प्रेरक मोतीः सन्त कॉसमस एवं सन्त डेमियन (तीसरी शताब्दी)
वाटिकन सिटी, 26 सितम्बर सन् 2013:
सन्त कॉसमस और सन्त डेमियन तीसरी शताब्दी के
दो जुड़वा भाई थे जिनका जन्म अराबिया के सिलिसिया में हुआ था। सिलिसिया आज, तुर्की का
एक भाग है। दोनों भाई चिकित्सक थे तथा ख्रीस्तीय विश्वास में पक्के थे। प्राचीन कलीसियाई
समुदाय के वे सक्रिय सदस्य थे तथा ज़रूरतमन्दों की सहायता को सदैव तत्पर रहा करते थे।
उदारता की भावना में उन्होंने चिकित्सा को केवल अपना पेशा ही नहीं माना बल्कि इसे अपना
मिशन मानकर लोगों को निःशुल्क चिकित्सा प्रदान की।
अपनी उदारता एवं कर्त्तव्य
भाव के लिये कॉसमस और डेमियन लोगों के सम्मान और प्रेम के पात्र बन गये थे। जब सम्राट
दियोक्लेशियन के शासनकाल में ख्रीस्तीयों पर अत्याचार शुरु हुआ तब अपनी पहचान के कारण
ही वे आततायियों द्वारा उत्पीड़न का लक्ष्य बने। लगभग सन् 283 ई. में सिलिसिया के राज्यपाल
लिसियास के आदेश पर उन्हें गिरफ्तार कर, कई प्रकार से उत्पीड़ित किया गया था। कड़ी यातनाओं
के बावजूद उन्होंने ख्रीस्तीय धर्म का परित्याग नहीं किया तथा प्रभु येसु के नाम में
लोगों की निःशुल्क सेवा करते रहने का संकल्प व्यक्त किया। उनके सेवा भाव तथा उदारता से
प्रभावित होकर कई लोगों ने ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन कर लिया था जिसके लिये उन्हें सम्राट
दियोक्लेशियन के काल में कड़ी यातनाएँ तथा अन्ततः मौत का सामना करना पड़ा।
लगभग
सन् 287 ई. में, कॉसमस और डेमियन को क्रूस पर लटका कर पत्थरों से मारा गया और बाद में
उनके सिरों को धड़ से अलग कर मौत के घाट उतार दिया गया। बताया जाता है कि कॉसमस और डेमियन
के तीन छोटे भाइयों ने भी उन्हीं के साथ शहादत प्राप्त की थी। सन्त कॉसमस और सन्त डेमियन
का पर्व 26 सितम्बर को मनाया जाता है। वे चिकित्सकों एवं औषध-विक्रेताओं के संरक्षक सन्त
हैं।
चिन्तनः सन्त कॉसमस और सन्त डेमियन से प्रेरणा प्राप्त कर हम भी अन्यों
की सेवा हेतु तत्पर रहें तथा ईश्वर के सामर्थ्य पर ध्यान लगाना सीखें।