2013-10-16 11:52:46

वाटिकन सिटीः पाखण्ड के विरुद्ध सन्त पापा फ्राँसिस की चेतावनी


वाटिकन सिटी, 16 अक्टूबर सन् 2013 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने पाखण्ड एवं अपने आप की पूजा के प्रति चेतावनी दी है।
मंगलवार को, वाटिकन स्थित सन्त मर्था आवास के प्रार्थनालय में ख्रीस्तयाग अर्पण के अवसर पर प्रवचन करते हुए सन्त पापा ने कहा अपने आप को सबकुछ मान लेने की पाखण्डी प्रवृत्ति ख्रीस्त के अनुयायियों में भी पाई जाती है। सन्त पापा ने कहा कि इन दुर्गुणों के ख़तरों से बचने के लिये ईश्वर से प्रेम एवं पड़ोसी से प्रेम वाले नियम का वरण अनिवार्य है।
सन्त पापा ने कहा, "स्वतः अपने विचारों के अनुयायी बन जाना अथवा ईश्वर की भक्ति के बदले अपने कल्याण के भक्त बन जाना ही पाखण्ड है।" उन्होंने कहा कि दूसरों की बुराई सिर्फ इसलिये करना कि वे हमारे विचारों से मेल नहीं खाते, सरासर ग़लत तथा ईश्वर एवं पड़ोसी के प्रति प्रेम वाले ख्रीस्तीय धर्म के नियम के विरुद्ध है।
सन्त पौल के शब्दों के सन्दर्भ में सन्त पापा ने उन लोगों की निन्दा की जो ईश्वर को जानते हुए भी स्वतः को ईश्वर से श्रेष्ठ समझते हैं। सन्त पौल के शब्दों को उद्धृत कर उन्होंने कहा, "हालांकि वे ईश्वर को जानते थे तथापि, उन्होंने ईश्वर का गुणगान नहीं किया, ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापित नहीं किया बल्कि सृष्टिकर्त्ता के बजाय प्राणियों की आराधना को पसन्द किया।"
सन्त पापा ने कहा कि यही मूर्तिपूजा है जो ईश सत्य को नकारती है। उन्होंने कहा कि दो हज़ार वर्ष पूर्व सन्त पौल ने उन लोगों का खण्डन किया था जो ईश्वर का परित्याग कर पशु-पक्षियों एवं वृक्षों के पीछे भागने लगे थे किन्तु आज यह समस्या नहीं है। उन्होंने कहा कि आज मूर्तिपूजा के नये प्रकार एवं नये तौर तरीके अस्तित्व में आ गये हैं। उन्होने कहा कि आज के मूर्तिपूजक वे हैं जो स्वतः को सबकुछ समझते, स्वतः को बुद्धिमान मानते तथा वे अपने ही विचारों एवं अपने ही विश्राम के बारे में सोचते हैं।
सन्त पापा ने कहा कि ईश्वर के अस्तित्व से इनकार कर स्वतः को सबकुछ करने में सक्षम मान लेना बुद्धिमानी नहीं अपितु मूर्खता है जिससे हर विश्वासी एवं ख्रीस्त के अनुयायी को सावधान रहना चाहिये।








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