वाटिकन सिटी, शुक्रवार 20 सितंबर, 2013 (सेदोक, वीआर) संत पापा फ्राँसिस ने 20 सितंबर,
शुक्रवार को वाटिकन स्थित क्लेमिन्टीन सभागार में अंतरराष्ट्रीय काथलिक मेडिकल एसोसिएशन
के प्रतिनिधियों को संबोधित किया।
संत पापा ने कहा कि उन्हें प्रसन्नता है कि
वैज्ञानिकों ने स्वास्थ्य सुविधाओं और दवा के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया है पर
उन्हें भय है कि कहीं वैज्ञानिक ‘जीवन का सेवक’ होने की पहचान को न खो दें।
उन्होंने
कहा कि विकास के साथ इस बात को ध्यान दिया जाना चाहिये विकास का केन्द्र हो मानव का जीवन
जैसा कि विश्व पत्र ‘कारितास इन वेरिताते’ में कहा गया है।
संत पापा ने कहा
कि जीवन को स्वीकार करने से नैतिक भावना मजबूत होती है और यह व्यक्ति को एक-दूसरे के
मदद के लिये सक्ष्म बनाती है। चिकित्सकों का पहला कर्त्तव्य है - जीवन रक्षा और जीवन
का विकास।
संत पापा फ्राँसिस ने कहा कि कलीसिया स्वास्थ्य सेवा से जुड़े विशेषज्ञों,
एवं स्वयंसेवकों के अंतःकरण से अपील करती है कि वे ‘नव मानव जीवन’ की सृष्टि में अपना
योगदान दें।
उन्होंने कहा कि आज लोगों में ‘मुनाफे की मानसकिता’ है तथा ‘बरबादी
की संस्कृति’ बढ़ी है जो लोगों के मन और दिल को कैद किये हुए है जिसके लिये बहुत बड़ी
कीमत चुकानी पड़ती है। इसके लिये मानव जीवन का बलिदान करना पड़ता है विशेष करके ऐसे लोगों
का जो शारीरिक और सामाजिक रूप से कमजोर हैं।
संत पापा ने कहा कि वस्तुओं के मूल्य
हैं और उन्हें बेचा जाता है पर मानव जीवन की एक मर्यादा है जो रुपयों से खरीदी नहीं जा
सकती। इसलिये कलीसिया चाहती है कि बच्चों तथा वृद्धों की रक्षा की जाये विशेष करके जो
बीमार, आजन्मे और विगलांग हैं।
संत पापा ने प्रतिनिधियों से कहा कि वे प्रत्येक
मानव चेहरे में ईश्वर को देखें और ‘जीवन की संस्कृति’ का साक्ष्य दें क्योंकि ईश्वर चाहते
हैं कि जीवन का सुसमाचार के आप प्रचारक बनें।
संत पापा ने कहा कि स्वास्थ्य सेवा
की विश्वसनीयता इस बात पर केवल निर्भर नहीं करती कि आप कितने सक्ष्म या काबिल हैं पर
इस बात पर भी करती है कि आप मानव को कितना प्रेम दिखलाते हैं जो पवित्र और मर्यादापूर्ण
है।