पहली नवम्बर को कलीसिया सब सन्तों का महापर्व
मनाती है। काथलिक कलीसिया के अतिरिक्त एंगलिकन कलीसिया में इस दिन सब सन्तों का पर्व
मनाया जाता है। पश्चिमी गोलार्द्ध के अधिकांश काथलिक बहुल देशों में इस दिन अवकाश का
दिन होता है तथा काथलिक विश्वासियों से अपेक्षा की जाती है कि वे इस दिन गिरजाघरों में
आयोजित धर्मविधिक समारोहों में शरीक होकर सन्तों के पवित्र जीवन पर मनन चिन्तन करें।
इसके अतिरिक्त, सब सन्तों का पर्व विश्वासियों को सन्तों एवं ख्रीस्तीय इतिहास
के अन्तराल में विश्वास के कारण शहीद हुए काथलिकों पर मनन का सुअवसर प्रदान करता है।
सन्तों का स्मरण करना तथा उनके लिये एक दिन समर्पित रखने की परम्परा चौथी शताब्दी में
आरम्भ हुई थी। तथापि, सन् 609 ई. में सन्त पापा बोनिफात्सियो चतुर्थ ने सन्तों के साथ-साथ
ख्रीस्तीय विश्वास के ख़ातिर शहीद हुए लोगों को भी जोड़ दिया ताकि ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों
को उनपर चिन्तन का मौका मिले तथा वे अपने विश्वास को सुदृढ़ कर सकें। मूलतः, सब सन्तों
एवं शहीदों का पर्व 13 मई को मनाया जाता था किन्तु सन् 837 ई. में सन्त पापा ग्रेगोरी
चतुर्थ ने इस दिन को मनाने के लिये पहली नवम्बर का दिन निश्चित्त कर दिया।
चिन्तनः
"आज हम सब सन्तों का महापर्व मना रहे हैं। यह हमें विशाल जनसमुदाय की ओर दृष्टि लगाने
हेतु आमंत्रित करता है जो पहले से धन्य भूमि तक पहुँच चुके हैं तथा वहाँ से हमें, उस
मुकाम तक पहुँचानेवाले पथ की ओर इंगित कर रहे हैं।" (धन्य सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय,
सब सन्तों का महापर्व 2003)