ख्रीस्तीय जीवन में प्रार्थना एवं सेवा के बीच घनिष्ठ संबंध
वाटिकन सिटी, सोमवार 22 जुलाई 2013 (सेदोक): वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के
प्रांगण में, रविवार 21 जुलाई को, संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना
का पाठ किया। देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने उपस्थित विश्वासियों को सम्बोधित कर
कहा, अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात, इस रविवार का सुसमाचार पाठ संत लूकस
रचित सुसमाचार के दसवां अध्याय से लिया गया है। जो हमें मार्था और मरिया के बारे बतलाता
है। ये नारियाँ कौन थीं? मार्था एवं मरिया लाजरुस की बहनें थी जो प्रभु की रिश्तेदार
एवं विश्वासी शिष्य थीं और बेथानी में रहती थीं। संत लूकस एस प्रकार चित्रण करते हैं:
मेरी येसु के चरणों में बैठकर उसके वचनों को सुन रही थी किन्तु मार्था सेवा सत्कार के
अनेक कार्यों में व्यस्त थी।(लू.10:39-40) दोनों ही येसु की सेवा कर रही थीं किन्तु तरीका
अलग था। मेरी येसु के वचनों को सुनने के लिए उसके चरणों में बैठती है परन्तु मार्था सेवा
सत्कार के अनेक कार्यों में व्यस्त थी उसने पास कर कहा, "प्रभु क्या आप यह ठीक समझते
हैं कि मेरी बहन ने सेवा-सत्कार का पूरा भार मेरे उपर छोड़ दिया है? उसे कहिए कि वह मेरी
मदद करे।" (पद.40) प्रभु ने उसे उत्तर दिया, "मार्था! मार्था! तुम बहुत सी बातों के विषय
में चिन्तित और व्यस्त हो, फिर भी एक ही बात आवश्यक है।"(पद.41) संत पापा ने कहा
"येसु क्या कहना चाहते हैं? वे कौन-सी चीज़ें हैं जो हमें आवश्यक हैं? सर्वप्रथम हमें
यह समझने की आवश्यकता है कि ये दोनों मनोभावनाएँ एक दूसरे के विपरीत नहीं हैः ईश्वर के
वचन को सुनना अर्थात् ध्यान प्रार्थना एवं दूसरों की सेवा। वे परस्पर विरोधी मनोभाव
नहीं हैं किन्तु दोनों ही हमारे ख्रीस्तीय जीवन के अनिवार्य पहलू हैं जिन्हें एक-दूसरे
से कभी अलग नहीं किया जा सकता है। किन्तु दोनों को गहन एकता एवं सामंजस्य में रखा जा
सकता है। लेकिन मार्था क्यों दोषी ठहरायी गयी यद्यपि उसने येसु के साथ शिष्टाचार का व्यवहार
किया था? क्यों सिर्फ एक ही बात को आवश्यक बतलाया गया। क्योंकि वह कई चीजों को करने के
द्वारा आत्मलीन एवं अन्यमनस्क थी। एक ख्रीस्तीय के लिए, सेवा एवं उदारता के कार्य, मुख्य
स्रोत अर्थात् ईशवचन सुनना, से कभी पृथक नहीं हैं। मैं मेरी के समान येसु के चरणों में
बैठने का अनुभव करता हूँ। येसु के शिष्य का मनोभाव, जिसके लिए मार्था फटकारी गई। प्रिय
भाइयो एवं बहनो, हमारे ख्रीस्तीय जीवन में प्रार्थना एवं सेवा के बीच घनिष्ठ संबंध है।
यदि प्रार्थना: गरीब, बीमार, आवश्यकता में पड़े हुए भाई-बहनों की सेवा के लिए ठोस कदम
नहीं उठाता वह बाँझ और अधूरा है। उसी प्रकार, यदि हम कलीसिया की सेवा में कार्य करने
एवं उसकी संरचना पर अधिक महत्व देकर, ख्रीस्त को प्रमुख स्थान देना भूल जाते हैं और उनके
साथ प्रार्थना में वार्तालाप करने के लिए समय निर्धारित नहीं कर पाते हैं तब यह गरीबों
में उपस्थित ईश्वर की सेवा के बजाय अपने आप की सेवा करने के समान है। संत बेनेडिक्ट ने
इस जीवन शैली को अपने मठवासियों के लिए संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए कहते हैं- ‘ओरा
एत लावोरा’। ‘प्रार्थना एवं कार्य’। ध्यान प्रार्थना से ईश्वर के साथ मित्रता घनिष्ठ
होती है जिससे ईश्वर के प्रेम में जीने एवं उसके प्रेम, दया और करुणा को दूसरों को बांटने
की क्षमता प्राप्त होती है। अपने भाई-बहनों के प्रति सेवा तथा दया के कार्य हमें ईश्वर
के समीप लाते हैं क्योंकि जरूरत में पड़े भाइयों एवं बहनों में हम ईश्वर को देखते हैं।
संत पापा ने सदा सेवा और मदद के लिए तत्पर माता मरिया से विन्ती की, कि उनके मध्यस्थता
द्वारा येसु के वचनों को हृदय में चिंतन करने की शिक्षा ग्रहण करें, जिससे कि प्रार्थना
में विश्वस्त रहकर हम लोगों की आवश्यकता में अधिक से अधिक ध्यान दे सकें। इतना कहने
के बाद संत पापा ने विश्वासियों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया । देवदूत प्रार्थना
समाप्त करने के बाद संत पापा ने कहा कि मैं सभी तीर्थयात्रियों का सहृदय अभिवादन करता
हूँ। मेरी यात्रा की शुभकामना अर्पित करने के लिए धन्यवाद देता हूँ। मैं आपसे आग्रह करता
हूँ कि प्रार्थना मैं आध्यात्मिक रुप से जुड़ कर मेरी प्रथम प्रेरितिक यात्रा की सफलता
हेतु प्रार्थना करें। जैसे कि आपको ज्ञात है 28वाँ विश्व युवा दिवस मनाने के लिए मैं
ब्राज़ील के रियो दी जानेरो की यात्रा पर जा रहा हूँ। जहाँ दुनिया के विभिन्न हिस्सों
से बहुत से युवा जमा होंगे। मेरे विचार से इस सप्ताह को युवा सप्ताह भी कहा जा सकता है।
जो लोग रियो आयेंगे वे येसु की आवाज को सुनना चाहते हैं। येसु से अपने जीवन के प्रश्नों
के उत्तर सुनने के लिए; प्रभु मेरे जीवन को किसके लिए देना है? मेरे लिए कौन सा रास्ता
सही है? संत पापा ने कहा, "मैं नहीं जानता हूँ कि यहाँ इस प्रांगण में कितने युवा
उपस्थित हैं। यहाँ इस प्रांगण में उपस्थित आप सभी युवा हैं अतः वही सवाल प्रभु से पूछना
है। कि प्रभु में अपने जीवन में क्या करुँ? मेरे लिए कौन सा रास्ता उचित है? हम ब्राजील
की अति प्यारी एवं आदरणीय माता मरिया की मध्यस्थता द्वारा प्रार्थना करें कि वे ब्राजील
एवं यहाँ उपस्थित युवाओं का मार्गदर्शन करें तथा दुनिया भर के युवाओं के महान तीर्थयात्रा
के नये कदम में हमारी सहायता करें।
अंत में संत पापा ने सभी को शुभ रविवार
की मंगल कामना अर्पित की।