2013-08-02 12:32:07

वाटिकन सिटीः ईद-अल-फित्र पर सन्त पापा फ्राँसिस ने विश्व के मुसलनमानों को प्रेषित किया शुभकामना सन्देश


वाटिकन सिटी, 02 अगस्त सन् 2013 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने ईद-अल-फित्र के उपलक्ष्य में, विश्व के समस्त इस्लाम धर्मानुयायियों के नाम शुभकामना सन्देश प्रेषित किया है। सन्देश में सन्त पापा ने कहा है कि शिक्षा द्वारा परस्पर सम्मान की भावना को प्रेरित किया जा सकता तथा विभिन्न धर्मों के मूल्यों, उनकी संस्कृति तथा उनकी परम्पराओं पर समझदारी उत्पन्न की जा सकती है। सन्त पापा फ्राँसिस का सन्देश इस प्रकार हैः
"सम्पूर्ण विश्व के मुसलमानों के नाम
उपवास, प्रार्थना एवं भिक्षादान को समर्पित, रमादान माह के समापन पर, आप ईद अल-फित्र मना रहे हैं और इस उपलक्ष्य में, आपके प्रति हार्दिक शुभकामनाएँ अर्पित करते, मैं अत्यधिक हर्षित हूँ।
यह एक परम्परा बन गई है कि इस शुभअवसर पर, अन्तरधार्मिक वार्ता सम्बन्धी परमधर्मपीठीय समिति, सामान्य चिन्तन हेतु एक विषय सहित, आपको मंगलकामना सन्देश प्रेषित करती है। इस वर्ष, मेरे परमाध्याक्षीय काल के प्रथम वर्ष में, प्रिय मित्रो, समस्त मुसलमानों एवं, विशेष रूप से, धार्मिक नेताओं के प्रति, सम्मान व मैत्री की अभिव्यक्ति स्वरूप, मैंने इस पारम्परिक सन्देश पर स्वयं हस्ताक्षर कर इसे आपको प्रेषित करने का निर्णय लिया है।
जैसा कि सभी जानते हैं कि जब कार्डिनलों ने मुझे रोम का धर्माध्यक्ष तथा विश्वव्यापी काथलिक कलीसिया का मेषपाल नियुक्त किया तब मैंने "फ्राँसिस" नाम चुना, जो एक विख्यात सन्त हैं तथा जिन्होंने ईश्वर एवं प्रत्येक मानव प्राणी को, हृदय की गहराई से, प्यार किया, यहाँ तक कि उन्हें "विश्वव्यापी भाई" की संज्ञा प्रदान की गई। उन्होंने ज़रूरतमन्दों, रोगियों एवं निर्धनों से प्यार किया, उनकी सहायता और सेवा की; सृष्टि की देखरेख हेतु भी उनकी उत्कंठा बनी रही।
इस बात के प्रति मैं सचेत हूँ कि इस अवधि में, इस्लाम धर्मानुयायियों के लिये पारिवारिक एवं सामाजिक पहलु विशेष महत्व रखते हैं तथा यह बात ध्यान देने योग्य है कि इन क्षेत्रों में ख्रीस्तीय विश्वास एवं रीति रिवाज़ों के साथ समान्तर है।
इस वर्ष जिस विषय पर आपके साथ तथा इस सन्देश को पढ़नेवाले समस्त लोगों के साथ चिन्तन करना चाहूँगा, वह, चाहे इस्लाम धर्मानुयायी हों या ख्रीस्तीय धर्मानुयायी सभी से सम्बन्धित है और वह है, शिक्षा द्वारा परस्पर सम्मान को प्रोत्साहित करना ।
इस वर्ष का विषय शिक्षा के महत्व को उस मायने में रेखांकित करना चाहता है जिसमें हम, परस्पर सम्मान के आधार पर, एक दूसरे को समझते हैं। "सम्मान" का अर्थ है उन व्यक्तियों के प्रति अनुकूल दृष्टि रखना जिनका हम लिहाज़ एवं आदर करते हैं। "परस्पर" का अर्थ, एकतरफा प्रक्रिया नहीं है अपितु यह एक ऐसा तथ्य है जिसमें दोनों पक्ष भागीदार होते हैं।
प्रत्येक व्यक्ति में, जिस तथ्य के सम्मान की हमसे अपेक्षा की जाती है, उनमें से सर्वप्रथम है उसके जीवन का सम्मान, उसकी शारीरिक अखण्डता, उसकी प्रतिष्ठा तथा उस प्रतिष्ठा से प्रस्फुटित होनेवाले अधिकार, उसकी नेकनामी, उसकी सम्पत्ति, उसकी जातीय पहचान एवं सांस्कृतिक अस्मिता, उसकी सोच एवं उसके राजनैतिक चयन का सम्मान। अस्तु, हमारा आह्वान किया जाता है कि हम अन्यों के बारे में आदर भाव के साथ सोचें, बोलें एवं लिखें, उनकी उपस्थिति में ही नहीं अपितु सब समय एवं सब जगहों पर, अन्यायपूर्ण आलोचना अथवा मानहनि से बचते हुए। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु परिवारों, स्कूलों, धार्मिक प्रशिक्षण केन्द्रों एवं हर प्रकार के मीडिया की भूमिका अहं है।
अन्तरधार्मिक सम्बन्धों के क्षेत्र में परस्पर सम्मान, विशेष रूप से, यदि ख्रीस्तीय एवं इस्लाम धर्मानुयायियों के बीच परस्पर सम्मान की बात की जाये तो अन्यों के धर्म, उनकी शिक्षा, उनके प्रतीकों एवं उनके मूल्यों का आदर करने की हमसे मांग की जाती है। धार्मिक मार्गदर्शकों एवं आराधना स्थलों के प्रति विशेष आदर भाव की अपेक्षा की जाती है। किसी एक के विरुद्ध या दूसरे के विरुद्ध आक्रमण कितना कष्टकर है?
यह स्पष्ट है कि जब हम अपने पड़ोसी के धर्म का सम्मान करते हैं अथवा उनके धार्मिक पर्वों के अवसर पर शुभकामनाएँ अर्पित करते हैं तब हम, उनके धार्मिक विश्वास की विषयवस्तु का सन्दर्भ दिये बिना, केवल उनके हर्ष में भागीदार बनने की चेष्टा करते हैं।
हम सब जानते हैं कि किसी भी मानवीय सम्बन्ध में आपसी सम्मान मूलतत्त्व है, विशेष रूप से, धार्मिक विश्वास की अभिव्यक्ति करने वालों के बीच। इस प्रकार, निष्कपट एवं चिरस्थायी मैत्री का विकास हो सकता है।
22 मार्च, सन् 2013 को जब मैंने परमधर्मपीठ को प्रत्यापित राजनयिक मण्डल से मुलाकात की थी तब मैंने कहा था, "अन्यों की उपेक्षा कर ईश्वर के साथ यथार्थ सम्बन्ध नहीं बनाया जा सकता। इसके लिये विभिन्न धर्मों के मध्य सम्वाद को विकसित करना महत्वपूर्ण है, सबसे पहले मेरा विचार, इस्लाम के साथ सम्बन्ध के प्रति अभिमुख होता है। मेरी परमाध्यक्षीय प्रेरिताई के उदघाटन हेतु आयोजित ख्रीस्तयाग समारोह में इस्लाम जगत के अनेक वरिष्ठ नागर एवं धार्मिक अधिकारियों की उपस्थिति की मैं सराहना करता हूँ।" इन शब्दों से, मैंने एक बार फिर, विश्वासियों और, विशेष रूप से, ख्रीस्तीय एवं इस्लाम धर्म के अनुयायियों के बीच, सम्वाद एवं सहयोग के महत्व को दुहराना चाहा तथा उसे सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर बल दिया।
इन भावनाओं के साथ, मैं अपनी इस आशा की पुनरावृत्ति करता हूँ कि ख्रीस्तीय एवं इस्लाम धर्मानुयायी, विशेष रूप से, शिक्षा द्वारा आपसी सम्मान एवं मैत्री के यथार्थ प्रवर्तक बनें।
अन्ततः, मैं आपके प्रति प्रार्थनापूर्ण शुभकामनाएं अर्पित करता हूँ ताकि आपका जीवन सर्वशक्तिमान् प्रभु ईश्वर को महिमान्वित करे तथा आपके इर्द गिर्द रहने वालों को आनन्दित करे।"
आप सबको ईद मुबारक!
वाटिकन से, 10 जुलाई 2013
फ्राँसिसकुस









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