रेमण्ड नोन्नातुस का जन्म स्पेन के काटालोनिया
प्रान्त स्थित पोरतेल्ला में हुआ था। लैटिन शब्द नोन्नातुस का अर्थ होता है "अजन्मा"
और यह नाम रेमण्ड के साथ इसलिये जुड़ा कि वे सिज़ेरियन ऑपरेशन के द्वारा जन्में थे। रेमण्ड
के जन्म के समय ही उनकी माताजी का देहान्त हो गया था। यही कारण है कि सन्त रेमण्ड शिशुजन्म,
दाईयों, नन्हें बच्चों, गर्भवती माताओं तथा पापस्वीकार की गोपनीयता को सुरक्षित रखने
की इच्छा रखनेवाले पुरोहितों के संरक्षक सन्त हैं।
किशोरावस्था में ही रेमण्ड
ने, बारसेलोना स्थित, सन्त पीटर नोलास्को के नेतृत्व में स्थापित, दया की रानी धन्य कुँवारी
मरियम को समर्पित मरसेडेरियन धर्मसमाज में प्रवेश कर लिया था। इस धर्मसमाज की विशिष्टता
यह है कि धर्मसमाजी जीवन के लिये इसके पुरोहित ब्रह्मचर्य, अकिंचनता एवं आज्ञाकारिता
की तीन सुसमाचारी शपथों के अतिरिक्त चौथी शपथ लेते हैं और वह है कष्ट में पड़े अपने साथी
के लिये प्राण न्यौछावर करने की या बन्धकों की रिहाई की। सन् 1218 ई. में सन्त पीटर नोलास्को
ने इस धर्मसमाज की स्थापना उत्तरी अफ्रीका की अश्वेत मूर जाति के लोगों द्वारा अपहृत
लोगों की रिहाई के लिये की थी। रेमण्ड ने इसी धर्मसमाज में शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की
तथा सन् 1222 ई. में पुरोहित अभिषिक्त हुए और बाद में धर्मसमाज के प्रमुख नियुक्त किये
गये। अपनी नियुक्ति के तुरन्त बाद, रेमण्ड, गुलामों को रिहा कराने के लिये आलजिरिया गये
थे। बताया जाता है कि जब बन्धकों को छुड़ाने के लिये निष्कृति धन समाप्त हो चुका था तब
रेमण्ड ने ख़ुद अपने आप को अपहरणकर्त्ताओं के सिपुर्द कर दिया था।
मूर जाति के
मुसलमान अपहरणकर्त्ताओं ने रेमण्ड को बन्धक रख लिया किन्तु रेमण्ड इस दौरान अन्य बन्धकों
के बीच सुसमाचार का प्रचार करते रहे जिसके परिणामस्वरूप अनेकानेक मुसलमानों ने ख्रीस्तीय
धर्म का आलिंगन कर लिया। अपहरणकर्त्ता, रेमण्ड के प्रचार कार्य से बेहद नाराज़ हुए तथा
उन्होंने रेमण्ड को कड़ी यातनाएँ देना आरम्भ कर दिया। बताया जाता है कि मूर जाति के आततायियों
ने गर्म लोहे से उनके होठों को बेध दिया था ताकि वे बोल न पायें तथा प्रचार न करें। आठ
माहों तक रेमण्ड ने घोर यातनाएं सही जिसके बाद पीटर नोलेस्को ने उन्हें छुड़ाया। सन्
1239 ई. में बारसेलोना लौटने पर सन्त पापा ग्रेगोरी नवम् ने उन्हें कार्डिनल पद पर नियुक्त
कर सम्मानित कर दिया। कार्डिनल नियुक्त किये जाने के एक वर्ष बाद ही जब रेमण्ड रोम जा
रहे तब बारसेलोना के निकट कारदोना में उनका निधन हो गया। सन् 1657 ई. में, रेमण्ड को
सन्त घोषित कर काथलिक कलीसिया में वेदी का सम्मान प्रदान किया गया। सन्त रेमण्ड का पर्व
31 गस्त को मनाया जाता है।
चिन्तनः कठिन परीक्षा की घड़ियों में भी
हम प्रभु येसु ख्रीस्त में अपना विश्वास नहीं खोयें तथा जीवन के हर पल सुसमाचार के साक्षी
बनें।