2013-09-25 10:36:00

वर्ष ‘स’ का इक्कीसवाँ रविवार, 25 अगस्त, 2013


नबी इसायस 66,18-21
इब्रानियों के नाम, 12, 5-7,11-13
संत लूकस 13, 22-30
जस्टिन तिर्की, ये.स.

मेंढक की कहानी
मित्रो, आज आप लोगों के एक मेंढक की कहानी बताता हूँ। एक मेंढक एक गाँव के तालाब में रहा करती थी। वह सोचती थी कि उससे बड़ा दुनिया में और कोई नहीं है। उसे लगता था कि वह तालाब की रानी है। उसके सात बच्चे थे। एक दिन बच्चों को छोड़ कर वह बाहर चली गयी थी। बहुत देर हो गयी पर वह घर नहीं लौटी। मेंढक के सातो बच्चे तालाब के किनारे माँ का इन्तज़ार कर रहे थे। माँ नहीं लौटी। वे परेशान थे। इतने ही में एक सभी मेंढकों ने एक विशाल जीव को देखा। वे बहुत ही घबरा गये। यह इतना विशाल था कि उन भय होने लगा कि कहीं उन सब बच्चों को निगल न जाये। यह विशाल जाये और कुछ नहीं पास के गाँव के एक किसान की गाय थी जो तालाब में पानी पीने आयी थी। मेंढकों ने पहली बार गाये को देखा था इसलिये वे परेशान थे। पानी पीकर गाय वापस चली गयी तब मेंढकों ने चैन की साँस ली। कुछ देर के बाद जब मेंढकों की माँ वापस आयी तब सभी बच्चों ने एक स्वर से उत्साहपूर्वक बताया कि उन्होंने एक विचित्र जीव को देखा है। वह बहुत ही विशाल थी। तब माता मेंढक ने कहा कि क्या वह मुझसे भी बड़ी थी। बच्चों ने कहा आप से बहुत बड़ी थी। माता मेंढक ने अपने शरीर को फुलाना शुरु किया और कहा कि क्या वह हमसे भी बड़ी थी। बच्चों ने कहा कि आपसे बहुत बड़ी थी। माता मेंढक ने अपने को और ही अधिक बड़ा किया। और पूछा बच्चों क्या वह विशाल जीव मुझसे भी बड़ी थी। बच्चों ने कहा वह आपसे से कई-कई गुना ज़्यादा बड़ी थी। माता मेंढक अपने को फुलाती रही और बच्चे कहते रहे कि वह इससे बड़ी थी और ऐसा होता रहा। माता अपने को बड़ा करती रही और बच्चे कहते रहे इससे बड़ा इससे बड़ा। फिर ऐसा हुआ कि माता मेंढक फट की आवाज़ के साथ फट गयी और उसका सारा घमण्ड चूर हो गया। मित्रो, रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अंतर्गत पूजनविधि पंचांग के वर्ष के 21वें रविवार के लिये प्रस्तावित पाठों के आधार पर मनन चिन्तन कर रहें हैं। आइये हम प्रभु के दिव्य वचनों को सुनें जिसे संत लूकस के 13वें अध्याय के 22 से 30 पदों से लिया गया है।

संत लूकस, 13-22-30
22) ईसा नगर-नगर, गाँव-गाँव, उपदेश देते हुए येरुसालेम के मार्ग पर आगे बढ़ रहे थे।
23) किसी ने उन से पूछा, ''प्रभु! क्या थोड़े ही लोग मुक्ति पाते हैं?' इस पर ईसा ने उन से कहा,
24) ''सँकरे द्वार से प्रवेश करने का पूरा-पूरा प्रयत्न करो, क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ-प्रयत्न करने पर भी बहुत-से लोग प्रवेश नहीं कर पायेंगे।
25) जब घर का स्वामी उठ कर द्वार बन्द कर चुका होगा और तुम बाहर रह कर द्वार खटखटाने और कहने लगोगे, 'प्रभु! हमारे लिए खोल दीजिए', तो वह तुम्हें उत्तर देगा, 'मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ के हो'।
26) तब तुम कहने लगोगे, 'हमने आपके सामने खाया-पीया और आपने हमारे बाज’ारों में उपदेश दिया'।
27) परन्तु वह तुम से कहेगा, 'मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ के ेहो। कुकर्मियो! तुम सब मुझ से दूर हटो।'
28) जब तुम इब्राहीम, इसहाक, याकूब और सभी नबियों को ईश्वर के राज्य में देखोगे, परन्तु अपने को बहिष्कृत पाओगे, तो तुम रोओगे और दाँत पीसते रहोगे।
29) पूर्व तथा पश्चिम से और उत्तर तथा दक्षिण से लोग आयेंगे और ईश्वर के राज्य में भोज में सम्मिलित होंगे।
30) देखो, कुछ जो पिछले हैं, अगले हो जायेंगे और कुछ जो अगले हैं, पिछले हो जायेंगे।''

सँकरा द्वार
मित्रो, मेरा पूरा विश्वास है कि आपने आज के सुसमाचार को ध्यान से सुना है और इसके द्वारा आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को आध्यात्मिक लाभ हुए हैं। आज के सुसमाचार में अनायास ही जिस वाक्य ने मेरे मन को प्रभावित किया है वह संकरे द्वार से प्रवेश करने का पूरा-पूरा प्रयत्न करो क्योंकि में तुमसे कहे देता हूँ – प्रयत्न करने पर भी बहुत से लोग प्रवेश नही कर पायेंगे। मित्रो, येसु इस कथन के द्वारा हम सबों को यही बताने का प्रयास कर रहे हैं कि हमें मुक्ति सँकरे द्वार से ही मिल सकती है। बड़े-बड़े दरवाज़े आकर्षक हो सकते हैं पर ईश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लिये संकीर्ण द्वार से ही प्रवेश करने की आवश्यकता है। मित्रो, प्रभु के वचनों को सुनने से हमें यह आभास होता है कि स्वर्ग का मार्ग कितना कठिन है। मानवीय दृष्टि से यह सही भी है स्वर्ग का मार्ग अपनाना अर्थात् कई बार उन मार्गों से होकर गुजरना जिधर से कम लोग जाते हैं। कई बार हमने खुद ही महसूस किया है कि स्वर्ग का राज्य संकीर्ण मार्ग है कॉँटों का मार्ग है क्रूस का मार्ग है नम्रता का मार्ग है। कई बार तो हमने लोगों को यह भी कहते हुए सुना है कि स्वर्ग का मार्ग दुःखों का मार्ग है। इन्हीं भावों को हमने लोगों के मुख से कई दूसरे अन्य अभिव्यक्तियों में भी पाया होगा। लोग कहते हैं कुछ पाने के लिये कुछ खोना पड़ता है। मित्रो, प्रभु भी आज हमें बताना चाहते हैं कि जो अपने जीवन में अपने सही लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये दुःख उठाने के लिये तैयार हो जाते हैं, जो नम्रतापूर्वक अच्छे भले और सच्चे मार्ग पर चलने की तकलीफ़ झेलने को तैयार हो जाते हैं उन्हें ही स्वर्ग की खुशी प्राप्त होगी।

बड़ा का नहीं बड़प्पन का विरोध
मित्रो, जब प्रभु कहते हैं कि हम संकरे रास्ते से होकर जाना है तो वे हमसे यही बताना चाहते हैं कि हम नम्र बनें, हम अपने को ईश्वर के सामने छोटा समझें। कई बार हम यह भी सोचने लगते हैं कि बड़ा होने में बुरा ही क्या है। हमने अपने जीवन में इस सच्चाई को भी देखा कि दुनिया के लोग तो बड़े होने की होड़ में लगे हुए है। वे बड़े घर की बात करते हैं बड़े खानदान की बात करते हैं बड़ी गाड़ी बड़ा बंगला बड़ी-बड़ी योजनाओं की बात करते हैं और कई बार यह सोचने लगते हैं कि बिग इज़ बेस्ट’ अर्थात् बड़ा होना ही सबसे अच्छा है। हम इस बात को भूल भी जाते हैं कि बड़ा होने से हमें बड़ी खुशी नहीं मिल जाती है। कई बार मानव बड़ा तो बन जाता है पर बड़ा होता नहीं है।

मित्रो, ऐसा भी नहीं है कि प्रभु बड़े होने का ही विरोध कर रहे हैं। हमें ऐसा न लगे कि प्रभु चौड़े और उँचे द्वार का विरोध कर रहें हैं। प्रभु हमारे धन-दौलत का विरोध कर रहे हैं। पर ऐसा नहीं है प्रभु सिर्फ़ इतना कह रहे हैं कि यदि कोई सांसारिक वस्तुओं के बले-बूते स्वर्ग राज्य की प्राप्ति करना चाहे या इसे खरीदना चाहे तो यह असंभव है। मित्रो, आप मुझे अवश्य पूछेंगे कि आखिर सँकरे मार्ग पर चलने का क्या मतलब है। एक बार प्रेरित संत पौल ने इब्रानियों को एक पत्र लिखा था उसमें उन्होंने कहा था "मेरे पुत्र और पुत्री प्रभु के अनुशासन की उपेक्षा मत करो और उसकी फटकार से हिम्मत मत हारो क्योंकि प्रभु जिसे प्यार करता है उसे दण्ड देता है और जिसे पुत्र या पुत्री मानता है उसे कोड़े लगवाता है।
प्रभु के लिये दुःख
मित्रो, इस बात से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रभु जिन्हें प्यार करते हैं उनका जीवन दुःख-तकलीफों से भरा रहता है। पर ये दुःख-तकलीफ प्रभु के प्यारों को विचलित नहीं करता है बल्कि उनका प्रेम प्रभु के लिये और ही गहरा हो जाता है। ऐसे लोग प्रभु के लिये दुःख उठाने में आनन्द का अनुभव करते हैं। ऐसे लोगों की बस एक प्रार्थना होती है प्रभु, दुःख में और सुख में बस तेरी इच्छा पूरी हो।
मित्रो, जब मैं कहता हूँ कि दुनिया के कुछ लोग ऐसे हैं जिनका जीवन प्रभु के लिये हो गया हो और प्रभु के लिये कुछ भी दुःख उठाना अपने सौभाग्य समझते हैं तो आप यह न सोचें कि ऐसे लोग सिर्फ़ संत और महात्मा ही हैं । बस अपने घर में दृष्टि दौड़ाइये। माँ को देखिये परिवार को प्रसन्न रखने के लिये वह खुद का हिस्सा खाना अपने बच्चों में बाँट देती है । पिता को देखिये अपना खून-पसीना एक करके घर के एक-एक सदस्य के लिये दो जून की रोटी जमा करते हैं।भाई-बहनों को देखिये कितना निर्मल है उनका प्यार और बलिदान, जहाँ एक दूसरे को सुन्दर और सफल बनाने के मार्ग में दुःख-दर्द का अनुभव तो है पर उनके चेहरे में स्वर्गीय खुशी की एक स्पष्ट आभा किसी से छुपा नहीं है।
मित्रो, मेरा तो पूरा विश्वास है कि इस दुनिया का हर व्यक्ति ईश्वर तक पहुँचने के लिये प्रयासरत है पर उनके मार्ग में तीन बड़ी बाधायें हैं। पहली, वह खुद पर, खुद की सफलता और उपलब्धियों पर घमंड करता है। दूसरी, वह अपने भले कार्यों को स्थगित करता है और बुरे कार्यों को इतनी जल्दी यह सोचकर कर डालता है कि क्यों न बहती गंगा में हाथ धो लें। फिर तीसरी, कमजोरी मानव की यह है कि वह जीवन में आने वाली विपत्ति के समय घबरा जाता है और उन सब ही उपायों और बड़े दरवाज़ों का सहारा लेता है जो सरल दिखाई देते हैं पर उन्हें ईश्वर और ईश्वरीय जीवन से दूर कर देता है।

शांति की खोज
मित्रो, एक बात तो निश्चित है कि हम शांति चाहते हैं हम प्रभु को पाना चाहते हैं हम मुक्ति चाहते हैं। हमें यह भी मालूम है कि द्वार सँकरा है हम यह भी जानते हैं कि यह नम्रता का मार्ग है यह प्रभु के लिये दुःख उठाने का मार्ग है यह चुनौतियों के पल प्रभु पर पूर्ण भरोसा करते हुए भले पथ पर चलते रहने का मार्ग है तब क्यों न हम नम्र बने क्यों न हम भला करें क्यों ने बुरी आदतों को छोड़ दें अच्छे कार्यों को तुरन्त कर डालें क्या हम अच्छे कार्यों करना उस समय आरंभ करेंगे जब दरवाज़ा बन्द हो चुका होगा।








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