2013-10-05 15:15:51

ईशवचन को सुनें, मिलकर सुसमाचार की घोषणा करें


असीसी, शनिवार, 5 अक्तूबर 2013 (सेदोक): "ईशवचन को सुनें, धर्मबंधु एवं धर्मबहन रुप में मिलकर समाज में सुसमाचार की घोषणा करें, न केवल अच्छे स्थानों में किन्तु उन लोंगों के बीच भी जहाँ लोग पूर्वाग्रह, आदत एवं व्यक्तिगत कमजोरियों आदि से घिरे हों। यह लगातार होता रहा है क्योंकि कलीसिया बढ़ रही है, धर्म परिवर्तन करने के द्वारा नहीं किन्तु कलीसिया के सदस्यों के साक्ष्य द्वारा।" यह बात संत पापा फ्राँसिस ने, शुक्रवार, 4 अक्तूबर को असीसी के संत फ्राँसिस के त्योहार पर असीसी स्थित संत रुफीनो महागिरजाघर में उपस्थित पुरोहितों, धर्मसमाजियों एवं धर्मप्रांत के सभी प्रेरितिक कार्यकर्त्ताओं को संबोधित करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि यही वह गिरजा घर है जहाँ संत फ्राँसिस एवं संत क्लारा ने बपतिस्मा संस्कार ग्रहण किया था। उन्होंने कहा कि बप्तिस्मा की याद करना महत्वपूर्ण है क्योंकि बपतिस्मा संस्कार के द्वारा माता कलीसिया में हमारा जन्म होता है तथा हम ईश्वर की प्रजा में समिलित होते हैं।
संत पापा ने कलीसिया की स्थापना की याद दिलाते हुए कहा कि वह समुदाय जो वास्तव में अपने को ख्रीस्तीय समुदाय कहता है, वह एक आत्मा, एक बपतिस्मा एवं विविध प्रेरिताईयों व सेवा कार्यों से बना होता है।
कलीसिया का सदस्य होना, ईश्वर की प्रजा की संगति में सम्मिलित होना, विभिन्न प्रकार के लोगों का एक विश्वास को जीना एक विशिष्ट कृपा है, यह पवित्र आत्मा का कार्य है जो एकता का आत्मा है तथा एकता को बढ़ावा देता है। संत रुफिनो में संत पापा ने सामुदायिक जीवन के पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमें ईश वचन को सुनने की आवश्यकता है। कलीसिया ईशवचन को सुनने वालों का समुदाय है। संत पापा ने कहा कि कलीसियाई समुदाय का दूसरा बिन्दु है निरंतर आगे बढ़ते रहना। उन्होंने कहा कि हम अकेले नहीं चलते किन्तु ख्रीस्त हमारे साथ चलते हैं। तीसरे बिन्दु पर जोर देते हुए संत पापा ने कहा कि यह है सुसमाचार का प्रचार करना। उन्होंने कहा कि गाँवों में जाकर सुसमाचार की घोषणा करने से न हिचकें। संत फ्राँसिस के उदाहरणों पर चलते हुए ख्रीस्त का प्रचार करें।
असीसी के संत रुफीनो महागिरजाघर के बाद संत पापा ने संत क्लारा कॉन्वेंट की भेंट की। उन्होंने वहाँ की धर्म बहनों से मुलाकात कर कहा कि येसु पर उनके ध्यान, विश्व के लिए उनकी प्रार्थनाएँ, उनका समुदायिक जीवन- एक ‘पारिवारिक जीवन’ है। कॉन्वेंट एक शोधकाग्नि नहीं वरन् एक परिवार है क्योंकि जब समुदायिक जीवन एक परिवार के सदृश्य होता है तब पवित्र आत्मा उस में निवास करता है।










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