धर्माध्यक्ष एवं कलीसिया के आचार्य, सन्त जॉन
बोनावेनचर का जन्म, इटली के तोस्काना प्रान्त के बान्योरेआ में, सन् 1221 ई. में हुआ
था। बाल्यकाल में जॉन बोनावेनचर एक ख़तरनाक बीमारी से ग्रस्त हो गये थे तब उनकी माता
ने असीसी के सन्त फ्रांसिस से विनती की थी कि वे उनके पुत्र के लिये प्रार्थना करें।
बालक जॉन की भावी महानता को देखते हुए असीसी के फ्राँसिस ने ईश्वर की ओर दृष्टि उठाई
तथा पुकाराः "ओ, बुओना वेनतूरा" अर्थात हे, अच्छा भाग्य! बस यहीं से जॉन का नाम बोनावेनचर
पड़ गया।
22 वर्ष की उम्र में बोनावेनचर फ्राँसिसकन धर्मसमाज में भर्ती हो गये।
धर्मसमाज की शपथों को ग्रहण करने के उपरान्त उन्हें इंगलैण्ड के विद्धान, फ्राँसिसकन
धर्मसमाजी हेल्स के डॉक्टर एलेक्ज़ेनडर के अधीन उच्चशिक्षा प्राप्त करने के लिये पेरिस
भेज दिया गया था। डॉ. एलेक्ज़ेनडर के निधन पर बोनावेनचर ने उनके शिष्य रोशेल के जॉन के
अधीन अपनी पढ़ाई जारी रखी। पेरिस में बोनावेनचर महान सन्त थॉमस अक्वाईनस के इष्ट मित्र
बन गये तथा उन्हीं के संग डॉक्टरेड की पढ़ाई पूरी कर आचार्य की उपाधि प्राप्त की। सन्त
थॉमस अक्वाईनस के के सदृश ही धर्मी सम्राट लूईस से भी बोनावेनचर की मित्रता था।
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वर्ष की आयु में बोनावेनचर को फ्राँसिसकन धर्मसमाज का विश्व प्रमुख नियुक्त कर दिया गया
था जिन्होंने, बड़ी सूझ बूझ एवं समझदारी के साथ, मठवासी जीवन में आई खामियों और धर्मसमाज
में उत्पन्न आन्तरिक विभाजन को दूर कर, शांति की स्थापना की। इसके अतिरिक्त, बोनावेनचर
ने सन्त फ्रांसिस की जीवनी लिखी तथा पदुआ के सन्त अन्तोनी के अवशेषों के स्थानान्तरण
में मदद दी। सन्त पापा क्लेमेन्त ने उन्हें यॉर्क का महाधर्माध्यक्ष मनोनीत कर दिया था
किन्तु उन्होंने उनसे याचना की कि वे इतना प्रतिष्ठापूर्ण पद उन्हें नहीं दें। तदोपरान्त,
सन्त पापा ग्रेगोरी दशम ने उन्हें रोम के परिसर स्थित अलबानो का धर्माध्यक्ष एवं कार्डिनल
नियुक्त कर दिया।
सन् 1274 ई. में जब बोनावेनचर लियोन्स की द्वितीय महासभा में
भाग ले रहे थे तब उनका निधन हो गया था। सन्त बोनावेनचर का पर्व 15 जुलाई को मनाया जाता
है। चिन्तनः "प्रभु! मैं सारे हृदय से तुझे धन्यवाद दूँगा। मैं तेरे सब अपूर्व
कार्यों का बखान करूँगा। मैं उल्लसित हो कर आनन्द मनाता हूँ। सर्वोच्च ईश्वर! मैं तेरे
नाम के आदर में भजन गाता हूँ (स्तोत्र ग्रन्थ 9: 1-3)।"