मोलोकाय के सन्त डेमियन का जन्म, 03 जनवरी,
सन् 18840 ई. को, बैलजियम के त्रेमोलो में हुआ था। बपतिस्मा के अवसर पर उन्हें योसफ दे
व्यूस्टर का नाम प्रदान किया गया था। कुष्ठ रोगियों के बीच अपनी प्रेरिताई के लिये बैलजियम
के पुरोहित डेमियन कोढ़ी पुरोहित एवं मोलोकाय के वीरनायक नामों से विख्यात हो गये थे।
सन् 1864 ई. में, युवा डेमियन को हवाई द्वीप भेज दिया गया था जहाँ होनालुलु में
उनका पुरोहिताभिषेक हुआ। पूरे नौ वर्षों तक वे हवाई द्वीप में अपनी सेवाएँ अर्पित करते
रहे। तदोपरान्त, सन् 1873 ई. में, फादर डेमियन, मोलोकाय स्थित कुष्ठ रोगियों की बस्ती
में सेवाएँ अर्पित करने चले गये। बस्ती के बच्चों के प्रति वे विशिष्ट रूप चिन्तित रहे।
सन् 1885 ई. में फादर डेमियन ख़ुद कुष्ठ रोग से ग्रस्त हो गये किन्तु रोगियों में अपनी
प्रेरिताई को उन्होंने जारी रखा। उनके लिये उन्होंने अस्पताल बनवाये, चिकित्सालयों की
स्थापना की तथा अलग प्राथनागृहों एवं गिरजाघरों का निर्माण करवाया क्योंकि कुष्ठ रोगियों
को अछूत माना जाता था तथा उनके साथ मिलकर प्रार्थना करने में स्वस्थ लोगों की रुचि नहीं
थी। बताया जाता है कि फादर डेमियन ने कुष्ठ रोगियों के लिये कफनों का भी इन्तज़ाम किया।
अपने कारखाने में उन्होंने लगभग 600 लकड़ी के कफ़न तैयार किये थे।
मोलोकाय में,
कुष्ठ रोगियों के बीच रहते ही सन् 1889 ई. में फादर डेमियन का निधन हो गया था। सन् 1977
में, फादर डेमियन को प्रभु सेवक घोषित कर परमधर्मपीठीय सन्त प्रकरण परिषद ने उनके गुणों
का बखान किया गया था तथा उन्हें वेदी का सम्मान प्रदान किये जाने का सन्त पापा से आग्रह
किया था। सन् 1995 में, सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने फादर डेमियन को धन्य तथा 11 अक्टूबर,
सन् 2009 ई. को, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने उन्हें सन्त घोषित किया था।
रोम
में आयोजित फादर डेमियन के सन्त घोषणा समारोह में बेलजियम के राजा आल्बर्ट द्वितीय, रानी
पाओला तथा बैलजियम के प्रधान मंत्री सहित देश के अनेकानेक वरिष्ठ सरकारी एवं कलीसियाई
अधिकारी उपस्थित थे। कुष्ठ रोगियों के वीर प्रेरित, सन्त डेमियन का पर्व, 11 अक्टूबर
को मनाया जाता है।
फादर डेमियन की सन्त घोषणा के अवसर पर, सन्त पापा
बेनेडिक्ट 16 वें द्वारा कहे शब्द, आज चिन्तन के लिये प्रस्तुत हैं:
"फादर डेमियन
ने मोलोकाय जाने का निर्णय लिया ताकि वे समाज से बहिष्कृत एवं परित्यक कुष्ठ रोगियों
की सेवा कर सकें। प्रभु येसु ख्रीस्त के अनुसरण हेतु उन्होंने कुष्ठ रोगियों का रोग अपने
ऊपर ले लिया। ईश वचन का सेवक एक पीड़ित सेवक बन गया, कोढ़ियों के साथ वह कोढ़ी बना और
अनन्त जीवन का भागीदार बना।"