वाटिकन सिटीः भारत के मंलकार ऑरथोडोक्स सिरियाई से सन्त पापा ने कहा "साक्षात्कार की
संस्कृति" आवश्यक
वाटिकन सिटी, 05 सितम्बर सन् 2013 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने, भारत के मंलकार ऑरथोडोक्स
सिरियाई कलीसिया के शिष्टमण्डल को सम्बोधित शब्दों में कहा कि पुनर्मिलन के लिये "साक्षात्कार
की संस्कृति" को प्रोत्साहित करना अति आवश्यक है। गुरुवार को, वाटिकन में काथोलिकोज़
बासेलियोस मारथोमा पाओलोस द्वितीय के नेतृत्व में भारत के मंलकार ऑरथोडोक्स सिरियाई शिष्टमण्डल
ने सन्त पापा फ्राँसिस का साक्षात्कार किया। सन्त थॉमस के साक्ष्य एवं उनकी शहादत
की नींव पर निर्मित मंलकार ऑरथोडोक्स सिरियाई कलीसिया का सन्त पापा ने अभिवादन किया तथा
अपने सम्बोधन में, सन् 1983 तथा 1986 में, धन्य सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय तथा भारत की
मंलकार ऑरथोडोक्स सिरियाई कलीसिया के पूर्व प्रमुख, काथोलिकोज़ मोरान मार बासेलियोज़
मारथोमा मैथ्यू प्रथम के बीच सम्पन्न दो मुलाकातों का स्मरण कराया। उन्होंने कहा कि इन
महत्वपूर्ण मुलाकातों के बाद ही काथलिक कलीसिया एवं मंलकार ऑरथोडोक्स सिरियाई कलीसिया
के बीच एक अन्तरराष्ट्रीय आयोग का स्थापना की गई तथा धर्मसैद्धान्तिक विचारविमर्श से
पुनर्मिलन की प्रक्रिया शुरु की जा सकी। सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा कि इन तीस वर्षों
में उक्त अन्तरराष्ट्रीय आयोग ने एकता की दिशा में महत्वपूर्ण काम किये हैं जिनकी सराहना
अनिवार्य है। उन्होंने कहा, "आराधना स्थलों एवं कब्रस्तानों के सामान्य उपयोग, विशिष्ट
प्रेरितिक परिस्थितियों में आध्यात्मिक एवं धर्मविधिक संसाधनों का आपसी आदान-प्रदान जैसे
क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कदम उठाये गये हैं। तथापि, वर्तमान विश्व द्वारा प्रस्तुत सामाजिक
एवं धार्मिक चुनौतियों का सामना करने के लिये और अधिक सहयोग एवं समन्वय की आवश्यकता है।" दोनों
कलीसियाओं पर सन्त पेत्रुस एवं सन्त थॉमस की सुरक्षा का आह्वान कर सन्त पापा ने भाईचारे,
मैत्री एवं सहयोग के विकास हेतु सतत् प्रार्थना का सन्देश दिया तथा मंगलकामना की कि प्रभु
येसु की इच्छानुसार उनके समस्त अनुयायी पूर्ण एकता के सूत्र में बँध सकें।