कालियरि सोमवार 23 सितंबर, 2013 (सीएनए) संत पापा फ्राँसिस ने सरदीनिया के श्रमिकों से
कहा, "ऐसी परिस्थिति में भी जब संस्कृति जो जन से ज़्यादा धन को महत्व देती है - आशावादी
बने रहें।"
संत पापा ने उक्त बात उस समय कही जब उन्होंने अपने इटली के सरदीनिया
प्राँत में अपनी एकदिवासीय प्रेरितिक यात्रा के दौरान श्रमिकों को संबोधित किया।
संत
पापा ने कहा, "आप अपनी आशा की चोरी होने न दें। ऐसी अर्थव्यवस्था जो लोगों को धन-दौलत
को पूजने के लिये बाध्य करती है उसका आधार है ‘फेंकनेवाली संस्कृति’। यह एक ऐसी संस्कृति
है जो दादा-दादियों को दरकिनार करती और युवाओं को फेंकती है। अब समय आ गया है कि हम इसका
बहिष्कार करें।:
ईश्वर चाहते हैं कि दुनिया के केन्द्र में कोई अन्य कोई वस्तु
न रहे पर रहे मानव – नर और नारी, जो अपने श्रम द्वारा दुनिया को आगे बढ़ाते हैं।
संत
पापा ने तैयार भाषण से हटकर बोलते हुए कहा कि जो लोग रोजगार के अभाव में निराशा का अनुभव
करते हैं, मैं उनके साथ हूँ विशेष करके ऐसे युवाओं के साथ जो रोजगार के अभाव में दुःख
झेलते हैं, ऐसे उद्यमी या व्यवसायी जो अनुउचित वातावरण के बावजूद आगे बढ़ने के लिये संघर्ष
कर रहे हैँ।
संत पापा ने कहा, "उनका परिवार भी आर्थिक मंदी के दुष्परिणामों की
मार झेल चुका है। रोजगार का अभाव होने से व्यक्ति यह महसूस करता है कि मानव मर्यादा ही
समाप्त हो गया है।"
ये बातें सिर्फ़ इटली और यूरोपीय देशों के लिये सिर्फ़
लागू नहीं होती हैं पर यह एक ऐसी आर्थिक प्रणाली का दुष्परिणाम है जो मानव के बदले धन
की पूजा करना सिखलाती है।
आज यह कहने की ज़रूरत है कि हम एक न्यायपूर्ण प्रणाली
चाहते हैं जिससे सबका हित हो। जैसा की ईश्वर चाहते हैं नर और नारी प्रणाली के केन्द्र
में हों न कि धन।
संत पापा ने कहा, "आशा हमें आगे ले चलती है, धन हमारी मर्यादा
को नष्ट करती है और अन्यायपूर्ण आर्थिक प्रणाली आशा को ही नष्ट करती है।"
पोप
ने लोगों से आग्रह किया कि कम से कम वे अपने परिवारों में नर और नारी को केन्द्र में
रखें और आशा के साथ आगे बढ़ें - आशा को खोने न दें।
संत पापा फ्राँसिस ने एक
प्रार्थना करते हुए कहा, "येसु आपके पास रोजगार की कोई कमी नहीं थी आप हमें रोजगार दीजिये
और कृपा दीजिये कि हम मेहनत कर सकें, हमें अपनी आशिष दीजिये। "