2013-09-25 10:29:27

वर्ष ‘स’ का उन्नीसवाँ रविवार 11 अगस्त, 2013


प्रज्ञा ग्रंथ 11, 6-9
इब्रानियों के नाम, 11, 1-2,8-19
संत लूकस 12, 32-48

जस्टिन तिर्की, ये.स.

दीपक का जवाब
मित्रो, आज मैं आपलोगों को एक घटना के बारे में बताता हूँ जो एक स्कूल में घटी। किसी काथलिक स्कूल में अवकाश के समय कुछ बच्चे खेल रहे थे। खेल में वे इतने मशगूल थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि उनके प्रधान अध्यापक वहाँ आ विराजे थे। प्रधानाध्यापक की आदत थी कि वे बच्चों को कहीं भी कोई भी सवाल पूछ लिया करते थे। उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ। हेडमास्टर तालियाँ बजा कर बच्चों के खेल को रोका और उनसे एक सवाल पूछ ही डाला। उन्होंने बच्चों से कहा प्यारे बच्चों मैं तुमसे एक सवाल पूछना चाहता हूँ। सभी बच्चे हेडमास्टर की ओर देखने लगे। तब उन्होंने कहा कि बच्चो अगर तुम्हारे पास अभी सिर्फ पाँच ही मिनट हो और इसके बाद दुनिया का अन्त हो जाये तो तुम उस पाँच मिनट में क्या करोगे। थोड़ी देर चुम रहने के बाद पहले बच्चे ने कहा कि सर मैं मेरी मम्मी को बहुत प्यार करता हूँ मैं मम्मी के पास जाऊँगा और उन्हें मेरा प्यार भरा चुम्बन दूँगा और इस दुनिया से विदा होने के लिये तैयार हो जाऊँगा।
दूसरे बच्चे ने कहा कि मैं तो आइस्क्रीम बहुत पसंद करता हूँ इसलिये अपने पिता के पास जाऊँगा और उनसे कहूँगा कि पापा मेरे लिये आइसक्रीम खरीद दो और उसे खाते-खाते मैं इस दुनिया से विदा हो जाउँगा। दो बच्चों से अपनी अंतिम इच्छा सुनने के बाद हेडमास्टर ने एक तीसरे लड़के से पूछा दीपक तुम क्या करोगे अगर तुम्हारे पास सिर्फ पाँच मिनट हो और इसके बाद दुनिया का अंत हो जाये। तब दीपक ने तपाक से जवाब दिया सर मैं तो खेल रहा था खेल अंत करने की घंटी नहीं लगी है मैं तो खेलता ही रहूँगा। और जब दुनिया का अंत हो जाये तो में खेलता-खेलता ही दुनिया से चला जाऊँगा।
मित्रो, तीनों बच्चों के जवाब सरल और प्रभावपूर्ण थे फिर भी तीसरे बच्चे के उत्तर से मैं प्रभावित हुआ। दीपक नामक उस बालक का जवाब सरल था पर उसमें छिपी गूढ़ बात से हमारे जीवन की दिशा ही बदल जा सकती है।
मित्रो, रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अंतर्गत पूजन-विधि पंचाँग के वर्ष के उन्नीसवें रविवार के लिये प्रस्तावित पाठों के आधार पर हम मनन चिन्तन कर रहे हैं। मित्रो, प्रभु हमें बताना चाहते हैं कि मनुष्य को सदा तैयार रहना चाहिये। आइये हम प्रभु के दिव्य वचनों को सुनें जिसे संत लूकस के 12 वें अध्याय के 32 से 48 पदों से लिया गया है।
संत लूकस 12, 32-48
32) छोटे झुण्ड! डरो मत, क्योंकि तुम्हारे पिता ने तुम्हें राज्य देने की कृपा की है।
33) ''अपनी सम्पत्ति बेच दो और दान कर दो। अपने लिए ऐसी थैलियाँ तैयार करो, जो कभी छीजती नहीं। स्वर्ग में एक अक्षय पूँजी जमा करो। वहाँ न तो चोर पहुँचता है और न कीड़े खाते हैं;
34) क्योंकि जहाँ तुम्हारी पूँजी है, वहीं तुम्हारा हृदय भी होगा।
35) ''तुम्हारी कमर कसी रहे और तुम्हारे दीपक जलते रहें।
36) तुम उन लोगों के सदृश बन जाओ, जो अपने स्वामी की राह देखते रहते हैं कि वह बारात से कब लौटेगा, ताकि जब स्वामी आ कर द्वार खटखटाये, तो वे तुरन्त ही उसके लिए द्वार खोल दें।
37) धन्य हैं वे सेवक, जिन्हें स्वामी आने पर जागता हुआ पायेगा! मैं तुम से यह कहता हूँ: वह अपनी कमर कसेगा, उन्हें भोजन के लिए बैठायेगा और एक-एक को खाना परोसेगा।
38) और धन्य हैं वे सेवक, जिन्हें स्वामी रात के दूसरे या तीसरे पहर आने पर उसी प्रकार जागता हुआ पायेगा!
39) यह अच्छी तरह समझ लो-यदि घर के स्वामी को मालूम होता कि चोर किस घड़ी आयेगा, तो वह अपने घर में सेंध लगने नहीं देता।
40) तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी तुम उसके आने की नहीं सोचते, उसी घड़ी मानव पुत्र आयेगा।''
41) पेत्रुस ने उन से कहा, ''प्रभु! क्या आप यह दृष्टान्त हमारे लिए कहते हैं या सबों के लिए?''
42) प्रभु ने कहा, ''कौन ऐसा ईमानदार और बुद्धिमान् कारिन्दा है, जिसे उसका स्वामी अपने नौकर-चाकरों पर नियुक्त करेगा ताकि वह समय पर उन्हें रसद बाँटा करे?
43) धन्य हैं वह सेवक, जिसका स्वामी आने पर उसे ऐसा करता हुआ पायेगा!
44) मैं तुम से यह कहता हूँ, वह उसे अपनी सारी सम्पत्ति पर नियुक्त करेगा।
45) परन्तु यदि वह सेवक अपने मन में कहे, 'मेरा स्वामी आने में देर करता है' और वह दास-दासियों को पीटने, खाने-पीने और नशेबाजी करने लगे,
46) तो उस सेवक का स्वामी ऐसे दिन आयेगा, जब वह उसकी प्रतीक्षा नहीं कर रहा होगा और ऐसी घड़ी जिसे वह जान नहीं पायेगा। तब स्वामी उसे कोड़े लगवायेगा और विश्वासघातियों का दण्ड देगा।
47) ''अपने स्वामी की इच्छा जान कर भी जिस सेवक ने कुछ तैयार नहीं किया और न उसकी इच्छा के अनुसार काम किया, वह बहुत मार खायेगा।
48) जिसने अनजाने ही मार खाने का काम किया, वह थोड़ी मार खायेगा। जिसे बहुत दिया गया है, उस से बहुत माँगा जायेगा और जिसे बहुत सौंपा गया है, उस से अधिक माँगा जायेगा।


सच्चा धन
मित्रो, मेरा पूरा विश्वास है कि आपने प्रभु के दिव्य वचनों को ध्यान से पढ़ा है और इससे आपको और आपके परिवार को आध्यात्मिक लाभ हुए हैं। मित्रो, आज के प्रभु के वचनों पर विचार करने से हम पाते हैं कि यहाँ तीन बातों पर विशेष बल दिया गया है। पहली बात तो यह है कि प्रभु चाहते है कि हम सच्चा धन इकट्ठा करें। हम सोचेंगे कि धन तो धन है क्या यह भी सच्चा या झूठा होता है। श्रोताओ सच्चा धन का मतलब है ऐसी चीज़े, ऐसी बातें ऐसे सोचा और ऐसा मनोभाव जिससे खुद को तो आनन्द मिलता ही है दूसरे भी इससे प्रसन्न होते हैं। ऐसी बातें जिसे बाँटने से यह बढ़ता है और इसके द्वारा एक ऐसे समुदाय का निर्माण होता है जहाँ जीने में आंतरिक सुख का अनुभव होता है। यह धन ईमानदारी से कमाया हुआ ऐसा वरदान है जिससे सदा ही मानव मात्र का कल्याण होता है। कभी हम इस धन को प्रेम कहते हैं कभी क्षमा तो कभी सेवा और कभी उदारता। ये सभी मानव के ऐसे गुण हैं जिनके सहारे मानव खुद पर तो विजय प्राप्त करता ही है इससे दूसरों के जीवन में भी परिवर्तन आते हैं। इससे खुद का कल्याण होता है दूसरों का भी हित होता है।
दूसरों की भलाई
मित्रो, तब आप मुझे पूछेंगे कि कई बार हमारे जीवन में ऐसा होता है कि हमे दूसरों की भलाई तो करते हैं पर इससे खुद को ही ठोकर मिलता है। मित्रो, आपलोंगों का सवाल उचित है। मैंने भी एक कहावत सुनी है -भला करे से धक्का पाये। सभी व्यक्ति अच्छाई को तुरन्त नहीं पहचान पाते हैं । पर मित्रो, यही तो है अच्छाई करने वाले की अग्नि परीक्षा। जब लोग हमारी अच्छाई को न देखें न पहचाने और ठीक विपरीत हमसे लाभ उठायें और हमें ही मूर्ख समझें। ऐसे समय में आप अपनी अच्छाई के साथ टिके रहे, स्थिर बने रहे तो समझिये कि आप विजयी हो गये हैं। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अगर आपने यह अपनी अच्छाई पर कायम रहना सीख लिये तो आप मानिये कि आपने अच्छाई, सच्चाई और भलाई की जीत दर्ज़ कर दी है और इससे जो खुशी मिलती है यही है सच्चा धन।

गुण जमा करें
मित्रो, अब हम दूसरी बात पर ग़ौर करें जिसे ईश्वर आज हमें बताना चाहते हैं। वे कहते है कि हमारे दीपक सदा जलते रहें। इस बात को बता कर प्रभु हमें यही बताना चाहते हैं कि हम गुणों को जमा करे। हम सदा अच्छे और सच्चे धन को बढ़ाने का प्रयास करें। हम जो भी भला कार्य करतें हो जो भी भलाई की बात सोचतें हो और भलाई की जो भी योजनायें बनाते हों वह जीवन भर के लिये हो न कि सिर्फ़ कुछ समय के लिये जिससे हमें कुछ लाभ हो। हम सदा इस बात के लिये उत्सुक रहें कि हम ईश्वर के लिये अपना दीपक जलाते रहेंगे और उसमें प्रेम दया क्षमा उदारता और उत्साह रूपी तेल भरते रहेंगे।
सदा तैयार रहें
इतना ही नहीं मित्रो, आज प्रभु हमें एक और बात बताना चाहते हैं वो यह कि हम सदा तैयार रहें। सदा तैयार रहने का अर्थ है हम यह सोचकर जीवन जीयें कि हमें अपने वास्तविक घर वापस लौटना है। हम मन में इस बात को रखकर जीवन का हर कदम उठायें कि हमें एक दिन प्रभु लेने आयेंगे। हम यह सोचकर दूसरों का भला करें दूसरों को क्षमा दें दूसरों का भला सोचें कि यही सच्चा धन है जो हमें इस दुनिया में शांति देगा और इसी को लेकर हम इस दुनिया से विदा लेंगे। अगर हम उस छोटे बालक दीपक की तरह सदा तैयार रहेंगे तो हमें जब भी बुलाया जाये हम मुस्कुराते हुए इस जहान से विदा लेंगे। उस दिन हमें इस बात को न कोई ग़म होगा कि हमने कुछ कार्यों को पूरे नहीं कियें है और न ही किसी के प्रति कोई ग़िला या शिकवा ही होगी कि उन्होंने हमारे लिये कुछ नहीं किया। उस दिन या हम कहें उस क्षण दुनिया में छोड़ने के लिये और प्रभु को दिखाने को हमारे पासे होगी तीन प्रकार के धन – प्रेम, सेवा, क्षमा और उदारता की थैली, न बुझने वाला दीपक और प्रभु के पास लौटने की उत्सुकता और तत्परता।










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