2013-07-28 20:30:09

वार्ता की संस्कृति के साथ, प्रज्ञा, दूरदर्शिता और उदारतापूर्वक राष्ट्र की सेवा करें


रियो दे जनेइरो, रविवार 28 जुलाई, 2013(सीएनए, सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने ब्राजील के रियो दे जनेइरो की नगरपालिका थियेटर में सरकारी अधिकारियों राजनीतिक, कूटनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षणिक और व्यवसाय जगत के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कहा कि वे समाज में धर्म की भूमिका पर बल दे ताकि धर्म वार्तालाप के लिये एक मंच प्रदान कर सके।

उन्होंने कहा कि विभिन्न धर्मों के बीच शांतिपूर्ण सहअस्तित्व राज्य सरकारों पर निर्भर करता है। राज्य जब धर्मों का सम्मान करता और विभिन्न धर्मों को ठोस अभिव्यक्ति के लिये मंच प्रदान करता तो समाज में यह महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।

सभा में उपस्थित संत पापा ने कहा कि वे मानव मर्यादा संबंधी नैतिक सिद्धांतों का पूरा सम्मान करना जारी रखें।

उन्होंने कहा कि जिनको बड़ी जिम्मेदारियाँ हैं वे सत्य का ध्यान करते हुए भविष्य की ओर नज़र दौड़ाते रहें और इस बात पर ध्यान दें कि वे भागीदारीपूर्ण दायित्व, संस्कृतियों की विशिष्टतायें और रचनात्मक वार्ता का सम्मान हो। उन्होंने कहा कि सदा मानव के समुचित विकास का ध्यान दिया जाना चाहिये।

उन्होंने ब्राजील के नेताओं से कहा कि काथलिक कलीसिया ने सुसमाचार के द्वारा जो समृद्धि प्रदान की है उसकी सराहना करना जारी रखें। सुसमाचार ने ब्राजील के लोगों को मानव और मानव जीवन का जो आदर्श दिया उसे भी पहचानें और नागरिकों के बेहतर भविष्ये के लिये कार्य करें।

इस बात का भी ध्यान रखा जाये कि ख्रीस्तीय तरीके से सार्वजनिक हित के लिये कार्य हो ताकि जीवन का वास्तविक सुख प्राप्त हो सके।

उन्होंने कहा कि सरकार यह प्रयास करे कि लोगों को बीच भ्रातृत्वपूर्ण संबंध हो और लोग एक दूसरे का सहयोग करें ताकि एक न्यायपूर्ण समाज का निर्माण हो सके। ऐसा कई बार आर्दश प्रतीत हो पर प्रत्येक व्यक्ति के ईमानदारी पूर्ण प्रयास से उचित फल प्राप्त हो सकता है।

उन्होंने नेताओं से अपील की कि वे आम लोगों की मर्यादा, भ्रातृत्व और एकता के लिये कार्य करें। वे अपने व्यवहारिक लक्ष्य निर्धारित करें और विशिष्ट साधनों का उपयोग करते हुए उसे पाने का प्रयास करें।

राष्ट्र के नेता न्यायपूर्ण निर्णय लें और सार्वजनिक हित के लिये अपने दायित्व को ठीक से समझे। इसके साथ ही वे अपने कार्यों को नागरिक अधिकारों और ईश्वर का न्याय के बीच रख कर परखें।

संत पापा ने कहा कि स्वार्थपूर्ण उदासीनता और हिंसात्मक विरोध के बीच में एक और रास्ता है जिसे वार्तालाप कहा जाता है। वार्तालाप एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दोनों पक्षों के बीच आदान-प्रदान होता है और दोनों पक्ष सत्य के प्रति खुले होते हैं । इससे दोनों पक्षों के प्रतिन सम्मान की भावना बढ़ती है और विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के बीच समझदारी बढ़ती है।

संत पापा ने कहा कि आज एक तो हम वार्ता की संस्कृति के साथ है यह हम विनाश की ओर हैं। उन्होंने क हा कि मैं आप लोगों को इस बात के लिये प्रोत्साहन देता हूँ कि आप सार्वजनिक हित के लिये समर्पित हो और प्रज्ञा, दूरदर्शिता और उदारतापूर्वक राष्ट्र की सेवा करें।








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