जिनिवाः सिरियाई युद्ध में सैन्य प्रबलता के विरुद्ध वाटिकन की चेतावनी
जिनिवा, 30 मई सन् 2013 (सेदोक): वाटिकन ने सिरियाई युद्ध की समाप्ति हेतु वार्ताओं का
पुनः आह्वान करते हुए कहा है कि इस युद्ध में सर्वाधिक पीड़ा बच्चों को भोगनी पड़ रही
है। जिनिवा में सिरिया पर संयुक्त राष्ट्र संघीय मानवाधिकार समिति में 29 मई को सम्पन्न
वाद-विवाद में परमधर्मपीठ के स्थायी पर्यवेक्षक महाधर्माध्यक्ष सिलवानो थॉमासी ने कहा
कि सबसे प्राथमिक आवश्यकता है "बन्दूकों को मौन करने की।" उन्होंने कहा कि इसका अर्थ
है कि लोगों को "व्यक्तिगत प्रतिशोध" तथा "किसी भी दल द्वारा प्रभुत्व की अत्यधिक महत्वाकांक्षा"
का परित्याग करना होगा। सीरियाई विद्रोही सीरिया के राष्ट्रपति बशर असद के इस्तीफे
की मांग कर रहे हैं। सरकारी एवं विद्रोही दोनों पक्षों पर अत्याचार के आरोप लगाये गये
हैं। सीरियाई हिंसा को "मानव अधिकारों के उल्लंघन की भूमि" निरूपित कर महाधर्माध्यक्ष
थॉमासी ने कहा कि सिरियाई संकट का समाधान सशस्त्र संघर्ष की सैन्य प्रबलता से नहीं बल्कि
वार्ताओं एवं मेलमिलाप से मिलेगा। उन्होंने कहा कि वाटिकन सदैव इस तथ्य पर बल देता
रहा है कि समस्त दलों के साथ शांतिपूर्ण बातचीत से ही स्थिति सामान्य हो सकती है। महाधर्माध्यक्ष
ने यह भी कहा कि संघर्षरत क्षेत्रों में तथा शरणार्थी शिविरों में बच्चों को सबसे अधिक
पीड़ा भुगतनी पड़ती है। अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से एकात्मता एवं उदारता का आग्रह कर महाधर्माध्यक्ष
ने कहा कि संघर्षरत क्षेत्रों में बच्चों की सुरक्षा हेतु ठोस उपाय किये जायें। अपने
माता पिताओं को खो चुके नाबालिग बच्चों पर विशेष ध्यान देने का आग्रह कर उन्होंने कहा
कि इस बात का आश्वासन मिलना चाहिये कि ये बच्चे अपराध जगत या मानव तस्करों के शोषण का
शिकार न बनें। विगत दो वर्षों से जारी सिरियाई संघर्ष में हज़ारों लोगों के प्राण
चले गये हैं तथा लगभग 15 लाख लोग शरणार्थी एवं विस्थापित हो गये हैं।