रोमः पवित्रता कलंकों से अधिक शक्तिशाली, सन्त पापा फ्राँसिस
रोम, 17 सितम्बर सन् 2013 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने रोम के पुरोहितों को प्रोत्साहन
देते हुए इस बात का आश्वासन दिया कि हाल की अपकीर्तिकर घटनाएँ कलीसिया की पवित्रता को
अभिभूत नहीं कर सकतीं। रोम के सन्त जॉन लातेरान महागिरजाघर में, सोमवार, 16 सितम्बर
को, रोम धर्मप्रान्त के पुरोहितों से मुलाकात के अवसर पर सन्त पापा ने यह आश्वासन दिया
तथा ईश्वर के प्रेम से अपनी बुलाहट को सजीव रखने का आग्रह किया। सोमवार को पुरोहितों
के संग लगभग दो घण्टों तक चली सभा में सन्त पापा फ्राँसिस ने रोम के एक वयोवृद्ध पल्ली
पुरोहित द्वारा उन्हें प्रेषित पत्र का उत्तर दिया तथा पौरोहित्य मिशन पर पाँच पुरोहितों
द्वारा पूछे गये प्रश्नों पर अपने सुझाव दिये। पल्ली पुरोहित के पत्र के विषय में
उन्होंने कहा, "पत्र अति सुन्दर और सरल है जिसने मेरे हृदय का स्पर्श किया है। पुरोहित
ने अपनी थकावट को मेरे साथ बाँटना चाहा है।" सन्त पापा ने कहा कि थकावट महसूस करना
पुरोहित के लिये स्वाभाविक है किन्तु यह देखना है कि यह थकावट कैसी है। उन्होंने कहा,
"पुरोहित लोगों के साथ सम्पर्क में रहने से थक जाता है किन्तु कभी कभी ऐसा भी होता है
कि लोगों के साथ सम्बन्ध बनाये बिना ही वह थक जाता है और इस थकावट को दूर करने लिये उसे
नींद की गोली खानी पड़ती है।" सन्त पापा ने कहा, "लोगों की मांगें बहुत होती हैं किन्तु
ये लोगों की नहीं ईश्वर की मांगें हैं जिन्हें पूरा करना पुरोहित का दायित्व है और इस
दायित्व के निर्वाह में यदि वह थकता है तो उसे अपनी थकावट को दूर करने के लिये नींद की
गोली नहीं खानी पड़ती।" सन्त पापा ने पुरोहितों से अनुरोध किया कि वे अपनी बुलाहट
के आरम्भिक क्षण की स्मृति को सजीव रखें जो येसु के प्रेम से पोषित होती है तथा "आध्यात्मिक
सांसारिकता" के प्रलोभन में न पड़ें। "आध्यात्मिक सांसारिकता" को परिभाषित करते हुए उन्होंने
कहा कि यह वह "मानवकेन्द्रित व्यवहार" है जिसका लक्ष्य ईश्वर की महिमा के बजाय मानवीय
आध्यात्मिकता को पूर्णता तक ले जाना होता है।