मुम्बईः धार्मिक स्वतंत्रता एक मानवाधिकार है जिसकी रक्षा की जानी चाहिये, भारतीय ख्रीस्तीय
नेता
मुम्बई, 28 जून सन् 2013 (एशियान्यूज़): भारतीय ख्रीस्तीयों की विश्वव्यापी समिति, ग्लोबल
काऊन्सल ऑफ इन्डियन क्रिस्टियन्स "जीसीआईसी" के अध्यक्ष साजन के. जॉर्ज ने कहा है कि
धार्मिक स्वतंत्रता एक मानवाधिकार है जिसकी रक्षा की जानी चाहिये। मंगलवार को यूरोपीय
संघ द्वारा धार्मिक स्वतंत्रता पर जारी नई निर्देशिका पर बोलते हुए श्री जॉर्ज ने कहा,
"धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ हमारे समुदायों से किसी विशिष्ट धर्म अथवा विश्वास को बाहर
करना नहीं है, ना ही इसका अर्थ किसी विशिष्ट धर्म को प्रोत्साहन देना है।" उन्होंने
कहा, धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ है ऐसे वातावरण का निर्माण करना जो प्रजातांत्रिक, शांतिपूर्ण
एवं बहुलवादी समाजों के विकास प्रोत्साहन दें जिनमें समस्त व्यक्तियों को, स्वतंत्र रूप
से, सोचने विचारने, खोजने, आशंकित होने तथा विश्वास करने की स्वतंत्रता रहे।" श्री
जॉर्ज ने कहा कि यूरोपीय संघ द्वारा धार्मिक स्वतंत्रता पर जारी निर्देशिका यूरोप सहितअन्य
महाद्वीपों के देशों के लिये भी, अपने यहाँ धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति पर चिन्तन का
एक सुअवसर है। उन्होंने कहा कि विश्व में सर्वाधिक विशाल बहुलवादी प्रजातंत्र होने के
नाते भारत को अपने अल्पसंख्यकों पर ध्यान देना चाहिये। हालांकि, उन्होंने कहा, "धार्मिक
स्वतंत्रता की दृष्टि से देश में दोहरी स्थिति है।" उन्होंने कहा कि एक ओर भारत हिन्दु,
जैन, बौद्ध एवं सिक्ख धर्मों की जन्मभूमि है, यहाँ विश्व के आठ धर्म एक साथ मिलकर जीवन
यापन करते हैं तथा भारत का संविधान प्रत्येक के मूलभूत अधिकार रूप में धार्मिक स्वतंत्रता
की गारंटी देता है तथापि हाल के वर्षों में अल्पसंख्यकों और विशेष रूप से ख्रीस्तीय समुदाय
के विरुद्ध कई हमले किये गये हैं। श्री जॉर्ज ने कहा कि केन्द्रीय सरकार कानूनन धार्मिक
स्वतंत्रता का सम्मान करती है किन्तु स्थानीय स्तरों पर राज्य सरकारें अल्पसंख्यकों के
साथ भेदभाव करती हैं। उन्होंने कहा, विवाह, तलाक, गोद लेने तथा दायभाग आदि क्षेत्रों
में कोई सामान्य नियम नहीं हैं।