सन्त सिरिल का जन्म मिस्र के एलेक्ज़ेनड्रिया
में, सन् 376 ई. को हुआ था। वे एलेक्ज़ेनड्रिया के प्राधिधर्माध्यक्ष थेओफिलुस के भतीजे
थे। सिरिल को एलेक्ज़ेनड्रिया में दर्शन एवं धर्मतत्वविज्ञान की शिक्षा प्राप्त करने
का मौका मिला जिसके उपरान्त अपने मामा प्राधिधर्माध्यक्ष थेओफिलुस के कर कमलों से वे
पुरोहित अभिषिक्त कर दिये गये थे।
सन् 403 ई. में युवा पुरोहित सिरिल, प्राधिधर्माध्यक्ष
थेओफिलुस के साथ कॉन्सटेनटीनोपल की प्रेरितिक यात्रा पर गये थे तथा ओक की धर्मसभा में
उपस्थित थे जिसने जॉन क्रिज़ोसतम को अपदस्थ कर दिया था। सन् 412 ई. में प्राधिधर्माध्यक्ष
थेओफिलुस की मृत्यु के बाद सिरिल को एलेक्ज़ेनड्रिया का प्राधिधर्माध्यक्ष नियुक्त कर
दिया गया था। किन्तु इस पद के लिये सिरिल के समर्थकों एवं उनके विपक्षी थिमोथेयुस के
समर्थकों के बीच हिंसक झगड़े हुए थे।
अपनी नियुक्ति के तुरन्त बाद प्राधिधर्माध्यक्ष
सिरिल ने स्वतंत्र रूप से अपधर्मियों का बहिष्कार किया। उन्होंने नोवेशियन्स के गिरजाघरों
को बन्द करा दिया, यहूदियों को शहर से निकलवा दिया तथा एलेक्ज़ेनड्रिया के राज्यपाल ओरेसतेस
को अपदस्थ कर दिया। इसी सिलसिले में, सन् 430 ई. में, प्राधिधर्माध्यक्ष सिरिल कॉन्सटेनटीनोपल
के प्राधिधर्माध्यक्ष नेसतोरियुस के विरुद्ध खड़े हो गये इसलिये कि वे मरियम के विरुद्ध
कुप्रचार कर रहे थे। नेसतोरियुस का कहना था कि मरियम येसु ख्रीस्त की माता नहीं थीं क्योंकि
ख्रीस्त ईश्वर थे, मानव नहीं। उनका मानना था कि मरियम के लिये "थेओटोकुस" शब्द का प्रयोग
नहीं किया जाना चाहिये। इस शब्द का अर्थ है ईश्वर को धारण करनेवाली। नेस्तोरियुस के कुप्रचार
को रोकने के लिये प्राधिधर्माध्यक्ष सिरिल ने सन्त पापा सेलेस्टीन प्रथम से कहकर रोम
में एक धर्मसभा बुलाई जिसने नेसतोरियुस के मत की निन्दा की। प्राधिधर्माध्यक्ष सिरिल
ने इसी प्रकार की धर्मसभा एलेक्ज़ेनड्रिया बुलाकर वहाँ भी नेस्तोरियुस के मतों का खण्डन
किया।
सन् 431 ई. में, सन्त पापा सेलेस्टीन के निर्देश पर प्राधिधर्माध्यक्ष
सिरिल ने एफेसुस में तीसरी धर्माध्यक्षीय आम सभा का नेतृत्व किया जिसमें दो सौ धर्माध्यक्षों
ने भाग लिया। इस धर्मसभा में भी नेस्तोरियुस एवं उनके समर्थकों का खण्डन कर दिया गया
था तथा नेस्तोरियुस को कॉन्सटेनटीनोपल के प्राधिधर्माध्यक्षीय पीठ से अपदस्थ कर दिया
गया था। धर्मसभा के उपरान्त सिरिल गिरफ्तार कर लिये गये किन्तु सन्त पापा के राजदूत के
आने पर उन्हें छोड़ दिया गया। दो वर्ष बाद प्राधिधर्माध्यक्ष सिरिल तथा अन्ताखिया के
मध्यममार्गी धर्माध्यक्षों सहित महाधर्माध्यक्ष जॉन क्रिज़ोस्तम ने नेस्तोरियुस के विरुद्ध
एक संयुक्त प्रस्ताव पारित किया जिसके बाद नेस्तोरियुस को निष्कासित कर दिया गया।
अपने
शेष जीवन काल में प्राधिधर्माध्यक्ष सिरिल पवित्र तृत्व, कुँवारी मरियम तथा येसु ख्रीस्त
के देहधारण सम्बन्धी धर्मसिद्धान्तों पर शोध प्रबन्ध लिखते रहे जिससे ख्रीस्तीय समुदाय
में नेस्तोरियनवाद एवं पेलाजानिवाद के विचार जड़ नहीं पकड़ पाये। प्राधिधर्माध्यक्ष को
एलेक्ज़ेनड्रियाई परम्परा का सर्वाधिक प्रबुद्ध एवं सिद्धहस्त ईश शास्त्री माना जाता
है। उनके शोध कार्यों में सही सोच, सटीक अभिव्यक्ति तथा महान तर्कणा शक्ति का परिचय मिलता
है। उनकी कृतियों में सन्त योहन रचित सुसमाचार, सन्त लूकस रचित सुसमाचार एवं बाईबिल धर्मग्रन्थ
के प्रथम पाँच ग्रन्थों की व्याख्या, सैद्धान्तिक धर्मतत्वविज्ञान पर शोध प्रबन्ध, स्वधर्मत्यागी
जूलियन के विरुद्ध अपोलोजिया तथा कई पत्र एवं उपदेश शामिल हैं। सन् 1882 ई. में सन्त
पापा लियो 13 वें द्वारा एलेक्ज़ेनड्रिया के प्राधिधर्माध्यक्ष सिरिल को कलीसिया के आचार्य
घोषित किया गया था। उनका पर्व 27 जून को मनाया जाता है।
चिन्तनः कठिन क्षणों
में ख्रीस्तीय विश्वास के तत्वों को अक्षुण रखने तथा प्रभु ख्रीस्त का साक्ष्य प्रदान
करने हेतु अनवरत प्रार्थना की नितान्त आवश्यकता है।