इटली के फ्राँसिसकम धर्मसमाजी, धर्मप्रचारक
तथा परमधर्मपीठ के राजनयिक, सन्त जॉन का जन्म, इटली के कापीस्त्रानो में, 24 जून, सन्
1386 ई. को हुआ था। वे कापीस्त्रानो के पूर्व जर्मन सामंत के बेटे थे। उन्होंने पेरूजिया
के विश्वविद्यालय से वकालात पास की थी तथा नेपल्स के राजदरबार में वकील थे। नेपल्स के
राजा लाडिसलाव ने उन्हें पेरुजिया के राज्यपाल नियुक्त कर दिया था। पड़ोस के एक नगर के
विरुद्ध लड़ाई में छलपूर्वक उन्हें गिरफ्तार कर बन्दीगृह में डाल दिया गया। जेल से रिहा
होने के बाद, सन् 1416 ई. में, जॉन पेरुजिया के फ्राँसिसकन धर्मसमाज में भर्ती हो गये।
उन्होंने तथा मार्च के सन्त जेम्स ने सिएना के बरनारडीन के अधीन धर्मशास्त्र एवं धर्मतत्वविज्ञान
का प्रशिक्षण पाया। उन्हीं की प्रेरणा से इन्होंने येसु एवं उनकी माता के पवित्र नाम
की भक्ति का प्रचार किया तथा उसे उमब्रिया में लोकप्रिय बनाया।
सन् 1420 ई. में
जॉन ने अपनी प्रतिभाशाली प्रचार प्रेरिताई प्रारम्भ की। अपने पुरोहिताभिषेक के बाद उन्होंने
इटली, जर्मनी, बोहेमिया, ऑस्ट्रिया, हंगरी, पोलैण्ड तथा रूस के विभिन्न शहरों का दौरा
किया तथा सुसमाचार का प्रचार किया। अपने उपदेशों एवं प्रवचनों में इस तेजस्वी वक्ता ने
पश्चाताप एवं मनपरिवर्तन पर बल दिया। उन्होंने इन देशों में कई फ्राँसिसकन मठों की स्थापना
की। जब ऑटोमन साम्राज्य के मुहम्मद द्वितीय, विएना तथा रोम पर, आक्रमण कर रहे थे तब जॉन
70 वर्ष के थे। इस उन्नत आयु के बावजूद, सन्त पापा कलिस्तुस तृतीय ने उन्हें आक्रामक
तुर्कियों के विरुद्ध क्रूसयुद्ध का नेतृत्व करने के लिये प्रेषित किया था। लगभग 70,000
की ख्रीस्तीय सेना का नेतृत्व करते हुए कापीस्त्रानो के जॉन ने, सन् 1456 ई. में, बेलग्रेड
के महासंग्राम में विजय प्राप्त की थी। इसके तीन माह बाद ही, हंगरी के इल्लोक नगर में
कापीस्त्रानो के जॉन का निधन हो गया था। कापीस्त्रानो के सन्त जॉन का पर्व 23 अक्टूबर
को मनाया जाता है। वे सैनिकों की प्रेरिताई में संलग्न पुरोहितों तथा विधिशास्त्रियों
एवं वकीलों के संरक्षक सन्त हैं।
चिन्तनः "प्रभु मैं तेरी शरण आया हूँ, मुझे
कभी निराश मत होने दे। अपने न्याय के अनुरूप मेरा उद्धार कर" (स्तोत्र ग्रन्थ, 31: 1,2)।