2013-06-22 12:42:01

प्रेरक मोतीः सन्त थॉमस मोर (1478 ई.-1535 ई.)
(22 जून)


वाटिकन सिटी, 22 जून सन् 2013:

सन्त थॉमस मोर का जन्म लन्दन में सन् 1478 ई. में हुआ था। सन्त थॉमस मोर एक वकील, सामाजिक दर्शनशास्त्री, लेखक, राजनेता होने के साथ साथ पुनर्जागरण काल के विख्यात सुधारक एवं मानवतावादी थे।

धर्म, भाषाविज्ञान और सामाजिक शास्त्र में महाविद्यालयीन शिक्षा प्राप्त कर लेने के उपरान्त थॉमस ने ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय में वकालात का अध्ययन किया तथा बैरिस्ट्री पास करने के बाद ब्रितानी संसद में नौकरी प्राप्त कर ली। सन् 1505 ई. में थॉमस का विवाह जेन कोल्ट के साथ हो गया जिनसे उनकी चार सन्तानें थीं। युवावस्था में ही जेन का देहान्त हो गया जिसके उपरान्त थॉमस ने एलिस मिडिलटन नाम की एक विधवा से विवाह रचा लिया।

अपनी वाकपटुता एवं हाज़िर जवाबी के लिये विख्यात थॉमस, विद्धानों के बीच लोकप्रिय थे जो उन्हें अपने युग का महान सुधारक मानते थे। सन् 1516 ई. में थॉमस मोर ने अपनी विश्व विख्यात कृति "ऊतोपिया" लिखी। सम्राट हेनरी का ध्यान उनकी ओर आकर्षित हुआ और सन् 1529 ई. में उन्होंने थॉमस को लॉर्ड चैन्सलर के पद पर प्रतिष्ठापित कर "सर" की उपाधि से सम्मानित कर दिया।

तथापि, सन् 1532 ई. में, जब सम्राट हेनरी ने विवाह पर सन्त पापा एवं सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया की शिक्षाओं को मानने से इनकार कर दिया तब थॉमस मोर ने अपने इस प्रतिष्ठित पद का त्याग कर दिया। इसके बाद का जीवन सर थॉमस मोर कलीसिया के बचाव में पुस्तकें लिखने में व्यतीत करते रहे।

अपने मित्र सन्त जॉन फिशर के साथ मिलकर सर थॉमस मोर ने प्रॉटेस्टेण्ट सुधारवादी आन्दोलन का विरोध किया। विशेषकर, वे मार्टिन लूथर एवं विलियम टिनडेल के मतों से असहमत रहे। सन् 1534 ई. में थॉमस ने शाही प्रशासन के काथलिक कलीसिया से अलगाव का विरोध किया तथा सम्राट को चर्च ऑफ इंग्लैण्ड का शीर्ष मानने से इनकार कर दिया जिसके लिये उन्हें सन्त जॉन फिशर के साथ बन्दीगृह में डाल दिया गया। लगभग 15 माहों के कारावास के बाद सन्त जॉन फिशर को प्राण दण्ड दे दिया गया और इसके 09 दिनों बाद थॉमस मोर पर मुकद्दमा चला कर उनपर देशद्रोह के आरोप तय किये गये। अदालत में गवाही देते हुए उन्होंने न्यायाधीशों से कहा कि वे अपने अन्तःकरण विरुद्ध नहीं जा सकते थे और कामना करते थे कि वे उनसे स्वर्ग में एक न एक दिन मुलाकात करेंगे। तदोपरान्त, छः जुलाई, सन् 1535 ई. को उनके सिर को धड़ से अलग कर उनकी हत्या कर दी गई थी। उनके प्राणदण्ड का नज़ारा देखनेवालों से उन्होंने कहा था कि वे "सम्राट के सेवक होकर मर रहे थे किन्तु उससे भी पहले वे ईश्वर के सेवक थे।" सन्त थॉमस मोर वकीलों के संरक्षक सन्त हैं। उनका पर्व 22 जून को मनाया जाता है।


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