2013-09-09 08:53:14

प्रेरक मोतीः सन्त पीटर क्लावर (1580-1654 ई.)


वाटिकन सिटी, 09 सितम्बर सन् 2013:

स्पेन के काटालोनिया प्रान्त के वेरदू में, एक निर्धन तथापि, प्रतिष्ठित परिवार में सन् 1580 ई. में पीटर क्लावेर का जन्म हुआ था। येसु धर्मसमाज द्वारा संचालित विद्यालय से प्राथमिक एवं हाईस्कूल की शिक्षा प्राप्त कर लेने के बाद, सन् 1602 ई. में, पीटर क्लावेर तारागोना स्थित येसु धर्मसमाजी नवदीक्षार्थी प्रशिक्षण केन्द्र में भर्ती हो गये तथा दो वर्षों बाद उन्होंने येसु धर्मसमाज के सदस्य रूप में शपथें ग्रहण कर ली। दर्शन और ईश शास्त्र के अध्ययन के लिये, युवा पीटर को, मायोरका भेज दिया गया जहाँ वे सन्त आल्फोन्सुस रोडरिग्ज़ के सम्पर्क में आये तथा उनसे प्रभावित होकर ईन्डीज़ में सुसमाचार के सन्देश की उदघोषणा हेतु निकल पड़े।

सन् 1610 ई. में पीटर क्लावेर कार्ताजेना अर्थात् वर्तमान कोलोम्बिया पधारे, जो उस समय नवीन विश्व का प्रमुख दास बाज़ार था और जहाँ प्रति माह कम से कम हज़ार दासों को समुद्री जहाज़ों से उतारा जाता था। सन् 1616 ई. में अपने पुरोहिताभिषेक के बाद युवा पुरोहित पीटर क्लावेर ने एक विशिष्ट शपथ ग्रहण कर अश्वेत दासों की सेवा के प्रति समर्पण की वचनबद्धता व्यक्त की। यही उनके जीवन का मिशन बन गया था जिसका निर्वाह वे 33 वर्षों तक निष्ठापूर्वक करते रहे। अफ्रीकी दासों की रिहाई तथा नीग्रो दास व्यापार के उन्मूलन के लिये वे अथक परिश्रम करते रहे।

दासों से भरे जहाज़ों के बन्दरगाह पर आते ही पीटर क्लावेर पानी से भरे मशक एवं भोजन लेकर वहाँ उपस्थित हो जाया करते थे तथा भूखे दासों को तृप्त करते थे; उन्हें चिकित्सा प्रदान करते तथा परित्यक्तों को प्रतिष्ठापूर्ण जीवन का आश्वासन देते। उनके कल्याणकारी कार्यों से प्रभावित होकर लगभग तीन लाख अश्वेत दासों ने ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन कर लिया था तथा सुसमाचार से आलोक प्राप्त किया था। जहाज़ों से उतरनेवाले दासों की सेवा केवल बन्दरगाहों तक ही सीमित नहीं थी बल्कि पीटर क्लावेर उनके साथ साथ उन खेतों एवं बाग़ानों तक जाते थे जहाँ इन दासों से दिन रात कड़ी मेहनत कराई जाती थी। वे उन्हें अपनी पीड़ाओं को ईश्वर के अर्पित करना सिखाते तथा उनके अधिकारों के लिये संघर्ष किया करते थे। दासों की सेवा को समर्पित सन्त पीटर क्लावेर का निधन, सन् 1654 ई. में, हो गया था। 09 सितम्बर को पीटर क्लावेर का पर्व मनाया जाता है।

चिन्तनः हम को प्राप्त अनुग्रह के अनुसार हमारे वरदान भी भिन्न-भिन्न होते हैं। हमें भविष्यवाणी का वरदान मिला, तो विश्वास के अनुरूप उसका उपयोग करें; सेवा-कार्य का वरदान मिला, तो सेवा-कार्य में लगे रहें। शिक्षक शिक्षा देने में और उपदेशक उपदेश देने में लगे रहें। दान देने वाला उदार हो, अध्यक्ष कर्मठ हो और परोपकारक प्रसन्नचित हो। आप लोगों का प्रेम निष्कपट हो। आप बुराई से घृणा तथा भलाई से प्रेम करें" (रोमियों 12: 7-6)








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