वाटिकन सिटी, शनिवार, 12 अक्तूबर 2013 (वीआर सेदोक): वाटिकन में धन्य संत पापा जॉन पॉल
द्वितीय के प्रेरितिक विश्व पत्र ‘मुलयेरिस डिगनितातेम’ की रजत जयन्ती के अवसर पर रोम
में आयोजित सेमिनार के प्रतिभागियों को संत पापा फ्राँसिस ने धन्यवाद दिया। संत पापा
ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक पत्र है जो महिलाओं की स्थिति पर विशेष ध्यान देता है। उन्होंने
सभी प्रतिभागियों को सम्बोधित कर कहा, "आप उस विशेष परिच्छेद पर विचार कर रहे हैं जहाँ
कहा गया है कि ईश्वर ने नर और नारी को मानव जाति के रुप में एक विशेष स्थान दिया है।
मानव प्राणी महिला के सिपुर्द किया गया इसका अर्थ क्या है? संत पापा ने कहा कि इसका अर्थ
स्पष्ट है, संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने यह मातृत्व के संदर्भ में कहा। समाज में कई परिवर्तन
होने के बावजूद यह सत्य है कि नारी गर्भ धारण करती तथा बच्चे को जन्म देती है। इस प्रकार
मातृत्व की बुलाहट देकर ईश्वर ने नारी को मानव जाति में एक विशेष कार्य सौंपा है।
संत
पापा ने गौर फ़रमाया कि दो ख़तरे हमेशा साथ रहे हैं, नारी तथा उसकी बुलाहट को नष्ट करना।
पहले का अर्थ है समाज में योग्यता होने पर भी नारी के मातृत्व की भूमिका को कम करना।
दूसरा खतरा है पुरुषों द्वारा उनके महत्व को घटाये जाने के कारण बंधन मुक्त होने की प्रवृति
को बढ़ावा मिलना।
संत पापा ने बल देते हुए कहा कि नारियों में ‘ईश्वर की सृष्टि’
के प्रति विशेष संवेदनशीलता है। खासकर, उनके द्वारा ईश्वरीय करुणा, दया एवं प्यार को
समझने में मदद मिलती है। विश्व पत्र मुलयेरिस डिगनितातेम इसी संदर्भ में है तथा मानवविज्ञान
रहस्योद्घाटन पर आधारित एक गहन चिंतन प्रस्तुत करता है। जहाँ से हम कलीसिया तथा समाज
में नारियों की भूमिका को बेहत्तर समझ सकते हैं।