2013-06-12 16:26:32

वाटिकन सिटी: बुधवारीय आम दर्शन समारोह में संत पापा फ्राँसिस की धर्म शिक्षा माला


वाटिकन सिटी, बुधवार 12 जून 2013 (सेदोक): रोम स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में, संत पापा फ्राँसिस ने, बुधवार 12 जून को, साप्ताहिक आम दर्शन समारोह के अवसर पर अपनी धर्म शिक्षा माला जारी की। इस अवसर पर उन्होंने "कलीसिया, ईश्वर की प्रजा, पर चिंतन प्रस्तुत किया: उपस्थित भक्त समुदाय को सम्बोधित कर उन्होंने कहा,
"अति प्रिय भाइयो एवं बहनो,
सुप्रभात, आज मैं वाटिकन द्वितीय महासभा द्वारा की गई कलीसिया की और एक अभिव्यक्ति पर चिंतन करना चाहूँगा जिसमे महासभा ने कलीसिया को ईश प्रजा रुप में परिभाषित किया है।(डोगमाटिक कॉन्सटीट्यूशन,लुमेनजेनसियुम-9,कटेकिस्म ऑफ दा कैथोलिक चर्च-782) ऐसा मैं कुछ प्रश्नों द्वारा करना चाहता हूँ जिसमें प्रत्येक चिंतन कर सकते हैं।
1.संत पापा ने कहा, ‘ईश्वर की प्रजा’ का अर्थ क्या है?’ उन्होंने इसके उत्तर में कहा, "सर्वप्रथम इसका अर्थ है कि ईश्वर की कोई सीमा नहीं हैं। क्योंकि वे ही हमें अपनी प्रजा की संगति में शामिल होने के लिए बुलाते हैं, पुकारते हैं तथा निमंत्रण देते हैं और यह निमंत्रण बिना किसी भेदभाव के सभी के लिए है, क्योंकि ‘ईश्वर की करुणा समस्त मानव की मुक्ति चाहती है’।(1तिम.2:4)" संत पाप ने कहा कि चेलों को तथा हमें समाज के उत्कृष्ट लोगों का एक दल बनाने के लिए येसु नहीं कहते। वे कहते हैं: "जाकर सभी राष्ट्रों को अपना शिष्य बनाओ।" (मती.28: 19)
संत पौल कहते हैं कि ‘ईश प्रजा’ अर्थात कलीसिया में न तो कोई यहूदी है और न यूनानी। ‘क्योंकि आप सब येसु ख्रीस्त में एक हैं’ (गला. 3: 28)। संत पापा ने कहा, "मैं उन लोगों से कहना चाहता हूँ जो ईश्वर और कलीसिया से दूरी अनुभव करते हैं, जो भय खाते तथा जो उदासीन हैं, जो सोचते हैं कि किसी प्रकार का परिवर्तन असम्भव है। ईश्वर आपको भी अपनी प्रजा होने के लिए बड़े आदर और स्नेह से बुला रहे हैं।"
2. संत पापा ने दूसरा सवाल किया, " ईश प्रजा के सदस्य कैसे बनते हैं?" उन्होंने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि यह शारीरिक जन्म के द्वारा सम्भव नहीं है किन्तु नये सिरे से जन्म लेने की आवश्यकता है। सुसमाचार में येसु निकोदेमुस से कहते हैं कि उन्हें ईश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लिए सबसे पहले जल और पवित्र आत्मा से जन्म लेना होगा।( यो.3: 3-5)
बपतिस्मा द्वारा हमें वह जीवन सौंपा जाता है, जिसे ख्रीस्त में विश्वास एवं ईश्वर के वरदानों से पोषित करने की आवश्यकता है। हम अपने आप में प्रश्न करें कि बपतिस्मा में प्राप्त विश्वास को हम कैसे मजबूत कर सकते हैं।
3. संत पापा ने तीसरा प्रश्न रखा, "ईश्वर की प्रजा की संहिता क्या है? उन्होंने कहा, नये व्यवस्थान के अनुसार, यह प्यार की संहिता है: ईश्वर के प्रति प्यार एवं पड़ोसी के प्रति प्यार जिसे ईश्वर ने हमें दिया है।( यो.13: 34)। ऐसा प्यार जो संवेदना रहित और सूखा न हो किन्तु ऐसा प्यार जो ईश्वर को जीवन का मालिक स्वीकार करे, साथ ही साथ दूसरे को अपना सच्चा भाई स्वीकारे, जिसमें भेदभाव, बदले की भावना, नासमझी और स्वार्थ के लिए कोई जगह न हो, इस प्रकार दोनों चीज़ें एक साथ आगे बढ़ सकती हैं।" संत पापा ने लोगों से पूछा कि इस नये जीवन में पवित्र आत्मा की क्रियाशीलता, उदारता एवं प्यार को ज़ीने के लिए कितनी दूरी तय करना बाकी है।
4."ईश प्रजा का मिशन क्या है?" संत पापा ने प्रश्न का जवाब दिया, "संसार में ईश्वर की आशा और मुक्ति को लाना, ईश्वर के प्रेम का चिन्ह बनना जो सभी को अपना मित्र कह कर पुकारता है तथा ख़मीर बनना जो समस्त आटे को फुला देता है। नमक जो स्वाद देता तथा नष्ट होने से बचाता है और ज्योति जो प्रकाश प्रदान करती है।
संत पापा ने कहा कि समाचार में यदि देखें, कितनी बुराईयाँ है क्योंकि शैतान क्रियाशील है। उन्होंने बल देते हुए कहा कि ईश्वर शक्तिशाली हैं और सच्चाई अंधेरे में छिपी हुई है, जो सुसमाचार की ज्योति से प्रकाश में आ सकती है। हम अपने जीवन को ख्रीस्त की ज्योति बनायें और सुसमाचार को दुनिया में फैलायें।
5.संत पापा ने अगले सवाल में कहा, "ईश प्रजा का उद्देश्य क्या है? हमारा अंतिम लक्ष्य ईश्वर का राज्य है जो इस धरती में प्रारम्भ होता है और इसका विस्तार युगानुयुग तक होता है जब हमारे ख्रीस्त फिर प्रकट होकर हमें जीवन प्रदान करेंगे। (लुमेन जेनसियुम-9) ईश्वर के साथ पूर्ण सहभागिता ही हमारे जीवन का लक्ष्य है, मानव परिवार की ईश्वर के साथ सहभागिता जब हम ईश्वरीय जीवन में प्रवेश कर उनके असीम प्रेम एवं अनन्त सुख के भागीदार बनेंगे।
संत पापा ने उपस्थित भक्त समुदाय को संबोधित कर कहा, "प्रिय भाइयो एवं बहनो, पिता की महान योजना के अनुसार, कलीसिया होने का अर्थ है ईश्वर की प्रजा।
तत्पश्चात संत पापा ने विभिन्न देशों से आम दर्शन समारोह में उपस्थित तीर्थयात्रियों तथा पर्यटकों का अभिवादन कर कहा, यह अनन्त शहर आपको ईश्वर तथा कलीसिया के प्रेम में बढ़ने के लिए मदद करे। ईश्वर आपको आशीष प्रदान करे।























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