इंगलैण्ड के धर्माध्यक्ष विलफ्रिड का जन्म
नोर्थमबरलैण्ड के एक कुलीन परिवार में, लगभग सन् 633 ई. में हुआ था। किशोरावस्था में
ही उन्होंने समर्पित जीवन का चयन कर लिया था तथा ईश शास्त्र के अध्ययन हेतु गुरुकुल में
भर्ती हो गये थे। लिनडिसफारने, कैनटरबरी, गौल तथा रोम में उन्होंने दर्शन एवं ईशशास्त्र
की पढ़ाई पूरी की तथा पुरोहित अभिषिक्त किये गये।
लगभग 660 ई. में वे नोर्थुम्ब्रिया
लौट आये तथा रिपन में नवस्थापित मठ के मठाध्यक्ष नियुक्त कर दिये गये। सन् 664 ई. में,
विलफ्रिड ने, विटबी की सभा में, रोमी पार्टी के प्रवक्ता की भूमिका निभाई। ईस्टर महापर्व
के लिये रोमी पंचाग का अनुसरण करने हेतु प्रस्तुत अपनी दलीलों के कारण वे एक विख्यात
वक्ता बन गये थे। इस सफलता के बाद राजकुमार आलफ्रिड ने उन्हें नोर्थुम्ब्रिया का धर्माध्यक्ष
नियुक्त कर दिया था। यद्यपि, इसके लिये राजकुमार को अपने पिता राजा ऑसव्यू के विरोध का
सामना करना पड़ा। कई वर्षों तक इस नियुक्ति पर विवाद चलता रहा जिसके उपरान्त सन् 669
ई. में विलफ्रिड धर्माध्यक्षीय पीठ में आ सके। अपने नौ वर्षीय धर्माध्यक्षीय कार्यकाल
के दौरान विलफ्रिड ने नोर्थुम्ब्रिया में कई मठों एवं गिरजाघरों का निर्माण करवाया तथा
किशोरों एवं युवाओं के लिये कई प्रशिक्षण केन्द्र खोले।
नोर्थुम्ब्रिया धर्मप्रान्त
की विशालता को देखते हुए, सन् 668 ई. में, कैनटरबरी के महाधर्माध्यक्ष थेओदोर ने इसे
कई छोटे-छोटे धर्मक्षेत्रों में विभाजित करने का निर्णय लिया जिसका धर्माध्यक्ष विलफ्रिड
ने घोर विरोध किया। उनके विरोध के बावजूद, तत्कालीन राजा एगप्रिथ के समर्थन से पाकर,
महाधर्माध्यक्ष थेओदोर अपने उद्यम में सफल हो गये। धर्माध्यक्ष विलफ्रिड के विरोध के
कारण राजा एगफ्रिथ ने उन्हें यॉर्क से निष्कासित कर दिया। विलफ्रिड अपना प्रकरण लेकर
रोम तक गये। सन्त पापा आगाथो ने विलफ्रिड के पक्ष में निर्णय दिया किन्तु राजा एगफ्रिथ
ने सन्त पापा के आदेश का पालन करने से इनकार कर दिया तथा विलफ्रिड के रोम से लौटने पर
उन्हें गिरफ्तार कर लिया। अन्ततः, विलफ्रिड निष्कासित कर दिये गये। निष्कासन में जीवन
यापन करते समय धर्माध्यक्ष विलफ्रिड ने ग़ैरविश्वासियों के बीच सुसमाचार का प्रचार किया
जिसके परिणामस्वरूप सैक्सन जाति के हज़ारों ने लोगों ने काथलिक धर्म का आलिंगन कर लिया।
सन् 703 ई. में, धर्माध्यक्ष विलफ्रिड सेवानिवृत्त हो गये तथा उन्होंने एकान्त
जीवन यापन आरम्भ कर दिया। त्याग, तपस्या, प्रार्थना और मनन चिन्तन उनकी दिनचर्या बन गई
थी। सन् 709 ई. में धर्माध्यक्ष विलफ्रिड का निधन हो गया था। रोमी कलीसिया द्वारा प्रस्तावित
एवं आदेशित नियमों की पंक्ति में इंगलैण्ड की कलीसिया को लाने तथा समर्पित जीवन में अनुशासन
सुधारों को लाने का श्रेय विलफ्रिड को जाता है। अपने धर्मोत्साह एवं मिशनरी जोश के लिये
भी विलफ्रिड विख्यात थे। सन्त विलफ्रिड का पर्व 12 अक्टूबर को मनाया जाता है।
चिन्तनः सन्त विलफ्रिड से प्रेरणा प्राप्त कर, सभी धर्मसमाजी एवं अभिषिक्त पुरोहित
सार्वभौमिक कलीसिया के परमाध्यक्ष के अधीन रहकर, सुसमाचार की उदघोषणा करें तथा अपने कार्यों
द्वारा प्रभु ईश्वर की स्तुति करें, आमेन!