर दी गई।
30 मई, 1548 ई. को, 74 वर्ष
की आयु में, धर्मी पुरुष हुवान दियेगो का देहान्त हो गया था। 09 दिसम्बर को काथलिक कलीसिया
मेक्सिको के सन्त हुवान दियेगो का स्मृति दिवस मनाती है।
चिन्तनः धन्य
सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने हुवान दियेगो को हम सब के लिये विनम्रता का आदर्श निरूपित
कर उन शब्दों पर मनन का आग्रह किया है जिनका उच्चार उन्होंने मरियम दर्शन के अवसर पर
किया था। मरियम से कहे हुवान दियेगो के शब्द थेः "मैं तो कुछ भी नहीं हूँ, मैं एक छोटी
सी रस्सी हूँ, एक नन्हीं सी सीढ़ी, अन्त का एक छोटा सा छोर, एक पत्ती।"