2013-10-18 13:55:58

सिद्धांत के शिष्य नहीं, येसु के शिष्य बनें


वाटिकन सिटी, शुक्रवार 18 अक्तूबर, 2013 (सीएनए) संत पापा फ्राँसिस ने कहा, विश्वास को व्यक्तिगत ‘नैतिक’ विचारधारा या सिद्धांत मात्र न बनने दें।"
उन्होंने कहा कि यदि एक ख्रीस्तीय, विचारधारा का शिष्य बनता है तब वह विश्वास को खो देगा।
संत पापा ने उक्त बात उस समय कही जब उन्होंने वृहस्पतिवार 17 अक्तूबर को वाटिकन स्थित अतिथि निवास सांता मार्था के प्रार्थनालय में यूखरिस्तीय बलिदान चढ़ाते हुए लोगों को प्रवचन दिया।
उन्होंने कहा, "ऐसा करने वाले, उस व्यक्ति के समान हैं जिनके हाथों में चाभी है पर दरवाज़ा बन्द है, वे दरवाज़ा खोलते नहीं हैं।"
संत पापा ने कहा, "विश्वास हमसे होकर गुजरता है और एक विचारधारा बन जाता है तब यह लोगों को आलोकित नहीं करता।"
उन्होंने कहा, " ऐसे ख्रीस्तीय साक्ष्य के अभाव में होता है और अगर यह ख्रीस्तीय धर्मसमाजी, पुरोहित या पोप है तो यह कलीसिया के लिये बदतर है।
उन्होंने कहा, "किसी विचारधारा या सिद्धांत का शिष्य बन जाना अर्थात येसु का शिष्य न रह जाना। विचारधारा का शिष्य होने का अर्थ है उस विचारधारा के मनोभाव का शिष्य बन जाना। और ऐसी परिस्थिति में येसु का ज्ञान विचारधारा में परिवर्तित हो जाता है या नैतिक ज्ञान मात्र बन कर रह जाता है।"
संत पापा फ्राँसिस ने कहा, "विचारधारा या सिद्धांत डराता है लोगों को भगाता है और यही कारण है कि कई लोग कलीसिया से दूर हो गये हैँ।
उन्होंने कहा कि यह ख्रीस्तीय विचारधारा एक गंभीर बीमारी है। यह ऐक ऐसी बीमारी है जो नयी नहीं है यह येसु के प्रथम शिष्यों के समय से ही व्याप्त है जिसके बारे में प्रेरित संत योहन अपने प्रथम पत्र में चर्चा करते हैं।
संत पापा ने कहा, "ऐसी मनोभावना उनमें पायी जाती है जो विश्वास की जगह व्यक्तिगत सिद्धांत को पसंद करते हैं, जो नैतिक और रूखी है, बिना दया के।"
पोप ने कहा, "प्रार्थना वह कुँजी है जो विश्वास का द्वार को खोलती है। जब ख्रीस्तीय प्रार्थना नहीं करता है तो वह विचारधारा का शिकार हो जाता है। इसलिये जो ख्रीस्तीय प्रार्थना नहीं करता वह ढींठ है, घमंडी है और विनम्र नहीं है और वह बस अपनी स्वार्थ सिद्धि चाहता है।"
संत पापा ने लोगों के लिये प्रार्थना की ताकि वे प्रार्थना का त्याग कदापि न करें, नम्र बने रहें और येसु के आने के दरवाज़े को खुला रखें।










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