वाटिकन सिटीः सन्त पापा फ्राँसिस ने इताली धर्माध्यक्षों के साथ विश्वास समारोह मनाया
वाटिकन सिटी, 24 मई सन् 2013 (सेदोक): रोम स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर में, गुरुवार
सन्ध्या, इताली धर्माध्यक्षीय सम्मेलन की 65 वीं आम सभा के समापन पर, इटली के लगभग 300
काथलिक धर्माध्यक्षों ने, सन्त पापा फ्राँसिस के साथ अपने विश्वास को नवीकृत किया। विश्वास
समारोह में प्रवचन करते हुए सन्त पापा फ्राँसिस ने कलीसिया के धर्माध्यक्ष होने का मर्म
समझाया और कहा कि धर्माध्यक्षों को अपने पद से अधिक सेवा की चिन्ता होनी चाहिये। सन्त
पापा ने कहा कि प्रभु ख्रीस्त के प्रेम का पात्र वही बन सकता है जो उनकी तरह सेवा के
लिये तैयार है। उन्होंने कहा कि धर्माध्यक्ष की प्रेरिताई प्रभु के साथ आत्मीय सम्बन्ध
पर निर्भर है और यह सम्बन्ध हमें कलीसिया की प्रेरिताई, कलीसिया के प्रति आज्ञाकारिता
एवं पूर्ण समर्पण हेतु प्रेरित करता है। धर्माध्यक्षीय मिशन का अर्थ समझाते हुए सन्त
पापा ने कहा, "प्रभु से प्रेम का अर्थ है अपना सर्वस्व अर्पित कर देना यहाँ तक कि सेवा
में अपना पूर्ण जीवन अर्पित कर देना।" उन्होंने कहा, "इस प्रकार का समर्पण ही धर्माध्यक्ष
की प्रेरिताई को अन्य सेवाकार्यों से अलग करता है, यही यथार्थ धर्माध्यक्षीय प्रेरिताई
की परख है; जिन समुदायों और लोगों की सेवा का कार्यभार हमें सौंपा गया है उसे हम किस
तरह निभाते हैं उसी में हमारी पहचान होती है।" "पेत्रुस क्या तुम मुझसे प्रेम करते
हो?" प्रभु येसु द्वारा सन्त पेत्रुस से किये प्रश्नः पर चिन्तन करते हुए सन्त पापा ने
कहा कि इस प्रकार का प्रश्न हमें अस्त व्यस्त कर सकता है इसलिये कि हम इस भ्रम में पड़े
रहते हैं कि जो कुछ हम कर रहे हैं वह सब प्रभु की सेवा में कर रहे हैं। सन्त पापा ने
कहा कि प्रभु इस प्रश्न द्वारा हमारा अपमान नहीं करना चाहते बल्कि चाहते हैं कि बारम्बार
हम अपने कार्यों की जाँच करें और देखें कि वे सुसमाचारी आदेशों के अनुकूल हैं या नहीं।
सन्त पापा ने कहा, "धर्माध्यक्ष होने का अर्थ लोगों के संग संग चलना तथा उनकी बातों
को सुनना होता है। धर्माध्यक्षों में उन लोगों की बात सुनने की क्षमता होनी चाहिये जो
पीड़ित हैं, परित्यक्त हैं। इन लोगों में आशा का संचार करना धर्माध्यक्षों का परम दायित्व
है।"