नई दिल्ली, बृहस्पतिवार, 17 अक्तूबर 2013 (उकान): संयुक्त राष्ट्र संघ के एक रिर्पोट
में प्रकाशित किया गया है कि यौन उत्पीड़न की शिकार विस्थापित महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव
की समस्या की अवहेलना की जा रहा है। भारत में आंतरिक विस्थापितों के सामाजिक समावेश
की यूनेस्को रिर्पोट बृहस्पतिवार को प्रकाशित हुई जिसमें कहा गया है, "प्रवासी महिला
मज़दूरों के लिए सुरक्षित प्रवास को बढ़ावा देने की अति आवश्यकता है खासकर, घरेलू मज़दूरों
के लिए जो बेहद कमजोर एवं सामाजिक दृष्टि से संवेदनशील संगठन है।" संयुक्त राष्ट्र
संघ के शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन की रिर्पोट के अनुसार आंतरिक प्रवास में
लिंग परिपेक्ष्य अनिवार्य है जिसकी व्यवस्था का अभाव है। महिला प्रतिवादियों द्वारा
विवाह को प्रवास का प्रमुख कारण बताया गया। यद्यपि अधिकत्तर लोग आर्थिक गतिविधियों में
संलग्न होते हैं तथापि साधारणतः यह दर्ज नहीं किया जाता है। रिर्पोट में कहा गया
है कि महिला प्रवासी विशेषकर निम्न अनौपचारिक मज़दूर रुप में रहती तथा कर्मचारियों के
बीच भेदभाव का सामना करती हैं। नियमित रोजगारों में वे अन्य मजदूरों के बराबर लाभ के
हकदार नहीं होती एवं अधिकत्तर लोग स्वारोजगार की तरह कार्य करती हैं। हालांकि, उन्हें
पुरुष प्रवासियों से भी कम मज़दूरी प्राप्त होती है अन्य सुविधाएँ जैसे प्रसूति अवकाश
या उन से संबंधित छुट्टियाँ तथा कार्य क्षेत्र से अवकाश की सुविधाएँ भी नहीं दी जाती
हैं। उचित स्वच्छता के उपयोग के अभाव का असर उनके स्वस्थ्य पर गंभीर रुप से पड़ता
है किन्तु वे चुपचाप सहती हैं। लिंग संबंधी हिंसा महिलाओं के उत्पीड़न और शोषण का एक
दूसरा प्रमुख मुद्दा है ख़ासकर एजेंट एवं ठेकेदारों के हाथों में। ग़रीबी के कारण वे
यौन व्यापार तक के कार्य हेतु मज़बूर हो जाती हैं।