2013-09-16 09:10:33

प्रेरक मोतीः सन्त कॉर्नेलियुस (निधन 253 ई.)


वाटिकन सिटी, 16 सितम्बर सन् 2013:

सन्त कॉनेलियुस 13 मार्च, सन् 251 ई. से 253 ई. यानि शहादत तक, कलीसिया के परमाध्यक्ष थे। सन् 249 ई. से 251 ई. तक, सम्राट देसियुस के शासनकाल में, रोमन साम्राज्य में ख्रीस्तीयों पर घोर अत्याचार हुए। सन्त पापा कॉर्नेलियुस को भी देसियुस के दमनचक्र का शिकार बनना पड़ा। सन् 250 ई. में देसियुस ने एक राजाज्ञा निकाली जिसके अनुसार समस्त नागरिकों को राज्य के अधिकारियों के समक्ष एक धार्मिक बलिदान अर्पित करना था। इनकार करनेवालों के लिये प्राणदण्ड की भी घोषणा कर दी गई थी।

ख्रीस्तीय धर्म के अनुयायी होने के बावजूद अनेक लोगों ने सम्राट के हुक्म के आगे सर झुका लिया ताकि उनकी प्राण रक्षा हो सके तथापि, अनेक ऐसे भी थे जिन्होंने उक्त राजाज्ञा का बहिष्कार कर दिया जिसके लिये उन्हें मार डाला गया। इन्हीं ख्रीस्तीय शहीदों में तत्कालीन सन्त पापा फेबियन भी शामिल थे।

सन् 250 ई. में सन्त पापा फेबियन के निधन के बाद, बहुत समय तक कलीसिया के परमाध्यक्ष का पद खाली रहा इसलिये कि ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों में भी गुट बन गये थे जिनकी सहमति प्राप्त करना टेढ़ी खीर थी। वस्तुतः, देसियुस द्वारा ख्रीस्तीयों पर दमनचक्र के बाद ख्रीस्तीयों में इस बात को लेकर विभाजन उत्पन्न हो गया कि भय के कारण देसियुस के आगे सर झुकानेवालों को वापस कलीसिया में प्रवेश दिया जाये अथवा नहीं। एक ओर, रोम धर्मप्रान्त के पुरोहित नोवेशियन थे जिनका कहना था कि जिन काथलिकों ने भयवश सम्राट देसियुस की आज्ञा का पालन कर अपनी जान बचाई थी उन्हें वापस कलीसिया में प्रवेश नहीं करने दिया जाये जबकि दूसरी ओर, कॉरनेलियुस एवं कार्थेज के धर्माध्यक्ष सिप्रियन थे जिनका कहना था कि पश्चाताप करनेवालों को क्षमा प्रदान की जाये तथा कलीसिया में वापस प्रवेश दे दिया जाये। इसी विवाद को लेकर 14 माहों तक सन्त पापा फेबियन के बाद कलीसिया के परमाध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हो पाई थी।

सन्त पापा फेबियन के बाद 13 मार्च, सन् 251 ई. को कॉरनेलियुस, कलीसिया के 21 वें परमाध्यक्ष नियुक्त किये गये। अपने विरोधी को कलीसिया के परमाध्यक्ष एवं सन्त पापा नियुक्त होते देख नोवेशियन का रोष भड़क उठा। अपना रोष प्रकट करते हुए उन्होंने अपने आप को पोप विरोधी घोषित कर दिया तथा कलीसिया में दरार उत्पन्न कर दी। नोवेशियन ने अपने इस दर्शन का भरसक प्रचार किया कि पापों की क्षमा नहीं दी जा सकती तथा पश्चाताप करनेवाले पापी को केवल न्याय के अन्तिम दिन ही क्षमा मिल सकती थी। इसके विपरीत, सन्त पापा कॉर्नेलियुस ने प्रभु येसु मसीह की क्षमा का उपदेश दिया। मनपरिवर्तन के लिये वे सबको आमंत्रित करते रहे। उनके इस नेक उद्यम में उन्हें सन्त सिप्रियन, सन्त दियोनिसियुस तथा अनेक अफ्रीकी एवं पूर्वी धर्माध्यक्षों का समर्थन मिला जबकि नोवेशियन के साथ केवल रोम के कुछेक याजक एवं लोकधर्मी थे जिन्होंने सन्त पापा कॉर्नेलियुस को कलीसिया का परमाध्यक्ष मानने से इनकार कर दिया था। उसी समय सन्त पापा कॉर्नेलियुस ने 60 धर्माध्यक्षों की एक धर्मसभा बुलाई जिसमें नोवेशियन तथा उनके अनुयायियों को कलीसिया से बहिष्कृत कर दिया गया। इसी धर्मसभा में एक आज्ञप्ति जारी कर यह घोषणा भी की गई कि देसियुस के अत्याचारों से तंग आकर जिन ख्रीस्तीयों ने कलीसिया का परित्याग कर दिया था वे पश्चाताप कर पुनः कलीसिया में लौट सकते थे।

सन्त पापा कॉर्नेलियुस के परमाध्यक्षीय काल में कलीसिया का अत्यधिक विकास हुआ तथा अनेक कलीसियाई लोकोपकारी संस्थाओं की स्थापना हुई जिनके द्वारा प्रतिदिन कम से कम 1500 लोगों को मुफ्त में भोजन दिया जाता था। इसके अतिरिक्त, सन्त पापा कॉरनेलियुस की उदारता से रोगियों, विधवाओं एवं अनाथ बच्चों के लिये कई आश्रम एवं अस्पताल खोले गये तथा प्रभु ख्रीस्त के प्रेम का साक्ष्य दिया गया। दुर्भाग्यवश, सन् 253 ई. में रोमी सम्राट गाल्लुस के शासनकाल में ख्रीस्तीयों का उत्पीड़न पुनः आरम्भ हो गया। सन्त पापा कॉर्नेलियुस को रोम परिसर स्थित चिवितावेखिया के चेन्तो चेल्ले में निष्कासित कर दिया गया जहाँ कठोर एवं क्रूर जीवनचर्या के चलते उनकी मृत्यु हो गई। शहीद सन्त कॉर्नेलियुस का पर्व 16 सितम्बर को मनाया जाता है।

चिन्तनः धन्य हैं वे, जो निर्दोष जीवन बिताते हैं, जो प्रभु की संहिता के मार्ग पर चलते हैं! धन्य हैं वे, जो उसके आदेशों का पालन करते और उन्हें हृदय से चाहते हैं, जो अधर्म नहीं करते और उसके बताये हुए मार्ग पर चलते हैं" (स्तोत्र ग्रन्थ 119: 1-3)।








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